पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कथित तौर पर 'पाकिस्तान जिंदाबाद' के नारे लगाने के लिए राजद्रोह का आरोप तय करने को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया
Shahadat
10 Jan 2024 1:34 PM IST
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने सत्र न्यायालय के आदेश के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिका पर हरियाणा सरकार को नोटिस जारी किया। उक्त याचिका में याचिकाकर्ता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124 ए के तहत आरोप तय किए गए कि उसने भारत के खिलाफ 'गंदी भाषा' का इस्तेमाल किया और ' पाकिस्तान जिंदाबाद' का नारा लगाया।
कथित घटना का वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस ने आईपीसी की धारा 153ए, 124ए, 504 के तहत एफआईआर दर्ज की और पेशे से मजदूर आरोपी इरशाद को "कई समूहों के बीच दुश्मनी" पैदा करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया।
अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार, उनका इकबालिया बयान दर्ज किया गया, जिसमें उन्होंने कहा कि वह भारत-पाकिस्तान मैच के संबंध में व्यक्ति के साथ चर्चा में शामिल थे, जिसमें उन्होंने कथित तौर पर कहा कि क्रिकेटर केएल राहुल ने अच्छा नहीं खेला। इसी वजह से, उनकी पसंदीदा टीम पाकिस्तान ने मैच जीत लिया।
जस्टिस एन.एस. शेखावत ने मामले को 24 अप्रैल तक के लिए स्थगित करते हुए राज्य को नोटिस जारी किया।
सत्र न्यायालय के समक्ष कार्यवाही
अक्टूबर, 2023 में सत्र न्यायालय, नूंह (हरियाणा) ने आदेश पारित किया, जिसमें कहा गया कि "सीआरपीसी की धारा 173 के तहत पुलिस रिपोर्ट और संबंधित दस्तावेजों के अवलोकन से प्रथम दृष्टया धारा 153-ए और 504 के तहत दंडनीय अपराध का मामला नहीं बनता। हालांकि, आरोपी के खिलाफ आईपीसी, 1860 की धारा 124-ए के तहत मामला बनता है।"
नतीजतन, सत्र न्यायाधीश ने आईपीसी की धारा 124-ए के तहत "राजद्रोह" करने का आरोप तय करने का फैसला किया। इसके बाद दिसंबर में अभियोजन पक्ष के गवाह को मार्च 2024 के लिए समन जारी किया गया।
राजद्रोह को स्थगित रखने का सुप्रीम कोर्ट का आदेश
गौरतलब है कि मई 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि आईपीसी की धारा 124ए के तहत 152 साल पुराने राजद्रोह कानून को तब तक प्रभावी रूप से स्थगित रखा जाना चाहिए, जब तक कि केंद्र सरकार प्रावधान पर पुनर्विचार नहीं करती। अंतरिम आदेश में न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों से यह भी आग्रह किया कि वे पुनर्विचार के दौरान उक्त प्रावधान के तहत कोई भी एफआईआर दर्ज करने से बचें।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने कहा था,
"हमें उम्मीद है कि केंद्र और राज्य सरकारें आईपीसी की धारा 124 ए के तहत कोई भी एफआईआर दर्ज करने, जांच जारी रखने या कठोर कदम उठाने से बचेंगी। अगली पुनर्विचार समाप्त होने तक कानून के इस प्रावधान का उपयोग नहीं करना उचित होगा।"
कोर्ट ने यह भी कहा कि जिन लोगों पर पहले से ही आईपीसी की धारा 124ए के तहत मामला दर्ज है और वे जेल में हैं, वे जमानत के लिए संबंधित अदालतों से संपर्क कर सकते हैं। यह भी फैसला सुनाया गया कि यदि कोई नया मामला दर्ज किया जाता है तो उचित पक्ष उचित राहत के लिए अदालतों से संपर्क करने के लिए स्वतंत्र हैं। अदालतों से अनुरोध किया जाता है कि वे अदालत द्वारा पारित आदेश को ध्यान में रखते हुए मांगी गई राहत की जांच करें।
सितंबर में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि बड़ी पीठ के संदर्भ की आवश्यकता है क्योंकि 1962 के केदार नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य के फैसले में 5-न्यायाधीशों की पीठ ने इस प्रावधान को बरकरार रखा था।
सीजेआई के नेतृत्व वाली पीठ ने कहा,
छोटी पीठ होने के नाते केदार नाथ पर संदेह करना या उसे खारिज करना उचित नहीं होगा।
उल्लेखनीय है कि नए बीएनएस के तहत धारा 152 (भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाला अधिनियम) के तहत राजद्रोह के पहलुओं को बरकरार रखा गया, जिसमें कहा गया कि जो कोई भी जानबूझकर बोले गए या लिखित शब्दों से, या संकेत, या दृश्य प्रतिनिधित्व द्वारा, या इलेक्ट्रॉनिक संचार द्वारा या वित्तीय साधनों के उपयोग से, या अन्यथा, अलगाव या सशस्त्र विद्रोह या विध्वंसक गतिविधियों को उत्तेजित या उत्तेजित करने का प्रयास करता है, या अलगाववादी गतिविधियों की भावनाओं को प्रोत्साहित करता है या भारत की संप्रभुता या एकता और अखंडता को खतरे में डालता है; या ऐसे किसी भी कार्य में शामिल होता है, या करता है तो उसे आजीवन कारावास या कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसे सात साल तक बढ़ाया जा सकता है। साथ ही जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी होगा।
याचिकाकर्ता के वकील: राजीव गोदारा और तालीम हुसैन।
केस टाइटल: इरशाद @ सद्दाम बनाम हरियाणा राज्य