मोरबी ब्रिज हादसा| गुजरात हाईकोर्ट ने पीड़ितों के पुनर्वास की जिम्मेदारी से बचने के लिए ओरेवा समूह को फटकार लगाई, कंपनी के निदेशक को कारण बताओ नोटिस जारी किया
LiveLaw News Network
22 April 2024 2:02 PM IST
गुजरात हाईकोर्ट ने मोरबी सस्पेंशन ब्रिज ढहने से प्रभावित व्यक्तियों के पुनर्वास की जिम्मेदारी से बचने पर ओरेवा समूह के खिलाफ नाराजगी जाहिर की है। कोर्ट ने कंपनी के निदेशक जयसुख पटेल को कारण बताओ नोटिस जारी किया, जिसमें अदालत के आदेशों की अवहेलना करने और देरी करने के लिए स्पष्टीकरण मांगा गया।
हाल में पुल ढहने के मामले में स्वत: संज्ञान जनहित याचिका की सुनवाई के के दरमियान चीफ जस्टिस सुनीता अग्रवाल और जस्टिस अनिरुद्ध माई की खंडपीठ ने उस समय काफी नाराज हो गई, जब कंपनी की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट जल उनवाला ने मोरबी जिला कलेक्टर की ओर से दिए गए प्रस्ताव, जिसमें उन्होंने पीड़ितों की विभिन्न श्रेणियों के लिए मासिक वित्तीय सहायता 5,000 रुपये (जैसा कि ओरेवा समूह ने प्रस्तावित किया है) से बढ़ाकर 12,000 रुपये करने का प्रस्ताव दिया है, को जवाब देने के लिए और समय देने का अनुरोध किया।
कलेक्टर के प्रस्ताव पर मोलभाव करने की कंपनी की कोशिशों पर अदालत ने नाराज़गी जाहिर की और वकील को यह कहते हुए चुप रहने को कहा कि कंपनी को सुनवाई का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि उसे दोषी माना गया है।
कपंनी की ओर से लंबे समय से किए जा रहे टालमटोल पर निराशा व्यक्त करते हुए कहा चीफ जस्टिस ने कहा, “महीनों से हम आपके बुला रहे हैं और आप सामने नहीं आ रहे हैं। यह अधूरा है. शुरू में आपने कहा था कि यह संभव नहीं है क्योंकि आपका निर्देशक जेल में है, अब निर्देशक बाहर है। आपके मुवक्किल को किसी भी मुद्दे को आगे बढ़ाने का कोई अधिकार नहीं है। हमें कंपनी की बात नहीं सुननी चाहिए, आप डिफ़ॉल्टर हैं, सब कुछ हमारे सामने है। यह स्वत: संज्ञान वाली जनहित याचिका है, आपको सुनवाई का कोई अधिकार नहीं है।”
चीफ जस्टिस ने आगे कहा,
“आप उस हालात, जिसे आपने खुद तैयार किया है, उसके पीड़ित की तरह खुद को नहीं दिखा सकते। आपके अलावा कोई भी जिम्मेदार नहीं है. ....आपको कंपनी की ओर से एक स्पष्ट समाधान लेकर आना चाहिए था।''
अदालत ने सुनवाई के दरमियान एक तल्ख टिप्पणी में अदालत के बार-बार के निर्देशों के बावजूद प्रभावित व्यक्तियों की सहायता के लिए ट्रस्ट स्थापित करने में कंपनी की विफलता की ओर भी इशारा किया। अदालत ने 30 जनवरी और 22 मार्च तक अपने निर्देशों के कार्यान्वयन के संबंध में किसी भी दायर हलफनामे की अनुपस्थिति को ध्यान में रखते हुए, कंपनी के पिछले आदेशों के अनुपालन में कमी पर भी प्रकाश डाला। मामले में कोर्ट ने 26 अप्रैल तक जवाब देने की समयसीमा तय की है।