78 बार स्थगन कोई ठोस सुनवाई नहीं: गुजरात हाईकोर्ट ने लंबे समय तक कारावास का हवाला देते हुए NDPS आरोपी को जमानत दी
Amir Ahmad
3 March 2025 6:06 AM

गुजरात हाईकोर्ट ने हाल ही में NDPS Act के तहत एक मामले में आरोपी को नियमित जमानत दी यह देखते हुए कि मुकदमे में पर्याप्त प्रगति नहीं हुई, मामले को लगभग 78 बार स्थगित किया गया, जिसके कारण लंबे समय तक कारावास और मामले में शीघ्र सुनवाई की उम्मीद कम हो गई है।
ऐसा करते हुए हाईकोर्ट ने आगे कहा कि संबंधित अदालत के समक्ष कई NDPS मामले लंबित हैं, जिनका तत्काल निपटान किया जाना आवश्यक है।
जस्टिस गीता गोपी ने कहा,
“मुकदमे के रोजनामा से पता चलता है कि मामला अभियोजन पक्ष के लिए 30.04.2022 को खोला गया। 16.03.2023 से अभियोजन पक्ष के साक्ष्य मुकदमे की कार्यवाही में कुछ भी ठोस नहीं हुआ। लगभग 78 बार, मामले को स्थगित किया गया। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत बहुमूल्य मौलिक अधिकार के संबंध में कानून और लंबे समय तक कारावास और मामले में किसी भी त्वरित सुनवाई की उम्मीद को ध्यान में रखते हुए यह न्यायालय इसे उपयुक्त मामला मानता है जहाँ आवेदक के पक्ष में विवेक का प्रयोग किया जा सकता है।”
इसके अतिरिक्त न्यायालय ने मामले की सुनवाई कर रहे संबंधित जज से रिपोर्ट मांगी। 12वें एडिशनल और जिला जज स्पेशल जज NDPS सूरत की 27 फरवरी की रिपोर्ट के माध्यम से हाईकोर्ट ने पाया कि "उनके न्यायालय में कई अन्य मामले लंबित हैं, जिन्हें तत्काल निपटाने की आवश्यकता है क्योंकि वे न्यायालय के निर्देश के तहत हैं।”
FIR धारा 8(सी) (अधिनियम द्वारा अधिकृत के अलावा मादक दवाओं और मनोदैहिक पदार्थों के उत्पादन, निर्माण, कब्जे, बिक्री, परिवहन और उपयोग पर प्रतिबंध लगाता है) धारा 20(बी)(II)(सी)((व्यावसायिक मात्रा में भांग के कब्जे, बिक्री, खरीद या परिवहन के लिए 10 से 20 साल की कैद और जुर्माना) और धारा 29 (अधिनियम के तहत अपराध करने के लिए आपराधिक साजिश में शामिल किसी भी व्यक्ति को दंडित करता है उन्हें मुख्य अपराधी के समान ही उत्तरदायी मानता है) के तहत दर्ज किया गया।
आवेदक के वकील ने तर्क दिया कि क्रमिक जमानत याचिका मुख्य रूप से इस आधार पर पेश की गई थी कि आवेदक लंबे समय से जेल में है, मुकदमे में देरी हुई है और यह संभावना नहीं है कि मामले को गवाहों के साक्ष्य दर्ज करने के लिए उठाया जा सके। उन्होंने आगे तर्क दिया कि 78 स्थगन के बावजूद स्थिति अभी भी दर्शाती है कि इसे अभियोजन पक्ष के साक्ष्य के लिए पोस्ट किया गया।
उन्होंने आगे कहा कि अभी तक एक भी गवाह की जांच नहीं की गई। उन्होंने आगे सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि जेल में लंबे समय तक कैद रहना सुप्रीम कोर्ट के लिए बहुत बड़ा झटका है। उसने इसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन माना। इस तरह NDPS Act की धारा 37(1)(बी) के तहत बनाए गए वैधानिक प्रतिबंध को दरकिनार करते हुए सशर्त स्वतंत्रता पर विचार किया जा सकता है। इस बीच राज्य के वकील ने इस आधार पर याचिका का विरोध किया कि एक बार मुकदमा शुरू हो जाने के बाद जमानत में कोई रियायत नहीं दी जानी चाहिए और उन्होंने अदालत से नियमित जमानत याचिका को खारिज करने का आग्रह किया।
इसके बाद अदालत ने 15,000 रुपये के निजी मुचलके सहित कुछ शर्तों के अधीन नियमित जमानत आवेदन को स्वीकार कर लिया। अदालत ने संबंधित सत्र न्यायाधीश को किसी भी शर्त के उल्लंघन के मामले में वारंट जारी करने या मामले में उचित कार्रवाई करने का निर्देश दिया।
केस टाइटल: तोफान सुदर्शन शाहू बनाम गुजरात राज्य