उत्तराखंड हाईकोर्ट से हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट जज ने जताई असहमति, पत्नी के साथ 'अप्राकृतिक यौन संबंध' को बताया दंडनीय अपराध
Shahadat
13 May 2025 6:57 PM IST

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के जुलाई, 2024 के फैसले से स्पष्ट रूप से असहमति जताई। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने अपने उक्त आदेश में कहा था कि पति पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 377 के तहत अपनी पत्नी के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण में हाल ही में इस तर्क को खारिज कर दिया कि पति और पत्नी के बीच IPC की धारा 377 के तहत कोई दंडनीय अपराध नहीं हो सकता।
जस्टिस राकेश कैंथला की पीठ ने कहा कि नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा IPC की धारा 377 की असंवैधानिकता की घोषणा प्रकृति के आदेश के विरुद्ध गैर-सहमति वाले यौन संबंध पर लागू नहीं होती, भले ही यह कृत्य पति और पत्नी के बीच ही क्यों न हो।
पीठ ने कहा,
"माननीय सुप्रीम कोर्ट ने नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ, (2018) 10 एससीसी 1 में माना कि IPC की धारा 377, जहां तक वयस्कों के बीच सहमति से यौन क्रियाओं को अपराध बनाती है, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19 और 21 का उल्लंघन करती है। हालांकि, यह वयस्कों के खिलाफ़ गैर-सहमति वाले यौन कृत्यों, नाबालिगों के खिलाफ़ शारीरिक संभोग के सभी कृत्यों और पशुता के कृत्यों को प्रभावित नहीं करेगा।"
महत्वपूर्ण बात यह है कि अपने फ़ैसले में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के जुलाई, 2024 के फ़ैसले से स्पष्ट रूप से असहमति जताई, जिसमें कहा गया था कि IPC की धारा 377 के तहत पति पर अपनी पत्नी के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता, क्योंकि IPC की धारा 375 के तहत वैवाहिक बलात्कार अपवाद इस प्रावधान पर भी लागू होता है।
उत्तराखंड हाईकोर्ट के निर्णय को "न्यायिक विधान का स्पष्ट मामला" बताते हुए हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने निम्नलिखित टिप्पणी की:
"उत्तराखंड हाईकोर्ट के निर्णय को स्वीकार करना और उसका पूरी विनम्रता से पालन करना कठिन है। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने माना कि IPC की धारा 375 के अपवाद को IPC की धारा 377 से नहीं निकाला जा सकता। यह न्यायिक विधान का स्पष्ट मामला है। विधानमंडल ने धारा 377 में कोई अपवाद नहीं बनाया और IPC की धारा 375 के तहत बनाए गए अपवाद को किसी भी व्याख्या प्रक्रिया द्वारा IPC की धारा 377 में शामिल करना स्वीकार्य नहीं है।"
संदर्भ के लिए, 'वैवाहिक बलात्कार अपवाद' IPC की धारा 375 (अब BNS की धारा 63) के तहत पाया जाता है, क्योंकि यह बलात्कार के अपराध से गैर-सहमति वाले वैवाहिक सेक्स को अपवाद प्रदान करता है।
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट मुख्यतः पति और उसके रिश्तेदारों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें पत्नी (सूचनाकर्ता) द्वारा उनके खिलाफ IPC की धारा 377, 498-ए, 323, 355, 504, 506 और 34 के तहत दर्ज FIR को चुनौती दी गई थी।
याचिकाकर्ताओं का कहना था कि मामले में अब दोनों पक्षों के बीच समझौता हो चुका है, इसलिए यह प्रार्थना की गई कि याचिका स्वीकार की जाए और FIR रद्द की जाए।
न्यायालय ने कहा कि IPC की धारा 377 IPC की धारा 376 के तहत दंडनीय अपराध के समान है और इसी तरह के विचार लागू होंगे।
इसमें यह भी कहा गया कि चूंकि IPC की धारा 376 के तहत अपराध को जघन्य और समाज के खिलाफ माना गया, इसलिए IPC की धारा 377 के तहत दंडनीय अपराध को भी जघन्य और समाज के खिलाफ माना जाना चाहिए, जिस पर पक्ष समझौता नहीं कर सकते। इसलिए CrPC की धारा 482 के तहत निहित अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए FIR रद्द नहीं की जा सकती।
एकल जज ने यह दलील भी खारिज कर दी कि IPC की धारा 377 के तहत लगाए गए आरोप झूठे थे और जांच के दौरान शिकायतकर्ता द्वारा लगाए गए थे। न्यायालय ने कहा कि वह CrPC की धारा 482 याचिका पर विचार करते समय शिकायत में लगाए गए आरोपों की सत्यता या अन्यथा की जांच नहीं कर सकता।
हालांकि, पीठ ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 34 के साथ धारा 498ए, 323, 355, 504 और 506 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए याचिका को अनुमति दी। साथ ही स्पष्ट किया कि मामला IPC की धारा 377 के तहत दंडनीय अपराध के लिए आगे बढ़ेगा।