बीमा कंपनी मुआवज़ा देने से इनकार करने के लिए छिपे या अज्ञात प्रावधानों का इस्तेमाल नहीं कर सकती: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

Shahadat

7 Oct 2025 10:06 AM IST

  • बीमा कंपनी मुआवज़ा देने से इनकार करने के लिए छिपे या अज्ञात प्रावधानों का इस्तेमाल नहीं कर सकती: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि कोई बीमा कंपनी मुआवज़ा देने से इनकार करने के लिए उन प्रावधानों का सहारा नहीं ले सकती, जो समझौते पर हस्ताक्षर करते समय बीमित व्यक्ति को नहीं बताए गए।

    सद्भावना के सिद्धांत पर ज़ोर देते हुए अदालत ने टिप्पणी की कि बीमा कंपनी का यह कर्तव्य है कि वह बीमित व्यक्ति को सभी प्रावधानों के बारे में सूचित करे।

    ब्लू पेंसिल सिद्धांत (जो आपत्तिजनक प्रावधान को शुरू से ही अमान्य घोषित कर देता है) को लागू करते हुए और टेक्सको मार्केटिंग (प्रा.) लिमिटेड बनाम टाटा एआईजी जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, 2023 में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर भरोसा करते हुए अदालत ने कहा कि अपवाद प्रावधान और बाद में पॉलिसी अनुसूची पर लगाई गई मुहर अमान्य है और उसे हटाया जाना चाहिए।

    जस्टिस विवेक सिंह ठाकुर ने टिप्पणी की:

    "... पॉलिसी में निहित अपवाद खंड का खुलासा नहीं किया गया। इसलिए मुख्य पॉलिसी में निहित उक्त शर्त को बीमा कंपनी को उसके दायित्व से मुक्त करने का आधार नहीं बनाया जा सकता। बीमा कंपनी का यह कर्तव्य है कि वह बीमित व्यक्ति को सभी अपवाद खंडों का खुलासा करे, जिसने सद्भावनापूर्वक और अपवाद खंड की सूचना दिए बिना बीमा पॉलिसी खरीदी है।"

    केसर सिंह अप्रैल, 2006 से मेसर्स फर्मेंटा बायोटेक लिमिटेड में सहायक के रूप में कार्यरत है। उनका मासिक वेतन ₹2,500 और अतिरिक्त लाभ के रूप में ₹500 है। 2007 में फैक्ट्री गेट के पास एक वाहन की टक्कर से उनकी मृत्यु हो गई।

    इसके बाद उनकी पत्नी जमना देवी, दो बच्चों और माँ ने कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम, 1923 के तहत मुआवजे की मांग की। आयुक्त, कर्मचारी क्षतिपूर्ति न्यायालय, मंडी ने उन्हें दुर्घटना की तारीख के एक महीने बाद से 12% वार्षिक ब्याज सहित ₹3,14,880 का मुआवजा देने का आदेश दिया।

    बीमा कंपनी ने तर्क दिया कि मृतक एक ठेकेदार का कर्मचारी है, बीमित व्यक्ति का नहीं; और पॉलिसी में ठेकेदारों के कर्मचारियों के दायित्व को छोड़कर एक अपवाद खंड है।

    अदालत ने पाया कि मृतक का नाम 33 बीमित कर्मचारियों में है और अपवाद खंड पॉलिसी में न तो प्रकट किया गया और न ही दिखाई दे रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि बहिष्करण खंड बाद में स्टाम्प लगाकर बनाया गया और मूल पॉलिसी का हिस्सा नहीं है।

    इसके अलावा, अदालत ने यह भी कहा कि यद्यपि मृतक को ठेकेदार के माध्यम से काम पर रखा गया। फिर भी मुख्य नियोक्ता कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम, 1923 की धारा 12 के अनुसार मुआवज़ा देने के लिए उत्तरदायी है।

    Case Name: United India Insurance Company Ltd. V/s Jamna Devi & others

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