लोक अदालत केवल निपटाए गए मामलों का ही निपटारा कर सकती है, यदि निपटारा नहीं होता है तो मामले को निपटान के लिए वापस न्यायालय भेजा जाएगा: गुजरात हाईकोर्ट

Amir Ahmad

16 Sept 2024 12:29 PM IST

  • लोक अदालत केवल निपटाए गए मामलों का ही निपटारा कर सकती है, यदि निपटारा नहीं होता है तो मामले को निपटान के लिए वापस न्यायालय भेजा जाएगा: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश के विरुद्ध याचिका स्वीकार करते हुए, जिसने अपने लोक अदालत क्षेत्राधिकार में गैर-अभियोजन के कारण चेक बाउंसिंग की शिकायत को खारिज कर दिया था, कहा कि लोक अदालत का काम केवल उन मामलों का निपटारा करना है जो पक्षों के बीच सुलझा लिए गए।

    अदालत ने कहा कि इस तरह के निपटारे के अभाव में मामले को निपटान के लिए वापस न्यायालय में भेजा जाना चाहिए।

    विधि सेवा प्राधिकरण अधिनियम के प्रावधानों और हाईकोर्ट के निर्णयों का हवाला देते हुए जस्टिस एमके ठक्कर की एकल पीठ ने अपने आदेश में कहा कि जिन मामलों को निपटान के लिए लोक अदालत में भेजा जाता है, वे वे मामले हैं जिनमें पक्षों के बीच समझौता हो चुका है।

    अदालत ने रेखांकित किया,

    “यदि समझौता नहीं हो पाता है तो इसे विधि सेवा प्राधिकरण अधिनियम की धारा 20(5) के तहत कानून के अनुसार निपटान के लिए अदालत में भेजा जाना चाहिए।"

    इसके बाद हाईकोर्ट ने कहा कि लोक अदालत का कार्य केवल उस मामले का निपटान करना है, जहां समझौता हो चुका है। इसने नोट किया कि वर्तमान मामले में संबंधित पक्षों के बीच कोई समझौता नहीं हुआ है। इसमें कहा गया कि निचली अदालत ने धारा 256 CrPc के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए लोक अदालत में बैठकर इसका निपटारा किया।

    यह देखते हुए कि निचली अदालत का आदेश अधिकार क्षेत्र से बाहर है हाईकोर्ट ने इसे खारिज कर दिया।

    मामले की पृष्ठभूमि

    हाईकोर्ट का यह आदेश निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती देने वाली अपील में आया, जिसने लोक अदालत के अधिकार क्षेत्र में बैठकर गैर-अभियोजन के कारण आपराधिक शिकायत खारिज की।

    शिकायतकर्ता ने दावा किया कि उसने प्रतिवादी आरोपी को 10 लाख रुपये उधार दिए। बाद में उसने भुगतान के लिए शिकायतकर्ता के पक्ष में एक चेक जारी किया, जो अपर्याप्त धन के कारण अनादरित हो गया।

    निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट (NI Act) के तहत निचली अदालत में शिकायत दर्ज की गई, जिसने जून 2015 में समन जारी किया। इसके बाद 2018 में विशेष बैठक में शिकायतकर्ता की अनुपस्थिति दर्ज करने के बाद शिकायत खारिज कर दी गईऔर प्रतिवादी आरोपी को बरी कर दिया गया।

    तर्क

    अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि मामले को लोक अदालत में भेजते समय ट्रायल कोर्ट द्वारा कोई नोटिस जारी नहीं किया गया। यह भी तर्क दिया गया कि कोई समझौता नहीं हुआ था, इसलिए लोक अदालत के पास अनुपस्थिति दर्ज करते समय गैर-अभियोजन के लिए शिकायत खारिज करने का कोई अधिकार नहीं होगा। यह प्रस्तुत किया गया कि विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम की धारा 19 और 20 के अनुसार जब मामले का पक्षों के बीच निपटारा नहीं होता है तो न्यायालय के पास मामले को गुण-दोष के आधार पर तय करने के लिए नियमित अदालत में वापस करने के अलावा कोई अधिकार नहीं होगा।

    इस बीच प्रतिवादी ने प्रस्तुत किया कि जिन मामलों में समझौता हो चुका है उनके साथ-साथ लोक अदालत के पास छोटे मामलों का निपटान करने का अधिकार होगा, जो मृत लकड़ी के रूप में बने हुए हैं। शिकायतकर्ता लंबे समय तक उपस्थित नहीं हुआ, इसलिए ट्रायल कोर्ट ने इसे मृत लकड़ी का मामला माना। इसे लोक अदालत में भेज दिया, जहां शिकायत खारिज कर दी गई।

    आगे यह भी कहा गया कि लोक अदालत के पास शिकायतों को गुण-दोष के आधार पर खारिज करने की शक्ति नहीं होगी, लेकिन जब किसी मामले में शिकायतकर्ता अदालत के समक्ष उपस्थित नहीं होता है तो गैर-अभियोजन के लिए शिकायत को खारिज करना गुण-दोष के आधार पर आदेशित नहीं कहा जा सकता।

    निष्कर्ष

    पक्षों के वकीलों की दलीलें सुनने और रिकॉर्ड देखने के बाद अदालत ने पाया कि शिकायत दर्ज होने के बाद ट्रायल कोर्ट ने जून 2015 में समन जारी किया। आरोपी ट्रायल कोर्ट के समक्ष पेश हुआ और रिकॉर्ड से पता चला कि उसके बाद मामले को शिकायतकर्ता के साक्ष्य के लिए पोस्ट किया गया और कुछ मौकों पर शिकायतकर्ता की अनुपस्थिति दर्ज की गई।

    हाईकोर्ट ने कहा यह पता चला कि शिकायतकर्ता की कोई निरंतर अनुपस्थिति नहीं थी। उसका वकील लगभग हर अवसर पर उपस्थित रहा। इसके बाद मामले को ट्रायल कोर्ट द्वारा लोक अदालत में भेजा गया। हालांकि हाईकोर्ट ने कहा रिकॉर्ड में किसी भी नोटिस का संकेत नहीं है, जो मामले को लोक अदालत में भेजकर ट्रायल कोर्ट द्वारा जारी किया गया हो।

    इसके अतिरिक्त हाईकोर्ट ने नोट किया कि ट्रायल कोर्ट ने 2018 में लोक अदालत के अधिकार क्षेत्र में बैठकर शिकायत खारिज कर दी थी। हाईकोर्ट ने विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम की धारा 19, 20 और 21 का हवाला दिया। धारा 19 लोक अदालतों के आयोजन से संबंधित है। 20 लोक अदालतों द्वारा मामलों के संज्ञान से संबंधित है और 21 लोक अदालत के निर्णय से संबंधित है।

    हाईकोर्ट ने कहा कि धारा 19(5) में यह प्रावधान है कि लोक अदालत को किसी भी मामले के संबंध में किसी विवाद के पक्षकारों के बीच समझौता या समाधान करने का अधिकार होगा, जो न्यायालय के समक्ष लंबित है या किसी ऐसे मामले के अधिकार क्षेत्र में आता है और जिसे किसी ऐसे न्यायालय के समक्ष नहीं लाया जाता, जिसके लिए लोक अदालत आयोजित की जाती है।

    धारा 20 में यह प्रावधान है कि मामले लोक अदालत को तभी भेजे जाएंगे जब पक्षकार सहमत हो गए हों या उनमें से कोई एक पक्ष न्यायालय में आवेदन करेगा। धारा 20(1) के प्रावधान में यह प्रावधान है कि कोई भी मामला पक्षकारों को सुनवाई का उचित अवसर दिए बिना खंड 1 और खंड 2 के उपखंड (बी) के तहत लोक अदालत को नहीं भेजा जाएगा।

    धारा 20(5) में यह भी प्रावधान है कि जहां पक्षकारों के बीच कोई समझौता या समाधान न होने के कारण लोक अदालत द्वारा कोई निर्णय नहीं दिया गया, वहां मामले का रिकॉर्ड उस न्यायालय को लौटा दिया जाएगा, जहां से संदर्भ प्राप्त हुआ है, ताकि कानून के अनुसार उसका निपटान किया जा सके।

    प्रतिवादी द्वारा ऐसे मामले पर भरोसा करने के संबंध में जहां यह माना गया कि एक मृत लड़की के मामले को लोक अदालत की विशेष बैठक में समाप्त किया जा सकता है, हाईकोर्ट ने टिप्पणी की,

    "यह मामले को त्वरित निर्णय द्वारा निपटाने का छोटा रास्ता हो सकता है लेकिन यह कानून के अनुसार नहीं है। विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम न्यायालय को ऐसे मामले का निपटान करने से रोकता है, जहां कोई समझौता नहीं हुआ है। इसलिए विशेष बैठक में लोक अदालत में अपनाई गई विधि अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत है।”

    अपील स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि शिकायत को उसकी मूल फाइल में वापस रखा जाए और उसके गुण-दोष के आधार पर निर्णय लिया जाए।

    हाईकोर्ट ने कहा,

    "मामला 2013 से लंबित है। इसलिए निचली अदालत को निर्देश दिया जाता है कि वह इसे यथाशीघ्र निपटाए अधिमानतः इस आदेश की तिथि से आठ महीने की अवधि के भीतर पक्षों को उनके साक्ष्य प्रस्तुत करने का उचित अवसर प्रदान करने के बाद।"

    केस टाइटल- सतीशभाई शांतिलाल मेहता बनाम गुजरात राज्य और अन्य।

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