दिल्‍ली हाईकोर्ट ने शबनम हाशमी के खिलाफ COVID​​-19 के दरमियान सीएए विरोधी प्रदर्शन पर दर्ज एफआईआर में ट्रायल कोर्ट की ओर से लिए गए संज्ञान को रद्द किया

LiveLaw News Network

9 Feb 2024 8:15 AM IST

  • दिल्‍ली हाईकोर्ट ने शबनम हाशमी के खिलाफ COVID​​-19 के दरमियान सीएए विरोधी प्रदर्शन पर दर्ज एफआईआर में ट्रायल कोर्ट की ओर से लिए गए संज्ञान को रद्द किया

    दिल्ली हाईकोर्ट ने COVID ​​-19 महामारी के दरमियान 2020 में नागरिक संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन पर दिल्ली पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर में सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी के खिलाफ संज्ञान लेने के ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया है। जस्टिस नवीन चावला ने आठ अक्टूबर, 2021 को पारित ट्रायल कोर्ट के आदेश और उससे होने वाली कार्यवाही को रद्द कर दिया।

    कोर्ट ने कहा, “हालांकि, यह स्पष्ट कर दिया गया है कि यदि सलाह दी गई तो प्रतिवादी नई शिकायत दर्ज करने के लिए स्वतंत्र होगा। यदि ऐसी शिकायत दर्ज की जाती है, तो उस पर कानून के अनुसार विचार किया जाएगा।”

    हाशमी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 188 के तहत अपराध के लिए 2020 में एफआईआर दर्ज की गई थी। यह आरोप लगाया गया था कि एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर हाशमी के सोशल मीडिया अकाउंट पर सामने आए एक वीडियो में वह कुछ अन्य व्यक्तियों के साथ थीं, जिसमें वह सीएए के विरोध में एक बैनर लेकर घूम रही थी। एफआईआर के मुताबिक, हाशमी को बैनर पकड़े हुए पाया गया ‌था।

    हाशमी की ओर से पेश हुए वकील सौतिक बनर्जी और देविका तुलसियानी ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 195 के संदर्भ में, आईपीसी की धारा 188 के तहत अपराध का संज्ञान केवल संबंधित लोक सेवक या किसी अन्य लोक सेवक की लिखित शिकायत पर ही लिया जा सकता है, जिसके वह प्रशासनिक दृष्टि से अधीनस्थ है।

    वकीलों ने आगे कहा कि अंतिम रिपोर्ट पर संज्ञान नहीं लिया जा सकता। दूसरी ओर, राज्य की ओर से पेश एपीपी अमन उस्मान ने कहा कि विद्वान मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट न केवल अंतिम रिपोर्ट बल्कि उससे जुड़े दस्तावेज़ का भी संज्ञान ले सकते हैं।

    सीआरपीसी की धारा 195(1) का अवलोकन करते हुए जस्टिस चावला ने कहा कि एक अदालत आईपीसी की धारा 188 के तहत दंडनीय किसी भी अपराध का संज्ञान केवल संबंधित लोक सेवक या किसी अन्य लोक सेवक, जिसके वह प्रशासनिक रूप से अधीनस्थ है, की लिखित शिकायत पर ही ले सकती है।

    “वर्तमान याचिका उपरोक्त मामलों के समान तथ्य प्रस्तुत करती है। वर्तमान मामले में भी, एसीपी द्वारका द्वारा सीआरपीसी की धारा 144 के तहत जारी निषेधाज्ञा के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज की गई थी। हालांकि, जांच पूरी होने पर सीआरपीसी की धारा 195 के संदर्भ में शिकायत दर्ज करने के बजाय, अंतिम रिपोर्ट विद्वान मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष दायर की गई थी, और विद्वान मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट ने 08.10.2021 के आदेश के तहत इस अंतिम रिपोर्ट का संज्ञान लिया।"

    कोर्ट ने कहा, “मौजूदा मामले में, एफआईआर दर्ज करने को कोई चुनौती नहीं है। चुनौती अंतिम रिपोर्ट पर संज्ञान लेते हुए विद्वान मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट द्वारा पारित आदेश को है, जो सीआरपीसी की धारा 195 के तहत कोई शिकायत नहीं है।''

    केस टाइटलः शबनम हाशमी बनाम दिल्ली एनसीटी राज्य और अन्य।

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