J&K Migrant Immovable Property Act 1997 | बेदखली आदेश के खिलाफ अपील करने से पहले कब्जे को सरेंडर करना होगा: हाइकोर्ट

Amir Ahmad

3 April 2024 9:04 AM GMT

  • J&K Migrant Immovable Property Act 1997 | बेदखली आदेश के खिलाफ अपील करने से पहले कब्जे को सरेंडर करना होगा: हाइकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर प्रवासी अचल संपत्ति अधिनियम से संबंधित अपीलों में कब्जे को सरेंडर करने की महत्वपूर्ण आवश्यकता को रेखांकित करते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाइकोर्ट ने कहा कि विवादित संपत्तियों का कब्जा सरेंडर करना बेदखली आदेशों के खिलाफ अपील करने के लिए अपरिहार्य है।

    अधिनियम की धारा 7 का हवाला देते हुए जस्टिस रजनेश ओसवाल ने जोर दिया,

    “धारा 7 (सुप्रा) के अवलोकन से पता चलता है कि संपत्ति का कब्जा सरेंडर करना जो अपील का विषय है, बेदखली के आदेश के खिलाफ अपील करने के उद्देश्य से अनिवार्य है।”

    यह मामला लिसेयुम पब्लिक स्कूल से जुड़ा है, जो कश्मीरी प्रवासी की संपत्ति पर कब्जा कर रहा है। उक्त प्रवासी उग्रवाद के कारण घाटी छोड़कर चला गया था। प्रवासी अधिनियम के प्रावधानों के तहत जिला मजिस्ट्रेट ने स्कूल को संपत्ति खाली करने का निर्देश दिया।

    याचिकाकर्ता जिसका प्रतिनिधित्व शुजा-उल-हक तंत्रे ने किया ने तर्क दिया कि वे अनधिकृत रूप से कब्जाधारी नहीं हैं, बल्कि क्षेत्र में अशांति से पहले 1982 से लंबे समय से किराएदार थे। उन्होंने बेदखली आदेश और उसके बाद उनकी अपील खारिज करने को चुनौती दी, जिसमें कहा गया कि वैधानिक प्रावधानों पर उचित रूप से विचार नहीं किया गया।

    जस्टिस ओसवाल ने स्कूल के तर्क को स्वीकार करते हुए बताया कि अधिनियम की धारा 7 में स्पष्ट रूप से कहा गया कि बेदखली आदेश के खिलाफ अपील दायर करने के लिए कब्जा छोड़ना पूर्व शर्त है। न्यायालय ने कहा कि यह प्रावधान अनिवार्य है और इसे दरकिनार नहीं किया जा सकता।

    जब कोई कानून किसी लाभ को प्राप्त करने के लिए किसी विशेष कार्य को किसी विशेष तरीके से करने का तरीका निर्धारित करता है तो उस कार्य को उसी तरीके से किया जाना चाहिए। पीठ ने दर्ज किया कि एक बार याचिकाकर्ता ने प्रवासी अधिनियम की धारा 7 की आवश्यकता को पूरा नहीं किया, जिसके तहत उसने अपनी अपील पर विचार किया। इस प्रकार संबंधित संपत्ति का कब्जा छोड़ दिया तो अपील सुनवाई योग्य नहीं है।

    न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि हाइकोर्ट के पिछले आदेश में विशेष रूप से निर्देश दिया गया कि संपत्ति जिला मजिस्ट्रेट की कस्टड़ी में रहेगी और निजी प्रतिवादियों (प्रवासी मालिकों) को नहीं सौंपी जाएगी। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह आदेश स्कूल को संपत्ति पर कब्जा जारी रखने का अधिकार नहीं देता है।

    इन टिप्पणियों के आलोक में न्यायालय ने लिसेयुम पब्लिक स्कूल द्वारा दायर रिट याचिका खारिज कर दी और अपीलीय प्राधिकारी का आदेश बरकरार रखा।

    केस टाइटल- लिसेयुम पब्लिक स्कूल बनाम यूटी ऑफ जेएंडके

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