पत्रकार महेश लांगा ने गोपनीय दस्तावेजों की चोरी संबंधी एफआईआर रद्द करने के लिए याचिका दायर की, कहा- उन पर लगे आरोप हर मायने में अटकलबाजी; गुजरात हाईकोर्ट ने नोटिस जारी किया

Avanish Pathak

31 Jan 2025 9:59 AM

  • पत्रकार महेश लांगा ने गोपनीय दस्तावेजों की चोरी संबंधी एफआईआर रद्द करने के लिए याचिका दायर की, कहा- उन पर लगे आरोप हर मायने में अटकलबाजी; गुजरात हाईकोर्ट ने नोटिस जारी किया

    पत्रकार महेश लांगा ने गुरुवार (30 जनवरी) को गुजरात हाईकोर्ट को बताया कि गांधीनगर पुलिस द्वारा उनके खिलाफ कथित भ्रष्टाचार, आपराधिक साजिश और चोरी के लिए दर्ज की गई एफआईआर, जिसमें उन पर "अत्यधिक गोपनीय सरकारी दस्तावेज" हासिल करने का आरोप है, "हर मायने में अटकलबाजी" है।

    कुछ देर तक मामले की सुनवाई के बाद जस्टिस दिव्येश ए जोशी ने एफआईआर को रद्द करने की मांग करने वाली लांगा की याचिका पर राज्य को नोटिस जारी किया।

    लांगा की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा,

    "उनके खिलाफ मामला यह है कि उनके पास ये दस्तावेज हैं। वे (राज्य) नहीं जानते कि उन्हें ये दस्तावेज किसने दिए। उन्होंने यह जांच नहीं की कि गुजरात मैरीटाइम बोर्ड में कौन सरकारी कर्मचारी है जिसने उन्हें ये दस्तावेज दिए। वे नहीं जानते कि ये दस्तावेज कैसे दिए गए और कब दिए गए। वे नहीं जानते कि इन दस्तावेजों के लिए कोई कथित कीमत चुकाई गई थी या नहीं...उन्होंने केवल यह पाया कि ये दस्तावेज उनके पास थे और इस आधार पर उन्होंने अनुमान लगाया कि ये दस्तावेज किसी सरकारी अधिकारी द्वारा दिए गए होंगे जो बोर्ड का हिस्सा है। और चूंकि उन्होंने दस्तावेज दिए होंगे तो जाहिर है कि उन्होंने उनके लिए भुगतान भी किया होगा। इसलिए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम लागू होता है। और चूंकि दस्तावेज सरकारी कर्मचारी द्वारा दिए गए होंगे इसलिए इसमें चोरी शामिल है...और चूंकि ये दस्तावेज किसी चोरी के आधार पर दिए गए होंगे, किसी प्रतिफल के आधार पर दिए गए होंगे इसलिए इसमें आपराधिक साजिश होनी चाहिए और इसलिए यह प्राथमिकी दर्ज की गई है। इसलिए यह हर दृष्टि से अटकलबाजी है।"

    सिब्बल ने लांगा के खिलाफ लगाए गए अपराधों की ओर इशारा किया। बीएनएस धारा 316(5) (लोक सेवकों, बैंकरों, व्यापारियों और अन्य पेशेवरों द्वारा आपराधिक विश्वासघात) के आह्वान के संबंध में सिब्बल ने कहा कि वर्तमान मामले में किसी को सौंपे जाने का कोई सबूत नहीं है। एफआईआर में दर्ज अन्य अपराधों में बीएनएस धारा 303(2) (चोरी), 306 (क्लर्क या नौकर द्वारा मालिक के कब्जे में संपत्ति की चोरी), 61(2) (आपराधिक साजिश) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7(ए) (लोक सेवक को प्रभावित करने के लिए अनुचित लाभ), 8 (लोक सेवक को रिश्वत देना), 12 (अपराधों के निवारण के लिए दंड), 13(1)(ए) (लोक सेवक द्वारा आपराधिक कदाचार), 13(2) (आपराधिक कदाचार करने वाले लोक सेवक के लिए दंड) शामिल हैं।

    अदालत ने मौखिक रूप से पूछा कि क्या आवेदक न्यायिक हिरासत में है वर्तमान मामले में सिब्बल ने कहा कि लांगा किसी अन्य मामले में न्यायिक हिरासत में है, न कि वर्तमान मामले में।

    जैसे ही अदालत ने नोटिस जारी किया, सिब्बल ने कहा, "मेरा एकमात्र अनुरोध है कि इस बीच कोई बलपूर्वक कदम न उठाया जाए...वहां (दूसरे मामले में) जमानत हो सकती है और फिर तुरंत उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है"। इस पर अदालत ने मौखिक रूप से कहा, "वह न्यायिक हिरासत में है। बलपूर्वक कदम उठाने का सवाल ही कहां है?"

    उल्लेखनीय है कि 21 जनवरी को जस्टिस संदीप भट्ट की समन्वय पीठ ने याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था।

    याचिका में दावा किया गया है कि एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि लांगा ने गुजरात मैरीटाइम बोर्ड (जीएमबी) से कुछ "अत्यधिक गोपनीय दस्तावेज" प्राप्त किए, हालांकि ऐसे दस्तावेजों को संरक्षित करने की जिम्मेदारी संबंधित विभाग के कर्मचारियों की है। यह आरोप लगाया गया था कि दस्तावेज जीएमबी के एक "अज्ञात कर्मचारी" द्वारा अनधिकृत चैनल के माध्यम से लांगा को प्राप्त हुए थे और उन्हें जन सूचना अधिकारी द्वारा प्रदान नहीं किया गया था और न ही वे सार्वजनिक डोमेन पर उपलब्ध थे।

    याचिका में दावा किया गया है कि आरोप अनुमान पर आधारित हैं और प्रथम दृष्टया लांगा की संलिप्तता स्थापित नहीं करते हैं।

    याचिका में एफआईआर के साथ-साथ सभी परिणामी कार्यवाही को रद्द करने की मांग की गई है। अंतरिम राहत के तौर पर याचिका में एफआईआर से संबंधित कार्यवाही पर रोक लगाने और प्रतिवादियों को कोई भी बलपूर्वक कार्रवाई न करने का निर्देश देने की मांग की गई है।

    मामले की अगली सुनवाई 13 फरवरी को होगी।

    केस टाइटलः महेशदान प्रभुदान लांगा बनाम गुजरात राज्य और अन्य। एससीआर. ए 16612/2024

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