शादी के झूठे वादे पर बलात्कार: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने महिला को प्रेग्नेंसी टर्मिनेट करने की अनुमति दी

Shahadat

30 Jan 2024 5:29 AM GMT

  • शादी के झूठे वादे पर बलात्कार: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने महिला को प्रेग्नेंसी टर्मिनेट करने की अनुमति दी

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने शादी के झूठे वादे पर बलात्कार का दावा करने वाली महिला को 12 सप्ताह से अधिक की प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट करने की अनुमति दी। कोर्ट ने उक्त अनुमति यह देखते हुए दी कि अवांछित प्रेग्नेंसी उसे जीवन में रोजगार और परिवार की आय में योगदान जैसे अन्य अवसरों को हासिल करने की उसकी क्षमता को प्रभावित कर सकती है।

    जस्टिस विनोद एस भारद्वाज ने कहा,

    "अवांछित प्रेग्नेंसी के लिए मजबूर होने पर महिला को महत्वपूर्ण शारीरिक और भावनात्मक चुनौतियों का अनुभव होने की संभावना होती है। बच्चे के जन्म के बाद भी ऐसी प्रेग्नेंसी के परिणामों से निपटने से याचिकाकर्ता पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है, जिससे जीवन में अन्य अवसरों को हासिल करने की क्षमता प्रभावित होती है, जैसे रोज़गार और अपने परिवार की आय में योगदान देना।"

    कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता की अविवाहित स्थिति को देखते हुए प्रेग्नेंसी जारी रखने से याचिकाकर्ता और संभावित बच्चे दोनों को महत्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक नुकसान हो सकता है। प्रेग्नेंसी का भावनात्मक प्रभाव ही याचिकाकर्ता के मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डालने के लिए पर्याप्त है।

    अदालत 30 साल की अविवाहित लड़की की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसने 12 सप्ताह से अधिक की प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट करने का निर्देश देने की मांग की थी। यह प्रस्तुत किया गया कि आरोपी ने शादी के बहाने उसके साथ संबंध स्थापित करने के लिए उसकी सहमति ली और प्रेग्नेंट होने के बाद उससे बचना शुरू कर दिया। इसके बाद आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 के तहत एफआईआर दर्ज की गई।

    दलीलों पर विचार करते हुए न्यायालय ने X बनाम प्रधान सचिव स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसमें न्यायालय ने कहा,

    "महिला का प्रजनन विकल्प का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अविभाज्य हिस्सा है। उसे शारीरिक अखंडता का पवित्र अधिकार है।"

    सुप्रीम कोर्ट ने एमटीपी अधिनियम की धारा 3(2) के संशोधित स्पष्टीकरण I का भी उल्लेख किया, जिसमें अविवाहित महिलाओं को अधिनियम के दायरे में शामिल किया गया और "स्पष्ट रूप से ऐसी स्थिति पर विचार किया गया, जिसमें विफलता के परिणामस्वरूप अवांछित गर्भधारण से बचना शामिल है।"

    जस्टिस भारद्वाज ने कहा कि वर्तमान प्रेग्नेंसी को जारी रखने से याचिकाकर्ता को काफी परेशानी होने की आशंका है, जो उसे उस दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति की लगातार याद दिलाती रहेगी, जिसे उसने झेला है।

    उपरोक्त के आलोक में न्यायालय ने माता कौशल्या सरकारी अस्पताल, पटियाला के प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग के प्रमुख के मेडिकल बोर्ड को याचिकाकर्ता की मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नोंसी के लिए आवश्यक सभी उचित और आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया।

    अपीयरेंस: मुनीष राज चौधरी, याचिकाकर्ता के वकील।

    निहारिका शर्मा, एएजी, पंजाब।

    केस टाइटल: एक्स बनाम पोस्ट ग्रेजुएट मिडिकल शिक्षा और अनुसंधान संस्थान, चंडीगढ़

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