गुजरात हाईकोर्ट ने पीएम मोदी डिग्री मानहानि केस में अरविंद केजरीवाल और संजय सिंह के खिलाफ जारी समन रद्द किया

Shahadat

16 Feb 2024 6:23 AM GMT

  • गुजरात हाईकोर्ट ने पीएम मोदी डिग्री मानहानि केस में अरविंद केजरीवाल और संजय सिंह के खिलाफ जारी समन रद्द किया

    गुजरात हाईकोर्ट ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शिक्षा डिग्री के संबंध में गुजरात यूनिवर्सिटी द्वारा दायर मानहानि मामले में मजिस्ट्रेट अदालत द्वारा उनके खिलाफ जारी समन की पुष्टि करने वाले सत्र न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की।

    जस्टिस हसमुख डी. सुथार की पीठ ने 2 फरवरी को दोनों पक्षों को सुनने के बाद याचिकाओं पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था।

    गुजरात के अहमदाबाद में सत्र न्यायालय द्वारा दोनों के पुनर्विचार आवेदन खारिज करने के 4 दिन बाद दोनों ने पिछले साल सितंबर में हाईकोर्ट का रुख किया था। अपील में इस मुद्दे को भी उठाया गया कि शिकायत का बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर भयानक प्रभाव पड़ रहा है।

    उल्लेखनीय है कि कथित टिप्पणियां केजरीवाल द्वारा 1 अप्रैल, 2023 को प्रेस कॉन्फ्रेंस में की गई थीं और सिंह ने कथित तौर पर 2 अप्रैल, 2023 को आयोजित अन्य प्रेस कॉन्फ्रेंस में ये बातें कही थीं। इसके बाद गुजरात यूनिवर्सिटी ने अहमदाबाद में मजिस्ट्रेट अदालत के समक्ष उनके खिलाफ आपराधिक मानहानि की शिकायत दायर की।

    भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 500 के तहत गुजरात यूनिवर्सिटी द्वारा अपने रजिस्ट्रार डॉ. पीयूष एम. पटेल के माध्यम से दायर आपराधिक शिकायत में केजरीवाल और सिंह के कथित बयानों का हवाला दिया गया, जिसमें उन पर प्रेस कॉन्फ्रेंस में व्यंग्यात्मक और अपमानजनक बयान देने का आरोप लगाया गया। ट्विटर हैंडल पर मोदी की डिग्री को लेकर यूनिवर्सिटी पर निशाना साधा जा रहा है। उन्हें अदालत में पेश होने के लिए समन जारी किया गया।

    एचसी के समक्ष अपनी अपील में केजरीवाल ने तर्क दिया कि कथित अपमानजनक टिप्पणियां उनके द्वारा प्रेस कॉन्फ्रेंस में की गई थीं, जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री की डिग्री के बारे में महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया था। ऐसा करके उन्होंने अपने कर्तव्य का निर्वहन किया। यह कहकर भारत के लोगों को जागृत किया कि महान राष्ट्र भारत के प्रधानमंत्री सहित संवैधानिक पद पर रहने के लिए शिक्षित और योग्य व्यक्तियों का हकदार है। इसलिए उक्त बयान मानहानि के दायरे में नहीं आ सकते।

    उनकी अपील में यह भी तर्क दिया गया कि कथित बयानों के मात्र अवलोकन से आईपीसी की धारा 499 का कोई भी घटक आकर्षित नहीं होगा, जिससे उनके खिलाफ मुकदमा शुरू करने और जारी रखने की आवश्यकता होगी, क्योंकि उन्होंने लोगों को जागृत करने के लिए राजनीतिक चर्चा के दौरान सरल, सहज और सीधे बयान दिए।

    अपील में दृढ़ता से तर्क दिया गया कि न तो प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाने के कथित कृत्य और न ही भारत के माननीय प्रधानमंत्री की डिग्री मांगने के कथित कृत्य को मानहानिकारक बयान के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।

    उनकी याचिका में यह भी तर्क दिया गया कि अदालत ने समन आदेश पारित करने में भारी गलती की, क्योंकि वह यह ध्यान देने में विफल रही कि केवल 'पीड़ित' व्यक्ति के पास ही मानहानि का मामला शुरू करने और शुरू करने का अधिकार है। वर्तमान मामले में गुजरात यूनिवर्सिटी राज्य का साधन है, इसलिए उसे पीड़ित व्यक्ति नहीं कहा जा सकता।

    अपील में कहा गया कि सरकारी संस्थान आपराधिक मानहानि की शिकायत दर्ज नहीं कर सकता और न ही उसे कायम रख सकता। अगर इसे राज्य के रूप में नहीं माना जाता है तो भी शिकायत को कायम नहीं रखा जा सकता, क्योंकि यूनिवर्सिटी अज्ञात और अनिश्चित निकाय है। आईपीसी की धारा 499 के तहत इसे राज्य के रूप में नहीं माना जा सकता।

    अपील में यह भी कहा गया कि सीआरपीसी की धारा 202 के तहत कोई उचित जांच नहीं की गई। अदालत के समक्ष यह दिखाने के लिए आयोजित की गई कि प्रतिवादी को दूसरों के अनुमान में कैसे बदनाम किया गया। उक्त पूछताछ के दौरान पेश किए गए गवाह गुजरात यूनिवर्सिटी के ही कर्मचारी थे।

    अपील में आगे कहा गया,

    "वर्तमान शिकायत किसी पीड़ित व्यक्ति द्वारा स्थापित नहीं की गई, क्योंकि डॉ. पीयूष एम. पटेल ने वर्तमान शिकायत में पीड़ित व्यक्ति होने का दावा नहीं किया। उनके खिलाफ कोई विशेष चोट या बयान नहीं दिया गया, जो वर्तमान मामले में लोक सेवक हैं। इस प्रकार सीआरपीसी की धारा 199(2) का अनुपालन नहीं किया गया। शिकायत न तो लोक अभियोजक द्वारा दायर की गई और न ही सत्र न्यायालय के समक्ष दायर की गई।''

    अंत में अपील में तर्क दिया गया कि चूंकि शिकायत दिल्ली के एनसीटी के मुख्यमंत्री के रूप में याचिकाकर्ता के खिलाफ दायर की गई, इसलिए सीआरपीसी की धारा 197 के तहत मंजूरी प्राप्त करना अनिवार्य है और समन आदेश में गलती से यह माना रिकॉर्ड किया गया कि गुजरात यूनिवर्सिटी याचिकाकर्ता का प्रतिद्वंद्वी है।

    पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल और सिंह के खिलाफ आपराधिक मानहानि की कार्यवाही पर रोक लगा दी गई।

    जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने वर्तमान चरण में मामले को गुजरात से बाहर स्थानांतरित करने की सिंह की याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए अंतरिम राहत देने के सवाल को 4 सप्ताह के भीतर गुजरात हाईकोर्ट पर विचार करने के लिए छोड़ दिया। ऐसे समय तक ट्रायल कोर्ट के समक्ष मानहानि के मामले पर रोक लगा दी गई।

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