[CrPC की धारा 97] कारावास के अवैध साबित होने तक नाबालिग बच्चे की पिता की कस्टडी में तलाशी वारंट जारी करने का कोई आधार नहीं: जम्मू-कश्मीर हाइकोर्ट
Amir Ahmad
29 Feb 2024 11:52 PM IST
यह स्पष्ट करते हुए कि सीआरपीसी की धारा 97 के तहत पिता द्वारा अपने बच्चे की कस्टडी को अवैध कारावास नहीं माना जा सकता है, जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाइकोर्ट ने कहा कि नाबालिग बच्चों की कस्टडी उनके पिता द्वारा किए जाने को अपराध नहीं कहा जा सकता, जिसके लिए उक्त प्रावधान लागू किया जा सकता है।
जस्टिस संजय धर की पीठ ने इस बात पर जोर दिया,
“जब तक रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री से यह नहीं पता चलता कि किसी व्यक्ति को कैद करना अवैध प्रकृति का है और यह अपराध की श्रेणी में आता है, मजिस्ट्रेट सीआरपीसी की धारा 97 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग नहीं कर सकता है और ऐसे व्यक्ति की पेशी के लिए तलाशी वारंट जारी करें।”
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला अलग हो चुके जोड़े के बीच अपने नाबालिग बच्चे की कस्टडी को लेकर विवाद से जुड़ा है। बच्चे की भलाई को लेकर चिंतित मां ने सीआरपीसी की धारा 97 लागू की। बच्चे को पेश करने के लिए तलाशी वारंट की मांग कर रहे थे, जो पिता की कस्टडी में था। मजिस्ट्रेट ने वारंट मंजूर कर लिया, जिसके बाद पिता ने इसे हाइकोर्ट में चुनौती दी।
पिता ने अपने कानूनी वकील के माध्यम से तर्क दिया कि सीआरपीसी की धारा 97 इस मामले में लागू नहीं होता है, क्योंकि बच्चे की उसकी कस्टडी को अवैध कारावास के रूप में नहीं माना जा सकता है। उन्होंने आगे तर्क दिया कि प्राकृतिक अभिभावक के रूप में उन्हें अपने बच्चे की कस्टडी का अधिकार है।
कोर्ट की टिप्पणियां
प्रतिद्वंद्वी दलीलों पर विचार करने के बाद ऐसे वारंट देने से पहले अपराध की श्रेणी में अवैध कारावास स्थापित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए जस्टिस धर ने सीआरपीसी की धारा 97 के प्रावधानों पर विचार-विमर्श किया।
पीठ ने रेखांकित किया,
“सीआरपीसी की धारा 97 के तहत मजिस्ट्रेट द्वारा तलाशी वारंट जारी करने से पहले दो चीजें आवश्यक हैं। एक तो यह कि किसी व्यक्ति को कैद में रखा जाना चाहिए और दूसरा यह कि ऐसे व्यक्ति को कैद में रखना अपराध माना जाना चाहिए।”
अदालत ने "रमेश बनाम लक्ष्मी बाई" (1998) पर भरोसा किया जहां यह माना गया कि धारा 97 सीआरपीसी प्रथम दृष्टया मामले के तथ्यों और परिस्थितियों से आकर्षित नहीं होती, जब बच्चा अपने पिता के साथ रह रहा था।
इसके अलावा अदालत ने "शमीम अहमद बनाम आशिया बेगम" (2016) में अपने स्वयं के फैसले का हवाला दिया, जिसमें दोहराया गया कि नाबालिग बच्चों के पिता द्वारा उनकी कस्टडी को अपराध नहीं कहा जा सकता, जिसके लिए जम्मू-कश्मीर सीआरपीसी की धारा 100 के तहत अधिकार प्राप्त हैं, जो केंद्रीय सीआरपीसी की धारा 97 के अनुरूप है, उसको लागू किया जा सकता है।
इन टिप्पणियों और कानूनी मिसालों पर विचार करते हुए हाइकोर्ट ने पिता की याचिका स्वीकार कर ली और बच्चे को पेश करने के निर्देश देने वाले मजिस्ट्रेट का आदेश रद्द कर दिया। हालांकि अदालत ने स्पष्ट किया कि मां को अभी भी संरक्षक और वार्ड अधिनियम (Guardians and Wards Act) के तहत उचित कानूनी चैनलों के माध्यम से बच्चे की स्थायी कस्टडी के मुद्दे को आगे बढ़ाने का अधिकार है।