'जो नागरिक कानून का सम्मान नहीं करता, वह राहत का हकदार नहीं': गुजरात हाईकोर्ट ने अवैध निर्माण गिराने में दखल से किया इनकार
Praveen Mishra
28 July 2025 11:22 AM IST

गुजरात हाईकोर्ट ने अहमदाबाद के रंगवाला छल्ला इलाके में स्थित आवासीय इकाइयों को तोड़े जाने की कार्रवाई पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने पहले ही नोटिस के बावजूद निर्माण कार्य जारी रखा, और सील तोड़कर उस संपत्ति का उपयोग करना शुरू कर दिया, जबकि उनके पास कोई वैध विकास स्वीकृति नहीं थी।
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि संबंधित संपत्ति संरक्षित स्मारक के 300 मीटर दायरे में स्थित है। ऐसे में याचिकाकर्ताओं का मामला GRUDA-2022 की धारा 8(2) के अंतर्गत आता है, जहां अवैध निर्माण को नियमित करने (Regularisation) की अनुमति नहीं है।
न्यायमूर्ति मौना एम. भट्ट ने अपने आदेश में कहा:
“याचिकाकर्ताओं ने बार-बार कानून का उल्लंघन किया है। 11.09.2019 की नोटिस के बाद भी निर्माण जारी रखा गया। बाद में जब संपत्ति को सील किया गया, तो उस सील को तोड़ दिया गया और बिना किसी विधिक चुनौती के संपत्ति का उपयोग शुरू कर दिया गया, जबकि उनके पास 'बिल्डिंग यूज़ परमिशन' भी नहीं था। यह स्पष्ट रूप से कानून की अनदेखी है। इसीलिए, ऐसे नागरिक जो कानून का सम्मान नहीं करते, वे किसी भी राहत के हकदार नहीं हैं।”
याचिकाकर्ताओं का दावा था कि वे पिछले 50 वर्षों से उस स्थान पर किरायेदार या मालिक के रूप में रह रहे हैं और असंगठित मजदूर, ठेलेवाले, ड्राइवर, रिक्शा चालक, दिहाड़ी मजदूर, किराना दुकानदार, कबाड़ी, एसी मैकेनिक, आदि के रूप में काम करते हैं। हालांकि कोर्ट ने कहा कि केवल लंबे समय से रहना इस अवैध निर्माण को वैध नहीं बना सकता, खासकर जब यह 300 मीटर के दायरे में स्थित संरक्षित स्मारक के क्षेत्र में आता है।
कोर्ट ने यह भी बताया कि निर्माण से पहले नेशनल मॉन्यूमेंट अथॉरिटी (NMA) से जरूरी अनुमति नहीं ली गई थी और विकासकर्ता (डेवलपर) द्वारा इस वर्ष मार्च में दाखिल की गई अनुमति की अर्जी केवल औपचारिकता पूरी करने और कार्रवाई रोकने की मंशा से दाखिल की गई प्रतीत होती है।
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले – कनिज़ अहमद बनाम साबुद्दीन का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया था:
“अवैध निर्माण को तोड़ना ही होगा, इसके अलावा कोई रास्ता नहीं है।”
अंततः गुजरात हाईकोर्ट ने सभी याचिकाएं खारिज कर दीं और कहा कि इस मामले में अपील दाखिल करना भी कोई मदद नहीं करेगा क्योंकि कानून के तहत नियमितीकरण की अनुमति ही नहीं है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि इस तरह के मामलों में अदालत की गलत सहानुभूति देना न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ होगा।

