यूसुफ पठान ने बिना किसी आदेश के सरकारी ज़मीन पर अतिक्रमण किया, इसलिए उन्हें भूखंड छोड़ना होगा: गुजरात हाईकोर्ट

Shahadat

12 Sept 2025 7:01 PM IST

  • यूसुफ पठान ने बिना किसी आदेश के सरकारी ज़मीन पर अतिक्रमण किया, इसलिए उन्हें भूखंड छोड़ना होगा: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाीकोर्ट ने हाल ही में वडोदरा नगर निगम को पूर्व क्रिकेटर और तृणमूल कांग्रेस (TMC) सांसद यूसुफ पठान द्वारा एक भूखंड पर अतिक्रमण हटाने के लिए कदम उठाने का निर्देश देने वाला आदेश बरकरार रखा।

    ऐसा करते हुए अदालत ने कहा कि पठान द्वारा बिना किसी प्रतिफल के भूखंड पर "लंबे समय तक कब्ज़ा" रखने से उन्हें ज़मीन पर कोई अधिकार नहीं मिलता। साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि इस तरह की अवैधता को जारी नहीं रखा जा सकता। पठान को अतिक्रमणकारी पाते हुए अदालत ने कहा कि उन्हें भूखंड आवंटित करने का कोई आदेश पारित नहीं किया गया।

    अदालत ने यह भी दोहराया कि मशहूर हस्तियां सामाजिक आदर्श होती हैं। वे अपनी प्रसिद्धि और सार्वजनिक उपस्थिति के कारण वे सार्वजनिक व्यवहार पर काफी प्रभाव डालती हैं, इसलिए कानून का पालन न करने के बावजूद उन्हें रियायत देना समाज में गलत संदेश देता है।

    पठान ने राज्य सरकार के 6 जून, 2024 के नोटिस/आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें वडोदरा नगर निगम (VMC) द्वारा पठान के पक्ष में 978 वर्ग मीटर का भूखंड बिना किसी सार्वजनिक नीलामी के 99 वर्षों के पट्टे पर आवंटित करने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया। आदेश में VMC को तत्काल आधार पर संबंधित भूखंड से अतिक्रमण हटाने के लिए आवश्यक कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया।

    पठान ने 2012 में भूमि आवंटन के लिए अभ्यावेदन भेजा था। इसके बाद बाजार मूल्य का पता लगाने के लिए निर्णय लिया गया और नीलामी प्रक्रिया का पालन किए बिना याचिकाकर्ता को भूखंड आवंटित करने के प्रस्ताव पर वीएमसी द्वारा विचार किया गया।

    जस्टिस मौना एम. भट्ट ने अपने आदेश में उल्लेख किया कि 08.06.2012 को आयोजित VMC की आम सभा की बैठक में पठान के आवेदन से संबंधित मामले को VMC आयुक्त को भेजने का निर्णय लिया गया, क्योंकि ऐसी शक्तियां नगर आयुक्त को सौंपी गई हैं।

    अदालत ने कहा कि नगर आयुक्त ने मामले को राज्य सरकार की राय के लिए भेज दिया। इसके बाद दिनांक 25.06.2012 को पत्र याचिकाकर्ता को भेजा गया, जिसमें इन तथ्यों को उसके संज्ञान में लाया गया।

    इसमें कहा गया:

    "यदि दिनांक 25.06.2012 के उक्त पत्र का गहन अध्ययन किया जाए तो यह निगम के दिनांक 30.03.2012 और 08.06.2012 के पूर्व प्रस्तावों का संदर्भ देता है, जो भूखंड और उसके प्रति वर्ग मीटर मूल्यांकन के लिए थे। पत्र में आगे कहा गया कि भूखंड को नीलामी में डाले बिना आवंटन दिए जाने का प्रस्ताव है, इसलिए राज्य सरकार से अनुमति मांगी गई। यदि अनुमति मिल जाती है तो आगे की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। दिनांक 25.06.2012 का यह पत्र याचिकाकर्ता के दिनांक 03.03.2012 के पत्र के प्रत्युत्तर में था। इसके बाद नगर आयुक्त द्वारा भेजे गए प्रस्ताव पर राज्य प्राधिकारियों से प्रतिक्रिया प्राप्त करने के प्रयास किए गए। दिनांक 25.06.2012 के पत्र के बाद याचिकाकर्ता द्वारा दिनांक 30.05.2013 को एक और पत्र लिखा गया, जिसमें कहा गया कि वह निगम से प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा कर रहा है और किए गए मूल्यांकन के अनुसार निर्धारित मूल्य का भुगतान करने के लिए तैयार है। यदि कोई जवाब प्राप्त होता है तो वह प्लॉट संख्या 90 का कब्ज़ा पाने के लिए आवश्यक कार्रवाई करेगा। याचिकाकर्ता के दिनांक 30.05.2013 के पत्र के बाद प्रतिवादी निगम द्वारा संबंधित प्लॉट आवंटित करने का कोई आदेश पारित नहीं किया गया।

    अदालत ने पाया कि इसके विपरीत राज्य सरकार द्वारा दिनांक 09.06.2014 को जारी पत्र नगर आयुक्त को प्राप्त हुआ, जिसमें याचिकाकर्ता के आवेदन को अस्वीकार कर दिया गया था।

    अदालत ने कहा,

    "इसलिए याचिकाकर्ता को संबंधित प्लॉट पर कब्ज़ा करने का कोई अधिकार नहीं है, इसलिए निगम का यह तर्क कि याचिकाकर्ता ने संबंधित भूमि पर अतिक्रमण किया। इस अदालत की राय में सही है। यह अदालत ऐसा इसलिए भी कहती है, क्योंकि प्रतिफल दिए बिना या याचिकाकर्ता के पक्ष में आवंटन के किसी आदेश के बिना याचिकाकर्ता द्वारा संबंधित भूमि पर कब्ज़ा करना अनुचित होगा। साथ ही यह कार्रवाई चारदीवारी बनाकर अतिक्रमण के समान होगी।"

    अदालत ने कहा कि जब तक याचिकाकर्ता को भुगतान करने का आदेश नहीं दिया जाता या आवंटन नहीं दिया जाता, "उसे संबंधित भूखंड का मालिक नहीं कहा जा सकता। इसलिए इस अदालत की राय में अतिक्रमण का आरोप भी सही है।"

    अदालत ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता ने संबंधित भूखंड पर अपने कब्जे से इनकार नहीं किया।

    अदालत ने कहा,

    "इस मामले में लंबे समय तक कब्ज़ा या इस स्तर पर भुगतान करने की इच्छा, याचिकाकर्ता को संबंधित भूमि पर कोई अधिकार नहीं देगी। इस प्रकार, इस अदालत की राय में इस अवैधता को जारी रखने की अनुमति नहीं दी जाएगी। इसलिए जब याचिकाकर्ता को संबंधित भूखंड पर अतिक्रमणकारी पाया जाता है तो प्रतिवादी निगम से कानून के अनुसार सख्त कार्रवाई अपेक्षित है।"

    इसने पठान के इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि उसे वास्तविक खरीदार माना जा सकता है, क्योंकि वह आज की बाजार दर पर संबंधित भूखंड खरीदने के लिए तैयार है। साथ ही कहा कि यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत एक याचिका में "अतिक्रमण को नियमित करने" के समान होगा।

    अदालत ने कहा,

    "याचिकाकर्ता भुगतान करने के अपने प्रयासों को उचित ठहराने वाला एक भी संचार रिकॉर्ड पर पेश नहीं कर पाया। दूसरे शब्दों में, याचिकाकर्ता ने बिना किसी अधिकार के संबंधित भूखंड का आनंद लिया।"

    याचिकाकर्ता के इस तर्क पर कि चूंकि उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्रिकेट में देश का प्रतिनिधित्व किया और संसद के निर्वाचित सदस्य होने के नाते देश के कानूनों के प्रति उनकी कुछ अतिरिक्त ज़िम्मेदारियां और कर्तव्य हैं, अदालत ने कहा:

    "इस संदर्भ में यह न्यायालय माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा आपराधिक अपील नंबर 3528/2025 में दिए गए निर्णय का हवाला देना चाहेगा, जिसमें यह माना गया कि मशहूर हस्तियां सामाजिक आदर्श होती हैं। इसलिए उनकी जवाबदेही कम नहीं, बल्कि ज़्यादा होती है। अपनी प्रसिद्धि और सार्वजनिक उपस्थिति के कारण मशहूर हस्तियां सार्वजनिक व्यवहार और सामाजिक मूल्यों पर गहरा प्रभाव डालती हैं। ऐसे व्यक्तियों को कानून का उल्लंघन करने के बावजूद रियायत देना समाज में गलत संदेश देता है। साथ ही न्यायिक व्यवस्था में जनता के विश्वास को कम करता है। इसलिए इस अदालत की राय में याचिकाकर्ता को उस भूखंड पर कब्जा बनाए रखने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, जिस पर उसने अतिक्रमण किया।"

    इस प्रकार, अदालत ने याचिका खारिज की।

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