अदालतों को जुर्माना लगाने का अधिकार हालांकि यह असहनीय नहीं होना चाहिए; रजिस्ट्री की ओर से जुर्माना जमा करने पर जोर देना वादी के अपील के अधिकार का हनन: गुजरात हाईकोर्ट

Avanish Pathak

11 Feb 2025 9:57 AM

  • अदालतों को जुर्माना लगाने का अधिकार हालांकि यह असहनीय नहीं होना चाहिए;  रजिस्ट्री की ओर से जुर्माना जमा करने पर जोर देना वादी के अपील के अधिकार का हनन: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि न्यायालयों को ओछे मुकदमों पर जुर्माना लगाने का अधिकार है, हालांकि ऐसा तार्किक रूप से किया जाना चाहिए। हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट की ओर से एक वादी पर लगाए गए 25 हजार के जुर्माने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणी की।

    हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में देखा कि ट्रायल कोर्ट ने यह निष्कर्ष नहीं निकाला है कि पुनर्विचार याचिका "परेशान करने वाली या झूठी" थी। इस तथ्य पर ध्यान देते हुए कि जिला न्यायालय की रजिस्ट्री जुर्माना जमा करने पर जोर दे रही थी, जिससे ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील करने के याचिकाकर्ता के अधिकार पर असर पड़ रहा था, हाईकोर्ट ने कहा कि यह "निंदनीय" है क्योंकि ट्रायल कोर्ट ने ऐसा कोई भी अवलोकन नहीं किया था। हाईकोर्ट ने आगे इस बात पर जोर दिया कि इस तरह के निषेध के अभाव में हाईकोर्ट की रजिस्ट्री को इस तरह से जमा पर जोर नहीं देना चाहिए क्योंकि यह वादी को अपील करने के उनके अधिकार से वंचित करता है।

    तथ्यों और विशेष परिस्थितियों पर विचार करने के बाद - विशेष रूप से यह कि ट्रायल कोर्ट ने "कोई निष्कर्ष" दर्ज नहीं किया था, जिससे यह कहा जा सके कि पुरर्विचार याचिका "परेशान करने वाली" थी, हाईकोर्ट ने पाया कि जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को भुगतान की जाने वाली 25,000 रुपये की लागत "बहुत अधिक है और यदि कोई है तो उसकी ओर से किए गए कदाचार के अनुरूप नहीं है"।

    हाईकोर्ट ने कहा कि "प्रथम दृष्टया" ऐसा प्रतीत होता है कि ट्रायल कोर्ट ने पुनर्विचार आवेदन को खारिज कर दिया है, क्योंकि वह इस बात से संतुष्ट नहीं है कि रिकॉर्ड के अनुसार कोई त्रुटि है, जैसा कि याचिकाकर्ता ने दिखाया है। ट्रायल कोर्ट ने इस प्रकार टिप्पणी की कि इस तरह के आवेदन में न्यायिक समय व्यतीत होने के बाद, जो किसी भी तरह से योग्य नहीं है, आवेदन को डीएलएसए को भुगतान किए जाने वाले 25,000 रुपये की जुर्माने के साथ खारिज किया जाता है।

    हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में ट्रायल कोर्ट के आदेश को इस सीमा तक संशोधित किया कि "जुर्माने" को घटाकर 15,000 रुपये कर दिया गया है, जबकि शेष आदेश अपरिवर्तित रहेगा। इसके बाद हाईकोर्ट ने याचिका को "आंशिक रूप से स्वीकार" कर लिया, और स्पष्ट किया कि उसने मुख्य मुद्दे को नहीं छुआ है।

    केस टाइटल: रामसिंहभाई धनजीभाई प्रजापति बनाम दहयाभाई धनजीभाई प्रजापति और अन्य।

    केस नंबर: एससीए/15942 वर्ष 2024

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