पीड़िता और आरोपी के बीच शत्रुतापूर्ण संबंधों का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन आवश्यक: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने छेड़छाड़ मामले में बरी करने का फैसला बरकरार रखा

Shahadat

30 Sept 2025 10:28 PM IST

  • पीड़िता और आरोपी के बीच शत्रुतापूर्ण संबंधों का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन आवश्यक: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने छेड़छाड़ मामले में बरी करने का फैसला बरकरार रखा

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने छेड़छाड़ के मामले में आरोपी को बरी करने का फैसला बरकरार रखते हुए कहा कि जब पीड़िता ने कहा कि उसके आरोपी के साथ अच्छे संबंध नहीं हैं। वह उससे बातचीत नहीं करती थी, तो उसकी गवाही में और अधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता है।

    जस्टिस राकेश कैंथला ने कहा:

    "सूचना देने वाली महिला ने स्वीकार किया कि उसके आरोपी के साथ शत्रुतापूर्ण संबंध थे। वह आरोपी से बातचीत नहीं करती थी। इसलिए उसकी गवाही को पूरी सावधानी और सतर्कता से देखा जाना आवश्यक है, खासकर पुलिस को मामले की सूचना देने में हुई देरी को देखते हुए।"

    यह मामला 2008 में सामने आया, जब शिकायतकर्ता घर लौट रही थी तो उसने आरोप लगाया कि आरोपी नशे में था और उसके साथ छेड़छाड़ करने लगा। उसने यह भी आरोप लगाया कि आरोपी ने उसके स्तन पकड़े और उसका शील भंग किया।

    घटना के 5 दिन बाद पीड़िता ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 341 (गलत तरीके से रोकना) और धारा 354 (महिला की गरिमा भंग करने के लिए हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) के तहत दोषी ठहराया।

    हालांकि, अपीलीय अदालत ने आरोपी को बरी कर दिया और कहा कि अभियोजन पक्ष का बयान संदेह से परे साबित नहीं हुआ।

    इसके बाद राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में अपील दायर की।

    हाईकोर्ट ने पाया कि आरोपी के बयान में विरोधाभास है, क्योंकि शिकायत घटना के पांच दिन बाद दर्ज की गई और पीड़िता का स्पष्टीकरण भी विरोधाभासी है।

    इसके अलावा, पीड़िता ने दावा किया कि उसे एक 'बीड़' के नीचे घसीटा गया, जो उसकी शिकायत में नहीं है। साथ ही उसने कहा कि एक जीप ने उसे बचाया, जबकि गवाहों ने एक मारुति कार का ज़िक्र किया।

    अदालत ने टिप्पणी की कि आरोपी द्वारा पहले छेड़छाड़ का आरोप लगाने वाली अन्य महिला की गवाही भी साक्ष्य अधिनियम की धारा 14 के तहत अस्वीकार्य है।

    इस प्रकार, अदालत ने अपीलीय अदालत का फैसला बरकरार रखा और आरोपी को बरी कर दिया।

    Case Name: State of H.P. v/s Rajesh Kumar

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