राम मंदिर उद्घाटन के दिन सार्वजनिक अवकाश की घोषणा के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका

Shahadat

20 Jan 2024 12:00 PM GMT

  • राम मंदिर उद्घाटन के दिन सार्वजनिक अवकाश की घोषणा के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका

    चार लॉ स्टूडेंट ने महाराष्ट्र सरकार के बॉम्बे हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की। उक्त याचिका में महाराष्ट्र सरकार की उस अधिसूचना को चुनौती दी गई, जिसमें 22 जनवरी, 2024 को अयोध्या में राम मंदिर के अभिषेक के लिए सार्वजनिक अवकाश घोषित किया गया।

    एमएनएलयू, मुंबई, जीएलसी और निरमा लॉ स्कूल के स्टूडेंट ने मामले की सुनवाई के लिए विशेष पीठ के गठन की मांग की।

    याचिका में तर्क दिया गया कि किसी धार्मिक कार्यक्रम को मनाने के लिए सार्वजनिक अवकाश घोषित करना संविधान में निहित धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन है। इसका तर्क है कि राज्य किसी विशेष धर्म के साथ जुड़ नहीं सकता, या उसे बढ़ावा नहीं दे सकता।

    याचिका में कहा गया,

    "हिंदू मंदिर के अभिषेक में जश्न मनाने और खुले तौर पर भाग लेने और इस तरह विशेष धर्म से जुड़ने का सरकार का कृत्य धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों पर सीधा हमला है।"

    याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसलों का हवाला देते हैं, जिन्होंने धर्मनिरपेक्षता को संविधान की मूल विशेषता के रूप में बरकरार रखा। उसका तर्क है कि अधिसूचना इस संवैधानिक आदेश के खिलाफ है।

    याचिका पर प्रकाश डाला गया,

    "एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि कोई भी राज्य सरकार, जो संवैधानिक आदेश के विपरीत अधर्मी मार्ग अपनाती है, वह संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत कार्रवाई के लिए उत्तरदायी है, जो उन्हें बर्खास्तगी का विषय बनाती है। "

    याचिकाकर्ताओं का यह भी तर्क है कि अधिसूचना 2024 के संसदीय चुनावों को ध्यान में रखते हुए राजनीति से प्रेरित है।

    याचिका में कहा गया,

    "यह महज संयोग नहीं है कि अभिषेक 2024 के संसदीय चुनावों से ठीक पहले निर्धारित है। इससे भी अधिक चौंकाने वाली बात यह है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर के निर्माण की निगरानी के लिए सार्वजनिक ट्रस्ट के गठन का निर्देश दिया। मस्जिद के निर्माण के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ अलग जमीन आवंटित करने का निर्देश दिया गया। हालांकि जमीन आवंटित कर दी गई, लेकिन उक्त मस्जिद का निर्माण अभी तक शुरू नहीं हुआ।''

    इसके अलावा, याचिका परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 25 के तहत अधिसूचना जारी करने में महाराष्ट्र सरकार के अधिकार क्षेत्र को चुनौती दी। उसका तर्क है कि इस प्रावधान के तहत सार्वजनिक छुट्टियों को अधिसूचित करने की शक्ति केवल केंद्र सरकार के पास है।

    याचिका में इस संबंध में कहा गया,

    “सार्वजनिक छुट्टियों की घोषणा के संबंध में कोई भी नीति सत्ता में राजनीतिक दल की सनक और इच्छा पर आधारित नहीं हो सकती। शायद किसी देशभक्त व्यक्तित्व या ऐतिहासिक शख्सियत की याद में छुट्टी की घोषणा की जा सकती है, लेकिन समाज के विशेष वर्ग या धार्मिक समुदाय को खुश करने के लिए रामलला के अभिषेक का जश्न मनाने के लिए नहीं।”

    यह याचिका लॉ स्टूडेंट शिवांगी अग्रवाल, सत्यजीत सिद्धार्थ साल्वे, वेदांत गौरव अग्रवाल और खुशी संदीप बांगिया ने तालेकर एंड एसोसिएट्स के माध्यम से दायर की।

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