NDPS Act | भौतिक कब्ज़ा के साथ-साथ सचेत कब्ज़ा भी अपराध के गठन के लिए आवश्यक तत्व: मद्रास हाइकोर्ट

Amir Ahmad

24 Feb 2024 1:24 PM GMT

  • NDPS Act | भौतिक कब्ज़ा के साथ-साथ सचेत कब्ज़ा भी अपराध के गठन के लिए आवश्यक तत्व: मद्रास हाइकोर्ट

    मद्रास हाइकोर्ट ने हाल ही में देखा कि वास्तविक भौतिक कब्जे के साथ सचेत कब्ज़ा नारकोटिक ड्रग्स और साइकोट्रोपिक पदार्थ अधिनियम (Narcotic Drugs and Psychotropic Substances Act) के तहत अपराध का गठन करने के लिए आवश्यक तत्व है।

    जस्टिस विवेक कुमार सिंह ने कहा कि एक्टस रीस और मेन्स री की तरह, जो आपराधिक कानून में आवश्यक तत्व है, NDPS Act में दवाओं का भौतिक साथ ही सचेत कब्ज़ा भी आवश्यक तत्व है।

    अदालत ने कहा,

    “इस प्रकार हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि सचेत कब्जे का मतलब कब्जे की वास्तविक स्थिति है, जिसे अवैध सामग्री के भौतिक कब्जे के साथ माना जाना तय है। जैसे आपराधिक कानून में एक्टस रीस' और 'मेन्स रीस' आपराधिक अपराध का गठन करने के लिए दो आवश्यक तत्व हैं, वही DPS Act के लिए भी लागू होता है, जहां शारीरिक साथ ही मानसिक रूप से नशीली दवाओं का कब्ज़ा, उसी कानून के तहत अपराध का गठन करने के लिए आवश्यक तत्व हैं।”

    अदालत ने कहा कि नशीली दवाओं की तस्करी से जुड़े अपराधों ने देश की वित्तीय सुरक्षा को प्रभावित किया और राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों में योगदान दिया, क्योंकि इससे आतंकवादी संगठनों को धन मिलता था। इस प्रकार, अदालत ने इस बात पर प्रकाश डाला कि यह सुनिश्चित करने के लिए संतुलन बनाना होगा कि गंभीर अपराधों में शामिल अपराधियों को सजा नहीं मिले और साथ ही किसी निर्दोष को कानून की प्रतिकूल व्याख्या से बचाया जाए। अदालत की राय में सचेत कब्जे के नियम ने यह संतुलन प्रदान किया।

    अदालत आपराधिक अपील में दायर आवेदन पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें ट्रायल कोर्ट की सजा पर रोक लगाने और जमानत की मांग की गई। पुलिस ने याचिकाकर्ताओं को 23 किलोग्राम गांजा के साथ बाइक पर रोका था। स्पेशल एडीशनल जज ने दोनों याचिकाकर्ताओं बाइक के चालक और पीछे बैठे व्यक्ति को दस साल के कठोर कारावास और डिफ़ॉल्ट के मामले में 12 महीने के साधारण कारावास के साथ 1,00,000/- रुपये का जुर्माना भरने का दोषी ठहराया।

    बाइक चला रहे याचिकाकर्ता के संबंध में यह तर्क दिया गया कि अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर सका कि उसकी अन्य आरोपियों के साथ सांठगांठ है, या उसने अन्य आरोपियों को कहां लिफ्ट दी है। यह तर्क दिया गया कि कोई भी सामान्य व्यक्ति पुलिस अधिकारियों को देखकर घटनास्थल से भाग जाएगा और उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं है।

    याचिकाकर्ता, जो पीछे की सीट पर बैठा था, उसके संबंध में यह तर्क दिया गया कि उसे लगभग 7 महीने तक कैद में रखा गया और मुकदमे के लंबित रहने तक उसे अग्रिम जमानत भी दे दी गई। इस प्रकार, याचिकाकर्ताओं ने जमानत मांगी और अदालत को सूचित किया कि वे अदालत द्वारा लगाई गई किसी भी शर्त का पालन करने के लिए तैयार हैं।

    हालांकि, राज्य ने जमानत देने पर आपत्ति जताई और कहा कि भले ही जांच में खामियां हों, लेकिन केवल इससे आरोपी को लाभ नहीं मिल सकता। यह भी कहा गया कि आरोपी पर पहले भी मामले दर्ज हैं। अभियोजन पक्ष ने यह भी बताया कि उन्होंने जानबूझकर प्रतिबंधित पदार्थ रखने की बात साबित की है। इस प्रकार DPS Act की धारा 37(1)(बी)(ii) के तहत बनाई गई रोक लागू होती है।

    इन दलीलों पर ध्यान देते हुए अदालत याचिकाकर्ता की पृष्ठभूमि और मामले में शामिल तस्करी की मात्रा को देखते हुए जमानत देने के लिए इच्छुक नहीं है।

    दूसरे याचिकाकर्ता के संबंध में अदालत ने कहा कि अगर उसे प्रतिबंधित पदार्थ के कब्जे के बारे में पता नहीं होता तो वह दोपहिया वाहन रोक देता और घटना स्थल से भाग नहीं पाता। इस प्रकार, अदालत ने पाया कि उसके अपराध पर विश्वास करने के लिए उचित आधार है, जो उसे जमानत का अधिकार नहीं देगा।

    केस टाइटल- धर्म बनाम पुलिस इंस्पेक्टर

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