अतिक्रमण की गई वन भूमि का मात्र उपयोग करना किसी व्यक्ति को मालिक द्वारा दायर बेदखली कार्यवाही में आवश्यक पक्ष नहीं बनाता: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
Shahadat
8 July 2025 5:08 AM

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने माना कि जो व्यक्ति किसी वन भूमि पर बने पथ या सड़क का मात्र उपयोग करते हैं, उनके पास अतिक्रमणकारियों के विरुद्ध बेदखली आदेश को चुनौती देने का अधिकार नहीं है।
जस्टिस ज्योत्सना रेवल दुआ:
"याचिकाकर्ता कलेक्टर वन के समक्ष लिस में आवश्यक पक्ष नहीं है। कलेक्टर वन द्वारा पारित आदेश को चुनौती देने के लिए उनके पास कोई अधिकार नहीं है। अतिक्रमण की गई/टूटी हुई वन भूमि पर अतिक्रमण का मात्र उपयोग करना किसी व्यक्ति को भूमि के मालिक द्वारा दोषियों के विरुद्ध दायर बेदखली कार्यवाही में आवश्यक पक्ष नहीं बनाता।"
पृष्ठभूमि तथ्य:
अगस्त, 2022 में कलेक्टर, वन प्रभाग कुल्लू ने कुल्लू में वन भूमि पर अवैध रूप से सीमेंटेड सड़क बनाने के लिए खंड विकास अधिकारी, नग्गर और ग्राम पंचायत, नौगी के खिलाफ बेदखली का आदेश पारित किया।
इसके बाद याचिकाकर्ता निशांत महाजन और एक अन्य ने आदेश 9 नियम 13 के तहत कलेक्टर वन के समक्ष बेदखली आदेश रद्द करने के लिए आवेदन दायर किया, जिसमें दावा किया गया कि यह एकपक्षीय रूप से पारित किया गया था। हालांकि, आवेदन खारिज कर दिया गया और याचिकाकर्ताओं ने फिर संभागीय आयुक्त के समक्ष अपील दायर की, जिसे सुने जाने के अधिकार की कमी के कारण खारिज कर दिया गया।
अपनी अपील और मूल बेदखली आदेश खारिज किए जाने से व्यथित होकर याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें दावा किया गया कि बेदखली आदेश ने उन्हें उनकी संपत्ति तक पहुंच से वंचित कर दिया और उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया।
तर्क:
राज्य ने तर्क दिया कि विवाद वन विभाग और अतिक्रमणकारियों, ग्राम पंचायत और खंड विकास अधिकारी के बीच था, जिन्होंने अनधिकृत रूप से वन भूमि पर कब्जा कर लिया। याचिकाकर्ताओं के पास वन भूमि पर कोई स्वामित्व अधिकार नहीं था और वे बेदखली को चुनौती नहीं दे सकते थे।
निष्कर्ष:
हाईकोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ता मूल बेदखली कार्यवाही में आवश्यक पक्ष नहीं है, क्योंकि उनके पास वन भूमि का स्वामित्व नहीं है।
कोर्ट ने माना,
"अतिक्रमित/टूटी हुई वन भूमि पर अतिक्रमण का मात्र उपयोग किसी व्यक्ति को भूमि के स्वामी द्वारा अपराधियों के विरुद्ध दायर बेदखली कार्यवाही में आवश्यक पक्ष नहीं बनाता।"
न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ताओं का दावा कि वे केवल सड़क के उपयोगकर्ता हैं, एक सुखभोगी अधिकार है। इसलिए यदि कलेक्टर के समक्ष भी दलील पेश की जाती तो भी मामले के निर्णय पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता। कलेक्टर वन के पास निजी सुखभोग दावों पर निर्णय लेने का अधिकार नहीं था।
न्यायालय ने पाया कि अभिलेखों के अनुसार, याचिकाकर्ता ने पहले संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत उसी बेदखली आदेश को चुनौती दी, जिसे खारिज कर दिया गया। इसलिए अब वे संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत उसी आदेश को फिर से चुनौती नहीं दे सकते, जैसा कि आदेश 2 नियम 2 सीपीसी द्वारा वर्जित है।
इसने आगे दर्ज किया कि यह भूमि याचिकाकर्ताओं के स्वामित्व में नहीं है। यह राज्य के स्वामित्व वाली वन भूमि है, जिस पर देवदार, कैल और पॉपुलर के पेड़ लगे हुए हैं।
न्यायालय ने पाया कि सीमांकन रिपोर्ट के अनुसार, यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ताओं ने यह पेश करके न्यायालय को गुमराह किया कि विचाराधीन सड़क "अनादि काल" से अस्तित्व में है। इसका उपयोग आम जनता भी करती है। सड़क का उपयोग आम जनता या याचिकाकर्ताओं के अलावा किसी और द्वारा नहीं किया जा रहा था।
इस प्रकार, हाईकोर्ट ने रिट याचिका खारिज की।
Case Name: Nishant Mahajan & Anr. v/s State of H.P. & Ors.