सीआरपीसी की धारा 125 के तहत कोई भी व्यक्ति नाबालिग की ओर से भरण-पोषण की मांग करते हुए याचिका दायर कर सकता है: मद्रास हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

24 Jan 2024 9:13 AM GMT

  • सीआरपीसी की धारा 125 के तहत कोई भी व्यक्ति नाबालिग की ओर से भरण-पोषण की मांग करते हुए याचिका दायर कर सकता है: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 किसी भी व्यक्ति को नाबालिग की ओर से भरण-पोषण याचिका दायर करने से नहीं रोकती है।

    जस्टिस केके रामकृष्णन यह ‌टिप्पण‌ियां तब कि जब उन्होंने यह माना कि विवाहित महिला को नाबालिग भाई की ओर से अपने पिता से गुजारा भत्ता मांगने के लिए याचिका दायर करने से नहीं रोका जा सकता है।

    उन्होंने कहा, “सीआरपीसी की धारा 125 का कानून सामाजिक कल्याण के लिए है। इस धारा का लक्ष्य सामाजिक न्याय हासिल करना है। इसका उद्देश्य खानाबदोशी और गरीबी को रोकना है। धारा 125 सीआरपीसी उन महिलाओं, बच्चों और निराश्रित माता-पिता को एक त्वरित और प्रभावी उपाय प्रदान करती है, जो संकट में हैं।''

    मामला

    मामले में टीएनएसटीसी में ड्राइवर के रूप में कार्यरत याचिकाकर्ता (पिता) अपनी पहली पत्नी से अलग हो गया और दूसरी शादी कर ली। पहली शादी से प्रतिवादी-लड़की और उसका भाई पैदा हुए थे। दोनों ने अतिरिक्त न्यायिक मजिस्ट्रेट, मदुरै के समक्ष याचिका दायर कर अपने पिता (याचिकाकर्ता) से भरण-पोषण का दावा किया था।

    याचिका में कहा गया कि प्रतिवादी का भाई वर्तमान में शिक्षा प्राप्त कर रहा है, और पर्याप्त वित्तीय संसाधनों की कमी के कारण, वह शैक्षिक खर्चों और अन्य वित्तीय जरूरतों को पूरा करने में असमर्थ है। इस भरण-पोषण याचिका में नाबालिग का प्रतिनिधित्व उसकी बहन ने किया था।

    अदालत ने भरण-पोषण याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया कि प्रतिवादी का भाई नाबालिग है और भरण-पोषण याचिका उसके लिए दायर की गई थी और उसके नाबालिग भाई की ओर से भरण-पोषण का दावा करना इस कारण से कायम रखने योग्य नहीं है कि वह प्राकृतिक अभिभावक और अगला नाबालिग भाई की अगली दोस्त नहीं है।

    फैसले से व्यथित होकर प्रतिवादी ने चतुर्थ अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश, मदुरै के समक्ष एक पुनरीक्षण याचिका दायर की, जिन्होंने इस आधार पर इसकी अनुमति दी कि हालांकि प्रतिवादी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत राहत नहीं मांग सकती है, लेकिन ट्रायल कोर्ट को हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 20(3) के तहत प्रतिवादी को भरण-पोषण देने का अधिकार है, जब तक उसकी शादी नहीं हो जाती।

    अदालत ने उनके पिता को प्रतिवादी लड़की को 7,500 रुपये प्रति माह और उसके भाई को 5,000 रुपये प्रति माह का भुगतान करने का निर्देश दिया। इससे दुखी होकर, पिता ने हाईकोर्ट के समक्ष मौजूदा पुनरीक्षण याचिका दायर की।

    कोर्ट की टिप्पणियां

    अदालत ने शुरुआत में कहा कि चूंकि प्रतिवादी लड़की अब शादीशुदा है, इसलिए उसे भरण-पोषण का दावा करने का हक नहीं है। सा‌थ ही कोर्ट ने यह भी माना कि नाबालिग भाई की ओर से उसका दावा कायम रहेगा।

    अदालत ने यह भी कहा कि ट्रायल जज ने गलती से इस आधार पर दावा खारिज कर दिया था कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत प्रतिवादी के पास अपने नाबालिग भाई की ओर से गुजारा भत्ता के लिए याचिका दायर करने का कोई अधिकार नहीं था।

    इस संबंध में अदालत ने जोर देकर कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 किसी भी व्यक्ति को नाबालिग बच्चों की ओर से भरण-पोषण याचिका दायर करने से नहीं रोकती है। न्यायालय ने रमेश चंद्र कौशल बनाम वीणा कौशल 1978, फुजलुनबी बनाम के खादर वली 1980, कीर्तिकांत डी वडोदरिया बनाम गुजरात राज्य और अन्य 1996 और शमीमा फारूकी बनाम शाहिद खान 2015 में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला दिया।

    इसके अलावा, अदालत ने पुनरीक्षण अदालत के फैसले की भी पुष्टि की, जिसने नाबालिग लड़के के खिलाफ जारी न्यायिक मजिस्ट्रेट के बर्खास्तगी आदेश को रद्द करने के लिए सीआरपीसी की धारा 399 में उल्लिखित स्वत: संज्ञान शक्ति का इस्तेमाल किया था।

    न्यायालय ने नाबालिग भाई को भरण-पोषण देने के पुनरीक्षण अदालत के आदेश में औचित्य पाया, भले ही केवल विवाहित बहन ने अपने संबंध में भरण-पोषण के दावे को खारिज करने के खिलाफ पुनरीक्षण शुरू किया था, और नाबालिग भाई द्वारा कोई पुनरीक्षण दायर नहीं किया गया था।

    अदालत ने कहा,

    “पुनरीक्षण न्यायाधीश ने परेंस पैट्रेए ज्यूरिसडिक्‍शन (Parens Partiae Jurisdiction) का प्रयोग करके नाबालिग बच्चों के हित और कल्याण में स्वत: संज्ञान शक्ति का प्रयोग किया। यह न्यायालय विद्वान पुनरीक्षण न्यायाधीश के तर्क से असहमत होने का कोई कारण नहीं पाती है।''

    इसके साथ ही कोर्ट ने याचिकाकर्ता के बेटे को भरण-पोषण के रूप में 5,000 रुपये देने के पुनरीक्षण न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा। इस प्रकार, आपराधिक पुनरीक्षण खारिज कर दिया गया।

    केस टाइटलः आर ओचप्पन बनाम कीर्तना

    केस साइटेशनः 2024 लाइव लॉ (मद्रास) 36

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