योग्यता पूरी होने के बाद प्रवासी दर्जा पदोन्नति में बाधा नहीं बन सकता: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

Amir Ahmad

15 Dec 2025 5:18 PM IST

  • योग्यता पूरी होने के बाद प्रवासी दर्जा पदोन्नति में बाधा नहीं बन सकता: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि एक बार वैधानिक नियमों के तहत पदोन्नति की पात्रता पूरी हो जाने के बाद किसी कर्मचारी का प्रवासी दर्जा उसके करियर की प्रगति को कमजोर करने का आधार नहीं बन सकता। अदालत ने यह भी दोहराया कि समान परिस्थितियों में कार्यरत व्यक्तियों के साथ अलग-अलग व्यवहार नहीं किया जा सकता।

    चीफ जस्टिस अरुण पल्ली और जस्टिस राजनेश ओसवाल की खंडपीठ ने शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (SKUAST), कश्मीर द्वारा दायर अपील खारिज करते हुए प्रवासी शिक्षकों को करियर एडवांसमेंट स्कीम (CAS) के तहत दी गई पूर्वव्यापी पदोन्नतियों को बरकरार रखा। अदालत ने कहा कि विश्वविद्यालय द्वारा लगाए गए प्रतिबंध न तो वैधानिक थे और न ही समानता के संवैधानिक सिद्धांत के अनुरूप।

    यह विवाद उन शिक्षकों से जुड़ा था, जो 1990 के दशक की शुरुआत में कश्मीर घाटी में उग्रवाद के चलते जम्मू स्थानांतरित हो गए। सरकारी आदेश के तहत उन्हें “प्रवासी कर्मचारी” के रूप में मान्यता दी गई और उन्हें प्रवासी वेतन दिया जा रहा था। बाद के एक सरकारी आदेश में यह भी स्पष्ट किया गया कि प्रवासी कर्मचारियों को पदोन्नति के लिए विचार किया जाएगा। हालांकि पदोन्नति का प्रभाव उनके पद पर योगदान देने से जोड़ा गया।

    मामला तब और जटिल हो गया जब SKUAST ने वर्ष 2002 में अपनी करियर एडवांसमेंट स्कीम में संशोधन किया। बाद में इसे 27 जुलाई 1998 से प्रभावी माना गया। याचिकाकर्ता शिक्षकों का कहना था कि वे सहायक प्राध्यापक/जूनियर साइंटिस्ट के रूप में आवश्यक सेवा अवधि पूरी कर चुके थे और CAS के तहत एसोसिएट प्रोफेसर/सीनियर साइंटिस्ट पद पर पदोन्नति के हकदार थे। उन्होंने यह भी बताया कि इसी तरह के लाभ उनके कनिष्ठ और समान स्थिति वाले अन्य कर्मचारियों को पहले ही दिए जा चुके हैं।

    हालांकि, यूनिवर्सिटी ने वर्षों तक इस पर कोई निर्णय नहीं लिया। वर्ष 2009 में पहली बार उनसे कश्मीर में योगदान देने को कहा गया ताकि उनकी पदोन्नति पर विचार किया जा सके। योगदान देने के बाद चयन समिति ने उनकी पात्रता की जांच की और उन्हें योग्य पाया। इन सिफारिशों को यूनिवर्सिटी के बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट ने भी मंजूरी दी।

    इसके बावजूद, बाद में गठित स्क्रीनिंग समिति ने सिफारिश की कि पदोन्नतियां केवल 2009 में कश्मीर में पुनः योगदान की तिथि से ही प्रभावी हों। यूनिवर्सिटी ने अक्टूबर, 2010 में इसी आधार पर पदोन्नति आदेश जारी कर दिए, जबकि चयन समिति और बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट ने ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं लगाया।

    शिक्षकों ने इस शर्त पर आपत्ति जताई और डॉ. वली उल्लाह के मामले का हवाला दिया, जिन्हें प्रवासी अवधि की पूरी सेवा को गिनते हुए 27 जुलाई, 1998 से पूर्वव्यापी CAS पदोन्नति दी गई। जब यूनिवर्सिटी ने इस पर भी कोई समाधान नहीं किया तो शिक्षकों ने हाईकोर्ट का रुख किया।

    मार्च 2022 में एकल पीठ ने स्क्रीनिंग समिति द्वारा लगाई गई शर्त रद्द करते हुए निर्देश दिया कि पदोन्नतियों को उस तिथि से प्रभावी किया जाए, जब शिक्षक CAS के तहत पात्र हुए। इस आदेश को SKUAST ने अपील में चुनौती दी।

    अपील खारिज करते हुए खंडपीठ ने कहा कि चयन समिति और बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट जैसे सक्षम वैधानिक निकायों ने पहले ही शिक्षकों की पात्रता को स्वीकार कर लिया था। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि स्क्रीनिंग समिति ने कहीं यह नहीं कहा कि शिक्षक सक्रिय सेवा में नहीं थे। प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों से जुड़ा मुद्दा भी निर्णायक नहीं माना गया, क्योंकि नियमों में ऐसे मामलों में छूट या बाद में प्रशिक्षण पूरा करने का प्रावधान था।

    डॉ. वली उल्लाह के मामले पर विश्वविद्यालय द्वारा किए गए भेद को भी अदालत ने अस्वीकार कर दिया। रिकॉर्ड का अवलोकन करते हुए कोर्ट ने कहा कि विश्वविद्यालय दोनों मामलों में कोई ठोस अंतर स्थापित करने में पूरी तरह असफल रहा है। अदालत ने दो टूक कहा कि जब परिस्थितियां समान हैं तो लाभ भी समान रूप से दिया जाना चाहिए।

    इन सभी तथ्यों के आधार पर हाईकोर्ट ने माना कि एकल पीठ का फैसला पूरी तरह वैध और तर्कसंगत है। अपील को निराधार बताते हुए अदालत ने उसे खारिज कर दिया और प्रवासी शिक्षकों को दी गई पूर्वव्यापी CAS पदोन्नतियों को बरकरार रखा।

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