न्यायिक परिसरों में उचित सुविधाओं की कमी के कारण विकलांग व्यक्तियों को न्याय तक पहुंच से वंचित होना पड़ता है: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

7 March 2024 8:42 AM GMT

  • न्यायिक परिसरों में उचित सुविधाओं की कमी के कारण विकलांग व्यक्तियों को न्याय तक पहुंच से वंचित होना पड़ता है: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने न्यायिक परिसरों में बुनियादी ढांचे की कमी का स्वत: संज्ञान लिया है। बुनियादी ढांचे में कमी के कारण पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ यूटी के विकालांग नागरिकों को कोर्ट तक पहुंचने में दिक्कत होती है। दरअसल हाईकोर्ट एक 60 वर्षीय विकलांग महिला की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसने जिला न्यायालय मालेरकोटला में अपने मामले को पहली मंजिल से भूतल पर स्थानांतरित करने की मांग की थी, क्योंकि न्यायिक परिसर में रैंप या लिफ्ट का कोई प्रावधान नहीं था।

    विकलांग व्यक्तियों की दुर्दशा पर ध्यान देते हुए जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ ने कहा, "भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित जीवन का अधिकार, केवल जानवरों की तरह अस्तित्व तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सम्मान के साथ सही अर्थों में एक सार्थक जीवन जीने का अधिकार भी शामिल है। सार्वजनिक भवनों, विशेष रूप से न्यायिक परिसरों में उचित सुविधाओं का अभाव, न्याय तक पहुंच से वंचित करने के बराबर है और विकलांग व्यक्तियों के खिलाफ भेदभाव के बराबर है।''

    न्यायालय ने कहा कि राज्य अपने नागरिकों को संविधान द्वारा गारंटीकृत मौलिक अधिकारों को साकार करने के लिए समान अवसर प्रदान करने और सभी आवश्यक सुविधाएं प्रदान करने के लिए बाध्य है, जिसमें भारत के क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से घूमने का अधिकार भी शामिल है।

    60 वर्षीय महिला अमरीक कौर ने सीआरपीसी की धारा 407 के तहत याचिका दायर कर पुलिस स्टेशन अमरगर, संगरूर में आईपीसी की धारा 406, 420, 120-बी के तहत दर्ज एफआईआर के मुकदमे को स्थानांतरित करने की मांग की थी।

    याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि कौर एक विकलांग महिला थी जो चलने में असमर्थ थी क्योंकि उसका दाहिना पैर काट दिया गया था जबकि उसका बायां पैर संक्रमित था और इसकी पुष्टि के लिए उसने याचिकाकर्ता के मेडिकल रिकॉर्ड पर भरोसा किया।

    उन्होंने आगे कहा कि याचिकाकर्ता ने चार मामले दायर किए हैं जो सिविल जज (जूनियर डिवीजन)-सह- न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, मालेरकोटला के समक्ष लंबित हैं, जो पहली मंजिल पर है और मालेरकोटला में न्यायिक परिसर में किसी भी विकलांग व्यक्ति को अदालती कार्यवाही में भाग लेने की सुविधा के लिए एक रैंप या एस्केलेटर का कोई प्रावधान नहीं है।

    वकील ने कहा, जिला न्यायाधीश, संगरूर ने याचिकाकर्ता द्वारा दायर स्थानांतरण आवेदन को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि आवेदन के साथ कोई मेडिकल रिकॉर्ड संलग्न नहीं किया गया है, जिसे नीचे की अदालत द्वारा अवसर दिए जाने पर आसानी से ठीक किया जा सकता था।

    ट्रायल कोर्ट ने यह भी नोट किया कि सिविल मुकदमे उसके वकील के माध्यम से दायर किए गए हैं और इसलिए यह निष्कर्ष निकाला गया कि याचिकाकर्ता स्वयं अदालत के सामने पेश नहीं हो रही है।

    दलीलें सुनने के बाद, अदालत ने कहा कि "भले ही सिविल मुकदमे वकीलों के माध्यम से दायर किए गए हों, याचिकाकर्ता को जब भी वह चाहे, अदालत की कार्यवाही पेश करने और निगरानी करने का पूरा अधिकार है।"

    इसमें कहा गया है कि विकलांग व्यक्तियों की दुर्दशा के प्रति अधिक संवेदनशील और सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है।

    हिमाचल राज्य बनाम प्रदेश और अन्य बनाम उम्मेद राम शर्मा और अन्य (1986) मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी भरोसा किया गया था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से माना था कि पहुंच का अधिकार भी अनुच्छेद 21 का एक आयाम है।

    नतीजतन, जस्टिस बराड़ ने कहा कि याचिकाकर्ता को "अपनी कार्रवाई के कारण के आधार पर न्यायिक कार्यवाही में भाग लेने का उतना ही अधिकार है, जितना कि अगले व्यक्ति को, भले ही मुकदमा किसी वकील के माध्यम से दायर किया गया हो।"

    यह कहते हुए कि निचली अदालत द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण को माफ नहीं किया जा सकता है, हाईकोर्ट ने विवादित आदेश को रद्द कर दिया और जिला न्यायाधीश, संगरूर को याचिकाकर्ता द्वारा दायर मामलों को किसी भी भूतल पर ‌स्थित किसी भी क्षेत्राधिकार वाले न्यायालयों को सौंपने का निर्देश दिया।

    इसके अलावा, न्यायालय ने कहा कि "सार्वजनिक हित में, पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ यूटी में न्यायिक परिसरों को विकलांग व्यक्तियों के लिए सुलभ बनाने के लिए उचित बुनियादी ढांचे की कमी का स्वत: संज्ञान लेना उचित है।" इसलिए, कोर्ट ने रजिस्ट्री को विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 की धारा 44, 45 और 46 के मद्देनजर मामले को उचित पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने के लिए कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखने का निर्देश दिया।

    केस टाइटलः अमरीक कौर बनाम पंजाब राज्य

    साइटेशन: 2024 लाइव लॉ (पीएच) 72

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