MV Act | मृतक की विवाहित बेटियां कंसोर्टियम लॉस के लिए मुआवजे की हकदार, वित्तीय निर्भरता की हानि के लिए नहींः HP हाईकोर्ट

Avanish Pathak

19 Jun 2025 5:14 PM IST

  • MV Act | मृतक की विवाहित बेटियां कंसोर्टियम लॉस के लिए मुआवजे की हकदार, वित्तीय निर्भरता की हानि के लिए नहींः HP हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने माना कि मोटर वाहन अधिनियम के तहत, आय के नुकसान के लिए मुआवजा केवल परिवार के उन सदस्यों को दिया जाता है जो मृतक पर आर्थिक रूप से निर्भर थे। हालांकि, विवाहित बेटियां अपने पिता पर आर्थिक रूप से निर्भर नहीं हैं, फिर भी कंसोर्टियम लॉस के मद में मुआवजे की हकदार हैं।

    जस्टिस विवेक सिंह ठाकुर ने कहा,

    "आश्रित कानूनी उत्तराधिकारी, अन्य मदों के तहत मुआवजे के अलावा कंसोर्टियम लॉस के भी हकदार होंगे, जबकि अन्य परिवार के सदस्य जो मृतक के आश्रित-कानूनी उत्तराधिकारी नहीं हैं, हालांकि, मुआवजे के हकदार नहीं होंगे, लेकिन कंसोर्टियम के नुकसान के हकदार होंगे जो प्यार और स्नेह, मार्गदर्शन और मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक नुकसान आदि के लिए दिया जाता है।"

    पृष्ठभूमि

    10 जुलाई 2009 को मृतक सूरत राम, अपने सहयोगी के साथ काम से लौटते समय ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी द्वारा बीमाकृत एक बस में सवार हुआ। चूंकि बस में भीड़ थी, इसलिए मृतक दरवाजे के पास खड़ा था। इसलिए जब चालक ने अचानक ब्रेक लगाया, तो वह बस से बाहर गिर गया और पीछे का टायर उसके बाएं पैर पर चढ़ जाने से घायल हो गया।

    उसे उसके सहकर्मी द्वारा शिमला के आईजीएमसी अस्पताल ले जाया गया, जिसने पुलिस को बयान दिया, जिसमें दुर्घटना के लिए चालक की लापरवाही को दोषी ठहराया गया। उसके बयान के आधार पर चालक के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। दुर्भाग्य से, मृतक की उसी दिन मृत्यु हो गई।

    इसके बाद, पुलिस ने लापरवाही से वाहन चलाकर मौत का कारण बनने के लिए चालक के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया। मृतक के परिवार के सदस्यों ने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण के समक्ष दावा याचिका दायर की। साक्ष्य का मूल्यांकन करने के बाद, न्यायाधिकरण ने दावेदारों को 15,80,000/- रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया।

    मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण के निर्णय से व्यथित होकर, ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी ने हाईकोर्ट के समक्ष अपील दायर की।

    तर्क

    बीमा कंपनी ने तर्क दिया कि दावेदारों ने यह साबित नहीं किया है कि बस चालक लापरवाही से वाहन चला रहा था, क्योंकि किसी स्वतंत्र प्रत्यक्षदर्शी से पूछताछ नहीं की गई थी। केवल मृतक के सहकर्मी ने ही बयान दिया था। इसने यह भी प्रस्तुत किया कि मृतक दुर्घटना के लिए आंशिक रूप से जिम्मेदार था, क्योंकि वह दरवाजे के पास लापरवाही से खड़ा था।

    कंपनी ने आगे बताया कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर मृतक की उम्र गलती से 50 साल मान ली गई थी। जबकि ग्राम पंचायत द्वारा बनाए गए परिवार रजिस्टर के अनुसार मृतक का जन्म 1954 में हुआ था और 2009 में दुर्घटना के समय उसकी उम्र 55 साल थी।

    इसलिए, इसने प्रस्तुत किया कि चूंकि मृतक 58 वर्ष की सेवानिवृत्ति आयु के करीब था, इसलिए 13 के बजाय 11 का गुणक लागू किया जाना चाहिए था।

    बीमा कंपनी ने यह भी दावा किया कि संपत्ति के नुकसान, अंतिम संस्कार के खर्च और कन्जार्टियम लॉस के लिए दी गई राशि गलत तरीके से दी गई थी, और कुल मिलाकर मुआवजा अत्यधिक था।

    जवाब में, दावेदारों ने तर्क दिया कि मृतक की मौत बस चालक की तेज और लापरवाही से गाड़ी चलाने के कारण हुई, जो कि प्रत्यक्षदर्शी के बयान से स्पष्ट था, जिसे एफआईआर में दर्ज किया गया था, और जांच अधिकारी की गवाही से समर्थित था।

    दावेदारों ने आगे प्रस्तुत किया कि मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण द्वारा दिया गया मुआवजा कम था, और इसलिए उन्होंने मुआवजे में वृद्धि का अनुरोध किया।

    निष्कर्ष

    न्यायालय ने कहा कि मृतक के सहकर्मी का बयान विश्वसनीय था, क्योंकि वह दुर्घटना के समय मौजूद था। साथ ही, उसका बयान सुसंगत था और एफआईआर में भी दर्ज किया गया था। न्यायालय ने कहा कि उसकी गवाही पर केवल इसलिए सवाल नहीं उठाया जा सकता क्योंकि वह मृतक को जानता था। अन्य प्रत्यक्षदर्शियों की अनुपस्थिति के संबंध में, न्यायालय ने कहा कि लोगों के लिए पुलिस और न्यायालय की कार्यवाही में शामिल होने से बचना आम बात है।

    न्यायालय ने बीमा कंपनी के इस तर्क को खारिज कर दिया कि मृतक आंशिक रूप से दोषी था, यह कहते हुए कि यह तर्क मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण के समक्ष नहीं उठाया गया था और इसका समर्थन करने के लिए कोई सबूत पेश नहीं किया गया था।

    हालांकि, न्यायालय ने स्वीकार किया कि मृत्यु के समय मृतक की आयु 55 वर्ष थी और माना कि मुआवज़े की गणना 13 के बजाय 11 के गुणक का उपयोग करके की जानी चाहिए थी।

    न्यायालय ने आगे कहा कि छह दावेदारों में से केवल मृतक की पत्नी और बेटा ही आर्थिक रूप से आश्रित थे, और इसलिए वे आय की हानि सहित मुआवज़े की हानि के हकदार थे।

    चार विवाहित बेटियां, जो अपने मृतक पिता पर आर्थिक रूप से आश्रित नहीं थीं, आय की हानि के लिए मुआवज़े की हकदार नहीं थीं, लेकिन उन्हें कन्जॉर्टियम लॉस के लिए 40,000 प्रत्येक का भुगतान किया गया। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि कन्जार्टियम लॉस, वित्तीय निर्भरता की हानि से भिन्न है, क्योंकि यह भावनात्मक और व्यक्तिगत हानि से संबंधित है, औरइस मामले में विवाहित बेटियों जैसे गैर-आश्रित परिवार के सदस्यों को भी प्रदान की जा सकती है।

    तदनुसार, हाईकोर्ट ने मृतक की सही आयु 55 वर्ष के आधार पर मुआवजे में संशोधन किया, और पत्नी और बेटे को वित्तीय निर्भरता की हानि के लिए 13,28,220 रुपये और साथ की हानि के लिए 40,000/- रुपये का मुआवजा प्रदान किया। हालांकि, विवाहित बेटियों को कन्जॉ‌र्टियम लॉस के लिए केवल 40,000/- रुपये का मुआवजा दिया गया।

    Next Story