कस्टडी की लड़ाई में सबसे ज्यादा नुकसान बच्चे को उठाना पड़ता है: दिल्ली हाइकोर्ट

Amir Ahmad

20 Jan 2024 10:03 AM GMT

  • कस्टडी की लड़ाई में सबसे ज्यादा नुकसान बच्चे को उठाना पड़ता है: दिल्ली हाइकोर्ट

    दिल्ली हाइकोर्ट ने हाल ही में कहा कि हिरासत की लड़ाई में सबसे अधिक नुकसान बच्चे को होता है। कोर्ट ने कहा कि माता-पिता में से कोई भी जीतता हो, पारिवारिक संबंधों के पोलराइजेशन के कारण नाबालिग सब कुछ खो देता है।

    जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने कहा,

    “महज बच्चा पैदा करने से कोई 'माता-पिता' नहीं बन जाता, बल्कि जो माता-पिता के ऐसे झगड़ों में बच्चे को टूटने से बचाता है, वही 'आदर्श माता-पिता' बनने के सबसे करीब होता है। ध्यान बच्चे के भविष्य पर होना चाहिए न कि माता-पिता के अतीत पर।”

    अदालत ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश के खिलाफ मां की अपील पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणियां कीं, जिसमें उसे और अलग रह रहे पति को नाबालिग बच्चे का संयुक्त अभिभावक घोषित किया गया।

    फैमिली कोर्ट ने पिता को मुलाक़ात का अधिकार भी दिया वहीं नाबालिग की हिरासत 18 वर्ष की आयु तक मां को दी गई।

    दोनों पक्षकारों ने 2006 में शादी की और अगले साल उनकी शादी से लड़के का जन्म हुआ। लेकिन वैवाहिक विवादों के कारण 2009 में दोनों अलग हो गए। वहीं बच्चे की कस्टडी मां के पास रही।

    पिता ने नाबालिग के गार्जियन के रूप में अपनी नियुक्ति और उसकी स्थायी हिरासत के लिए संरक्षकता याचिका दायर की। याचिका में कहा गया कि मां उसकी उचित देखभाल नहीं कर रही है और वह नाबालिग के हितों की रक्षा करने के लिए उपयुक्त नहीं है।

    पूरे मामले को देखने के बाद खंडपीठ ने कहा कि फैमिली कोर्ट ने सही निष्कर्ष निकाला कि बच्चे की कस्टडी मां के पास रहेगी, जब वह दो साल का था और अब 16 साल से अधिक का है, तब से वह उसकी विशेष कस्टडी में है।

    वहीं खंडपीठ ने यह भी कहा कि पिता के साथ नाबालिग की कुछ बातचीत उसके हित और कल्याण के लिए जरूरी थी, जैसा कि फैमिली कोर्ट ने भी देखा।

    फैमिली कोर्ट द्वारा दी गई रात भर की हिरासत और मुलाक़ात के अधिकार को संशोधित करते हुए खंडपीठ ने मां को निर्देश दिया कि वह नाबालिग को पिता से मिलवाने के लिए हर महीने के पहले और तीसरे शनिवार को तीन घंटे के लिए साकेत फैमिली कोर्ट के चिल्ड्रन रूम में लाए।

    इसमें कहा गया कि पिता को नाबालिग की सुविधा के अधीन सप्ताह में कम से कम एक बार बच्चे से मोबाइल फोन पर बात करने की अनुमति दी जाएगी।

    अदालत ने कहा,

    "यह आदेश बच्चे के वयस्क होने तक प्रभावी रहेगा।"

    अपीलकर्ता की ओर से वकील- अभिषेक कुमार और शिवांगी सिंह।

    प्रतिवादी की ओर से वकील- ईश्वर सिंह ।

    केस टाइटल- एक्स वी. वाई।

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