DV Act के तहत नोटिस स्टेज में आपराधिक न्यायालय अपने आदेश पर पुनर्विचार कर सकता है: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

Shahadat

30 May 2024 5:39 AM GMT

  • DV Act के तहत नोटिस स्टेज में आपराधिक न्यायालय अपने आदेश पर पुनर्विचार कर सकता है: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 (Domestic Violence Act) की धारा 12 के तहत नोटिस जारी किए जाने पर आपराधिक न्यायालय पर अपने आदेश पर पुनर्विचार करने का प्रतिबंध लागू नहीं होता।

    जस्टिस संजय धर की पीठ ने यह स्पष्ट करते हुए कि घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत याचिका आपराधिक शिकायत दर्ज करने या आपराधिक अभियोजन शुरू करने के बराबर नहीं माना जा सकता, कामाची बनाम लक्ष्मी नारायणन 2022 का हवाला दिया।

    कोर्ट ने कहा,

    “आपराधिक न्यायालय अपने आदेश पर पुनर्विचार नहीं कर सकता है, यह उस स्टेज में लागू नहीं होगा, जब अधिनियम की धारा 12 के तहत नोटिस जारी किया जाता है।”

    यह फैसला मुदासिर अहमद डार द्वारा दायर याचिका खारिज करते हुए आया, जिसमें अतिरिक्त विशेष न्यायिक मोबाइल मजिस्ट्रेट गंदेरबल द्वारा उनके खिलाफ शुरू की गई घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत कार्यवाही को चुनौती दी गई।

    मामले की पृष्ठभूमि:

    मुदासिर ने प्रतिवादी नंबर 1 माशूका से विवाह किया था। इस विवाह से दंपति को प्रतिवादी नंबर 2 नामक बच्चा हुआ। हालांकि, तनावपूर्ण संबंधों के कारण मुदासिर ने 8 अप्रैल, 2023 को तलाक की घोषणा कर दी। इसके बाद माशूका ने अपने कमांडेंट के हस्तक्षेप के माध्यम से मुदासिर के वेतन से भरण-पोषण प्राप्त किया तथा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत कार्यवाही के माध्यम से अंतरिम भरण-पोषण भी प्राप्त किया।

    मुदासिर ने तर्क दिया कि माशूका पहले से ही उनके वेतन से तथा धारा 125 की कार्यवाही के माध्यम से भरण-पोषण प्राप्त कर रही थी, जिससे यह तर्क दिया गया कि वह घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत किसी भी अतिरिक्त मौद्रिक मुआवजे की हकदार नहीं है। उन्होंने यह भी दावा किया कि डी.वी. एक्ट की धारा 12 के तहत दायर याचिका सीआरपीसी की धारा 468 के अनुसार सीमा द्वारा वर्जित थी।

    न्यायालय की टिप्पणियां:

    जस्टिस धर ने पाया कि ट्रायल मजिस्ट्रेट ने याचिकाकर्ता को केवल नोटिस जारी किया था, जो मौद्रिक मुआवजे के लिए अंतरिम आदेश के बराबर नहीं था। पीठ ने कहा कि डी.वी. एक्ट की धारा 12 के तहत नोटिस पर याचिकाकर्ता की आपत्तियों पर मजिस्ट्रेट ने अभी तक विचार नहीं किया।

    पीठ ने टिप्पणी की,

    "इस कानूनी स्थिति को देखते हुए याचिकाकर्ता को डी.वी. एक्ट की धारा 12 के तहत आपत्तियां दाखिल करने के बाद मजिस्ट्रेट के आदेश की प्रतीक्षा करनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा करने के बजाय उसने समय से पहले ही तत्काल याचिका दाखिल कर दी।"

    अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि धारा 12 के तहत नोटिस जारी करना केवल याचिकाकर्ता से जवाब मांगने के लिए है और यह आपराधिक शिकायत या अभियोजन का गठन नहीं करता।

    जस्टिस धर ने आगे स्पष्ट किया कि आपराधिक अदालत की अपने आदेश पर पुनर्विचार करने में असमर्थता के बारे में कानूनी स्थिति डी.वी. एक्ट के तहत नोटिस स्टेज पर लागू नहीं होती।

    अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता को आपत्तियां दाखिल करने के बाद मजिस्ट्रेट के आदेश की प्रतीक्षा करनी चाहिए थी, बजाय इसके कि वह समय से पहले हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाए।

    याचिका के समय-बाधित होने के दावे के बारे में जस्टिस धर ने स्पष्ट किया कि डी.वी. एक्ट की धारा 12 के तहत आवेदन घरेलू हिंसा के कथित कृत्यों के बाद निश्चित अवधि के भीतर अधिनियम दायर करने की आवश्यकता नहीं है। इसलिए याचिकाकर्ता का तर्क बिना योग्यता के पाया गया।

    तदनुसार अदालत ने याचिका खारिज कर दी और याचिकाकर्ता को कानून के अनुसार ट्रायल मजिस्ट्रेट के समक्ष मामले को आगे बढ़ाने की अनुमति दी।

    केस टाइटल: मुदासिर अहमद डार बनाम एमएसटी. मशूका और अन्य

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