2025 की बारिश की आपदा के बाद राज्य और केंद्र CSR दायित्वों को लागू करने में विफल रहे: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
Shahadat
27 Dec 2025 9:24 AM IST

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने 2025 में भारी बारिश से हुई तबाही का खुद संज्ञान लेते हुए कहा कि राज्य सरकार और भारत सरकार दोनों ही कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (CSR) दायित्वों को प्रभावी ढंग से लागू करने में विफल रहे।
कोर्ट ने कहा कि एक स्पष्ट कानूनी ढांचा होने के बावजूद, आपदा राहत और इंफ्रास्ट्रक्चर के पुनर्वास के लिए CSR फंड का इस्तेमाल करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया।
चीफ जस्टिस जी.एस. संधावालिया और जस्टिस जिया लाल भारद्वाज की डिवीजन बेंच ने कहा:
“01.12.2025 के हलफनामे को देखने से पता चलता है कि राज्य ने कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (CSR) प्रावधान के तहत कंपनियों को कोई निर्देश जारी नहीं किया, खासकर 2025 की अप्रत्याशित बारिश के लिए, जिससे इंफ्रास्ट्रक्चर बुरी तरह प्रभावित हुआ।”
यह मामला तब सामने आया, जब राज्य और केंद्र सरकार के अधिकारियों द्वारा दायर हलफनामों से पता चला कि 2025 की बारिश से हुए नुकसान से निपटने के लिए कंपनियों को CSR फंड देने के लिए कोई खास निर्देश जारी नहीं किए गए।
कोर्ट ने कहा कि कुल 80 कंपनियां हैं, जो कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 135 के दायरे में आती हैं, लेकिन सिर्फ 4752.39 लाख रुपये का योगदान दिया गया।
इसके जवाब में राज्य ने तर्क दिया कि राज्य सरकार और केंद्र शासित प्रदेशों को ऐसी गाइडलाइन या आदेश जारी न करने की सलाह दी गई, जो CSR कमेटी की फैसला लेने की शक्तियों को प्रभावित कर सकते हैं।
राज्य और भारत सरकार द्वारा दायर हलफनामों को देखने के बाद कोर्ट ने कहा कि भारत सरकार और राज्य दोनों ही अपने कर्तव्यों में लापरवाह रहे हैं। उन्होंने कंपनी अधिनियम की धारा 135 के कानूनी प्रावधानों के दायरे और आम जनता को दिए जाने वाले फायदों को नहीं समझा है।
इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि कुछ कंपनियों ने तो अपने CSR योगदान का खुलासा भी नहीं किया, जबकि अन्य ने पर्याप्त वित्तीय क्षमता होने के बावजूद बहुत कम योगदान दिया।
इसलिए हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को एक नया हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया,
“वह उद्योगों के खिलाफ अप्रभावी योगदान के लिए और अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिए क्या सक्रिय कदम उठाने जा रही है।”
Case Name: Court on its own motion v/s Union of India & others

