HP Co-Operative Societies Act | किसी को भी बिना सुनवाई के दोषी नहीं ठहराया जा सकता, भले ही अधिनियम में आपत्तियां दर्ज करने का प्रावधान न हो: हाईकोर्ट

Shahadat

16 Aug 2025 10:18 AM IST

  • HP Co-Operative Societies Act | किसी को भी बिना सुनवाई के दोषी नहीं ठहराया जा सकता, भले ही अधिनियम में आपत्तियां दर्ज करने का प्रावधान न हो: हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि भले ही हिमाचल प्रदेश सहकारी समिति अधिनियम, 1968 में निष्पादन कार्यवाही में आपत्तियां दर्ज करने के लिए विशिष्ट प्रावधान न हों, फिर भी प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत लागू होने चाहिए और ऋणी को सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए।

    मंडी के कलेक्टर-सह-उप रजिस्ट्रार का आदेश रद्द करते हुए जस्टिस अजय मोहन गोयल ने टिप्पणी की:

    "प्राधिकरण द्वारा दिए गए निष्कर्ष कि चूंकि हिमाचल प्रदेश सहकारी समिति अधिनियम और नियमों में निष्पादन कार्यवाही के निर्णय के दौरान कोई आपत्ति दर्ज करने का प्रावधान नहीं है, इसलिए किसी भी आपत्ति पर विचार नहीं किया जा सकता, कानून की दृष्टि में टिकने योग्य नहीं हैं। प्राकृतिक न्याय की व्यवस्था अंतर्निहित और अंतर्निहित है और किसी को भी बिना सुनवाई के दोषी नहीं ठहराया जा सकता।"

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि मंडी शहरी सहकारी बैंक लिमिटेड द्वारा उसके खिलाफ निष्पादन कार्यवाही शुरू की गई। हालांकि, निष्पादन कार्यवाही के विरुद्ध उनकी आपत्तियों को इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि हिमाचल प्रदेश सहकारी समिति अधिनियम के तहत निष्पादन के दौरान आपत्ति उठाने का कोई प्रावधान नहीं है।

    हाईकोर्ट ने कहा कि आपत्तियों को खारिज करने वाला आदेश कानून की दृष्टि में टिकने योग्य नहीं है। उसने कहा कि हिमाचल प्रदेश सहकारी समिति अधिनियम, 1978 की धारा 87 और 89 के अनुसार, पंचाटों का निष्पादन कानून और नियमों के अनुसार होता है।

    हालांकि, न्यायालय ने टिप्पणी की कि पंचाट धारक द्वारा दायर निष्पादन पर दूसरे पक्ष को सुने बिना "साधारण तरीके से" निर्णय नहीं लिया जा सकता। न्यायालय ने कहा कि "किसी को भी बिना सुने दोषी नहीं ठहराया जा सकता" और पंचाट के निष्पादन का अधिकार स्वाभाविक रूप से यह दायित्व रखता है कि यदि कानून द्वारा अनुमति दी गई हो तो निर्णय ऋणी को निष्पादन का विरोध करने का अवसर प्रदान किया जाए।

    इस प्रकार, न्यायालय ने याचिका स्वीकार की और माना कि प्राधिकरण का यह निष्कर्ष कि अधिनियम में विशिष्ट प्रावधानों के अभाव के कारण कोई आपत्ति स्वीकार नहीं की जा सकती, टिकने योग्य नहीं है।

    Case Name: Smt. Nalini Vidya v/s The Mandi Urban Co-operative Bank Limited

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