POCSO Act| केवल पीड़िता को आघात पहुंचने के डर से आरोपी को जमानत देने से इनकार नहीं किया जा सकता: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
Avanish Pathak
1 Sept 2025 8:08 PM IST

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 के तहत एक मामले में चार आरोपियों को ज़मानत दे दी है। न्यायालय ने कहा कि सिर्फ़ इस आधार पर ज़मानत देने से इनकार नहीं किया जा सकता कि पीड़ितों को आघात पहुंचेगा।
राज्य के तर्क पर गौर करते हुए, जस्टिस राकेश कैंथला ने टिप्पणी की कि, "प्रतिवादी/राज्य की ओर से दिए गए तर्क में दम है कि याचिकाकर्ताओं के कृत्यों से पीड़ितों को आघात पहुँचेगा। हालाँकि, यह याचिकाकर्ताओं को ज़मानत देने से इनकार करने के लिए पर्याप्त नहीं है।"
याचिकाकर्ताओं ने भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 126(2) (हमला या आपराधिक बल प्रयोग द्वारा महिलाओं का यौन उत्पीड़न), 352 (गंभीर उकसावे के अलावा किसी अन्य कारण से हमला या आपराधिक बल प्रयोग के लिए दंड), 79 (सामान्य आशय), और 78(1) (सामान्य आशय को आगे बढ़ाने के लिए कई व्यक्तियों द्वारा किए गए कार्य) और पॉक्सो अधिनियम, 2012 की धारा 12 (बच्चे का यौन उत्पीड़न) के तहत दंडनीय अपराधों के लिए नियमित ज़मानत की मांग करते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि आरोपी ने उसकी 13 और 14 साल की बेटियों को स्कूल से घर लौटते समय परेशान किया। इसके बाद, याचिकाकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि वे निर्दोष हैं और उन्हें झूठा फंसाया गया है। साथ ही, चूंकि वे चार महीने से ज़्यादा समय से हिरासत में हैं, इसलिए आरोपपत्र पहले ही दाखिल किया जा चुका है, और उन्हें हिरासत में रखने से कोई सार्थक उद्देश्य पूरा नहीं होगा।
जवाब में, राज्य ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं ने पीड़ितों का यौन उत्पीड़न किया था। उनके कृत्य से पीड़ित भयभीत और सदमे में हैं। याचिकाकर्ताओं को ज़मानत पर रिहा करने से पीड़ितों की सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी। साथ ही, अगर उन्हें ज़मानत पर रिहा किया गया तो वे गाँव की अन्य लड़कियों को भी परेशान करेंगे।
अदालत ने याचिकाकर्ताओं को ज़मानत देते हुए कहा कि सिर्फ़ इसलिए ज़मानत देने से इनकार नहीं किया जा सकता क्योंकि याचिकाकर्ताओं के कृत्यों से पीड़ित सदमे में हैं।
अदालत ने आगे टिप्पणी की कि "यदि याचिकाकर्ता दोषी पाए जाते हैं, तो उन्हें उनके द्वारा किए गए अपराध के लिए दोषी ठहराया जाएगा और सजा सुनाई जाएगी, लेकिन दोषसिद्धि से पहले उन्हें सजा के तौर पर ज़मानत देने से इनकार नहीं किया जा सकता"।
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को खुद को सुधारने का मौका मिलना चाहिए और कड़ी शर्तें लगाकर पीड़ितों के लिए खतरे से बचा जा सकता है।

