कैदियों को पारिवारिक समस्याओं को सुलझाने की अनुमति मिलनी चाहिए: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने पैरोल मंजूर की

Shahadat

17 Sept 2025 9:57 AM IST

  • कैदियों को पारिवारिक समस्याओं को सुलझाने की अनुमति मिलनी चाहिए: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने पैरोल मंजूर की

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि कैदियों के लिए पारिवारिक और सामाजिक संबंध बनाए रखना महत्वपूर्ण है। उन्हें अपनी व्यक्तिगत और पारिवारिक ज़िम्मेदारियों को पूरा करने के लिए पैरोल दी जानी चाहिए।

    जस्टिस वीरेंद्र सिंह ने कहा,

    "केवल FIR दर्ज होने को याचिकाकर्ता को पैरोल देने से इनकार करने का आधार नहीं बनाया जा सकता, क्योंकि कैदियों को अपने पारिवारिक और सामाजिक संबंध बनाए रखने की अनुमति दी जानी चाहिए। उन्हें अपनी व्यक्तिगत और पारिवारिक समस्याओं को सुलझाने और समाज के साथ जुड़ाव बनाए रखने का अवसर भी दिया जाना चाहिए।"

    मार्च, 2020 में याचिकाकर्ता को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 354-बी (महिला के कपड़े उतारने के इरादे से उस पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग), पॉक्सो अधिनियम की धारा 6 (गंभीर यौन उत्पीड़न के लिए दंड) और 14(3) (उकसाने के लिए दंड) तथा आईटी अधिनियम की धारा 66-ई (निजता का उल्लंघन) और 67-बी (बच्चों से संबंधित यौन सामग्री प्रकाशित या प्रसारित करना) के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया।

    जुलाई, 2024 में याचिकाकर्ता ने कृषि कार्य के लिए 42 दिनों की पैरोल के लिए आवेदन किया। हालांकि, उसका अनुरोध इस आधार पर अस्वीकार कर दिया गया कि (i) पीड़िता की माँ ने धमकियों के डर से आपत्ति जताई, और (ii) उसके पिछले पैरोल के दौरान उसके खिलाफ एक आपराधिक मामला दर्ज किया गया था।

    हाईकोर्ट ने दोहराया कि असफाक बनाम राजस्थान राज्य, 2017 के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था,

    "एक कैदी को पारिवारिक और सामाजिक संबंध बनाए रखने की अनुमति दी जानी चाहिए। इसके लिए उसे कुछ समय के लिए बाहर आना होगा ताकि वह अपने पारिवारिक और सामाजिक संपर्क बनाए रख सके।"

    इसके अलावा, न्यायालय ने यह भी कहा कि स्थानीय अधिकारियों और ग्रामीणों, जिनमें पंचायत प्रधान और लंबरदार शामिल हैं, उन्होंने याचिकाकर्ता के पैरोल अनुरोध का समर्थन किया और कोई आपत्ति नहीं जताई।

    इस प्रकार, न्यायालय ने अस्वीकृति आदेश रद्द किया और निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को 42 दिनों के पैरोल पर रिहा किया जाए।

    Case Name: Sachin Kumar v/s State of H.P. & Ors.

    Next Story