बॉम्बे हाईकोर्ट ने राम मंदिर प्रतिष्ठा के दिन पर सार्वजनिक अवकाश की घोषणा को चुनौती देने वाली जनहित याचिका खारिज कर दी

Shahadat

22 Jan 2024 5:24 AM GMT

  • बॉम्बे हाईकोर्ट ने राम मंदिर प्रतिष्ठा के दिन पर सार्वजनिक अवकाश की घोषणा को चुनौती देने वाली जनहित याचिका खारिज कर दी

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने चार लॉ स्टूडेंट द्वारा दायर जनहित याचिका (PIL) खारिज कर दी। उक्त याचिका में महाराष्ट्र सरकार की उस अधिसूचना का विरोध किया गया था, जिसमें 22 जनवरी, 2024 को अयोध्या में राम मंदिर की प्रतिष्ठा के उपलक्ष्य में सार्वजनिक अवकाश घोषित किया गया।

    जस्टिस जीएस कुलकर्णी और जस्टिस नीला गोखले की विशेष पीठ ने कहा कि विविध धर्मों वाले देश में राज्य का फैसला वास्तव में धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को बढ़ावा देता है।

    सार्वजनिक छुट्टियों के विषय पर उदाहरणों की श्रृंखला का उल्लेख करते हुए पीठ ने कहा,

    "न्यायालयों द्वारा सुसंगत दृष्टिकोण अपनाया गया कि छुट्टियों की घोषणा कार्यकारी नीति का मामला है, जिसमें विभिन्न धर्मों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए घोषित की गई छुट्टियां भी शामिल हैं। एक बार जब ये व्यापक सार्वजनिक हित पर विचार हो जाते हैं तो ऐसे निर्णय किसी भी तरीके से नहीं हो सकते। इसके अलावा इस तरह का निर्णय कार्यपालिका द्वारा संविधान में निहित भावनाओं को बढ़ावा देने और धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों की मान्यता में लिया जाता है, जब किसी धार्मिक अवसर पर छुट्टी घोषित की जाती है।''

    पीठ ने केरल हाईकोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें राज्य द्वारा स्टूडेंट को रमज़ान के दौरान ली जाने वाली छुट्टियों के लिए गर्मी की छुट्टियों के दौरान कवर करने की अनुमति देने की रियायत को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी गई थी। यह माना गया कि राज्य में विभिन्न धर्मों का पालन किया जाता है और रियायत संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 की भावना में बाधा नहीं डालती है।

    हाईकोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी माना कि सार्वजनिक छुट्टियों की घोषणा कार्यकारी नीति के दायरे में है।

    याचिकाकर्ताओं, एमएनएलयू मुंबई, जीएलसी और निरमा लॉ स्कूल के स्टूडेंट ने तर्क दिया कि किसी धार्मिक आयोजन के लिए सार्वजनिक अवकाश घोषित करना संविधान में अंतर्निहित धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के विपरीत है।

    उनका तर्क था कि राज्य को किसी विशिष्ट धर्म का समर्थन नहीं करना चाहिए।

    एसआर बोम्मई बनाम भारत संघ सहित सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसलों का हवाला देते हुए उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि धर्मनिरपेक्षता से भटकने वाली किसी भी राज्य सरकार को संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है, जिससे बर्खास्तगी हो सकती है।

    दूसरी ओर, राज्य का प्रतिनिधित्व एजी डॉ. बीरेंद्र सराफ ने किया। उन्होंने तर्क दिया कि नागरिकों को उनके धार्मिक विश्वास का पालन करने की अनुमति देना धर्मनिरपेक्ष विश्वास का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता।

    उन्होंने कहा,

    "इस देश का धर्मनिरपेक्ष ताना-बाना नाजुक नहीं है।"

    उन्होंने आगे तर्क दिया कि छुट्टी की घोषणा नीतिगत मामला है और अदालतों को इसमें हस्तक्षेप करने के लिए नहीं कहा जा सकता।

    गौरतलब है कि मद्रास हाईकोर्ट ने भी विशेष सुनवाई की और जवाहरलाल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्टग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, पुडुचेरी को राम मंदिर उद्घाटन के कारण केंद्र के आश्वासन पर आधे दिन के लिए बंद करने को चुनौती देने वाली याचिका का निपटारा किया। आधे दिन की बंदी के दौरान भी पर्याप्त कर्मचारी मौजूद रहेंगे और आपातकालीन मामलों को स्वीकार किया जाएगा।

    Next Story