किसी भी पत्नी से यह उम्मीद नहीं की जाती कि वह साथी की खुशी के लिए अपने शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य का त्याग करेगी: केरल हाइकोर्ट ने पति की तलाक याचिका खारिज की

Amir Ahmad

9 Feb 2024 1:26 PM GMT

  • किसी भी पत्नी से यह उम्मीद नहीं की जाती कि वह साथी की खुशी के लिए अपने शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य का त्याग करेगी: केरल हाइकोर्ट ने पति की तलाक याचिका खारिज की

    केरल हाइकोर्ट ने कथित क्रूरता, परित्याग और पत्नी द्वारा वैवाहिक दायित्वों को पूरा न करने के आधार पर पति द्वारा दायर वैवाहिक अपील में विवाह से अलग से इनकार किया। कोर्ट ने कहा कि पत्नी से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह उसका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य त्याग करके पति की क्रूरता के कृत्यों को सहन करेगी।

    अपीलकर्ता (पति) ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती देते हुए हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसके द्वारा प्रतिवादी (पत्नी) द्वारा शारीरिक और मानसिक शोषण सहित वैवाहिक क्रूरता के आरोप लगाए जाने के बाद उसे विवाह से अलग होने से इनकार किया था।

    जस्टिस अनिल के नरेंद्रन और जस्टिस जी गिरीश की खंडपीठ ने पाया कि यह अपीलकर्ता पति ही है, जिसने पत्नी के खिलाफ क्रूरता की है।

    न्यायालय ने कहा,

    "किसी भी पत्नी से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह इस मामले में अपीलकर्ता के खिलाफ प्रतिवादी द्वारा पेश किए गए सबूतों के आधार पर क्रूरता के कृत्यों को बर्दाश्त करेगी और अपने जीवनसाथी की परपीड़क खुशी के लिए अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य और व्यक्तिगत सुरक्षा का त्याग करेगी। ऐसा होने पर अपीलकर्ता क्रूरता और परित्याग के आधार पर प्रतिवादी के साथ अपने विवाह को विघटित करने की राहत पाने के लिए अयोग्य है।”

    इसके अलावा अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता द्वारा पत्नी के खिलाफ लगाए गए आरोप असंगति के मुद्दे हैं, जो विवाह के विघटन के लिए क्रूरता की श्रेणी में नहीं आएंगे। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर भरोसा करते हुए कोर्ट ने कहा कि महज झुंझलाहट, चिड़चिड़ापन और अलग-अलग घटनाएं क्रूरता नहीं मानी जाएंगी।

    न्यायालय ने कहा,

    “जहां तक ​​वर्तमान मामले का सवाल है, अपीलकर्ता द्वारा लगाए गए आरोप काफी हद तक अपीलकर्ता और उसके माता-पिता के हितों का ख्याल रखते हुए सौहार्दपूर्ण पारिवारिक जीवन जीने में प्रतिवादी की असंगति के बारे में हैं। जीवन साथी के लिए जिम्मेदार उपरोक्त असंगति को ऐसी श्रेणी की क्रूरता के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है, जो वैवाहिक बंधन को तोड़ने की गारंटी दे।”

    अपीलकर्ता (पति) ने आरोप लगाया कि 1994 में उनकी शादी के बाद थोड़े समय के भीतर ही पत्नी ने उनके साथ दुर्व्यवहार करना, अशिष्ट व्यवहार करना और उनका अपमान करना शुरू कर दिया। यह आरोप लगाया गया कि अपीलकर्ता को किराए के घर में रहना पड़ा और अपने माता-पिता के आग्रह पर उन्हें छोड़ना पड़ा। अपीलकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि पत्नी वैवाहिक दायित्वों और कर्तव्यों का पालन नहीं कर रही थी।

    उसने आरोप लगाया कि उसने खाना बनाने, घरेलू काम करने आदि से इनकार कर दिया। अपीलकर्ता ने पुलिस स्टेशन में पत्नी के खिलाफ वैवाहिक क्रूरता का मामला भी दर्ज कराया। उन्होंने यह भी कहा कि पत्नी अपने बेटे की देखभाल नहीं करती थी। इस प्रकार, अपीलकर्ता क्रूरता परित्याग और वैवाहिक दायित्वों को पूरा न करने के आधार पर विवाह से अलग होने की मांग करता है।

    दूसरी ओर प्रतिवादी-पत्नी ने कहा कि उसे शारीरिक और मानसिक यातना की असहनीय क्रूरता का सामना करना पड़ा। उसने आरोप लगाया कि अपीलकर्ता और उसके माता-पिता ने अधिक दहेज की मांग करते हुए उसके साथ दुर्व्यवहार किया और उसे परेशान किया। उसने यह भी आरोप लगाया कि अपीलकर्ता बुरी संगत में रहने वाला शराबी है।

    उसने कहा कि उसे अक्सर भोजन और पानी के बिना भूखा रखा जाता था और उसे अपने बेटे से मिलने से भी रोका जाता था। प्रतिवादी-पत्नी ने तर्क दिया कि वह विवाह से अलग होना नहीं चाहती, क्योंकि वह इसकी पवित्रता में विश्वास करती है।

    कोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट ने विवाह से अलग होने की मंजूरी देने से इनकार किया, क्योंकि अपीलकर्ता-पति यह साबित करने में विफल रहा कि प्रतिवादी-पत्नी ने उसके साथ क्रूरता की।

    अदालत ने पाया कि असभ्य व्यवहार के सामान्य आरोपों के अलावा पत्नी के खिलाफ क्रूरता का कोई विशेष मामला सामने नहीं आया। इसमें कहा गया कि पति ने पत्नी के असभ्य या क्रूर व्यवहार की घटनाओं को साबित करने के लिए कोई गवाह या मौखिक सबूत पेश नहीं किया।

    इसमें आगे कहा गया कि प्रतिवादी-पत्नी ने गवाहों के बयान पेश किए, जो साबित करते हैं कि उनके खिलाफ क्रूरता, शारीरिक और मानसिक यातना दी गई। इस प्रकार, अदालत ने कहा कि यह अपीलकर्ता-पति ही है, जिसने पत्नी के खिलाफ क्रूरता को कायम रखा। इसमें पाया गया कि वैवाहिक मुद्दों में ऐसा आचरण, जो दूसरे साथी के जीवन को खतरे में डालता है, क्रूरता की श्रेणी में आएगा।

    अदालत ने इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि अपीलकर्ता द्वारा घर से बुरी तरह पीटने के बाद प्रतिवादी-पत्नी को माता-पिता के घर ले जाना पड़ा। यह भी पाया गया कि अशिक्षित और बेरोजगार होने के कारण प्रतिवादी-पत्नी को अकेले अपने बच्चे के खर्चों की देखभाल न करने के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। इस प्रकार न्यायालय ने कहा कि पत्नी के खिलाफ क्रूरता के आरोप लगाना संभव नहीं है।

    तदनुसार न्यायालय ने वैवाहिक अपील खारिज की और विवाह से अलग करने को इनकार करने वाले फैमिली कोर्ट का आदेश बरकरार रखा।

    अपीलकर्ता के वकील- जिमी जॉर्ज और एम.आर.सुरेश।

    साइटेशन- लाइवलॉ (केर) 105 2024।

    केस टाइटल- एडी बनाम बी।

    केस नंबर- MAT.अपील नंबर 129 ऑफ 2016

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