संशोधित पेंशन लाभ प्रदान करने के लिए राज्य कट-ऑफ तिथियों के आधार पर समरूप वर्ग के पेंशनभोगियों का मनमाने ढंग से वर्गीकरण नहीं कर सकता: गुवाहाटी हाईकोर्ट

Shahadat

4 Sept 2025 10:01 AM IST

  • संशोधित पेंशन लाभ प्रदान करने के लिए राज्य कट-ऑफ तिथियों के आधार पर समरूप वर्ग के पेंशनभोगियों का मनमाने ढंग से वर्गीकरण नहीं कर सकता: गुवाहाटी हाईकोर्ट

    जस्टिस आशुतोष कुमार और जस्टिस अरुण देव चौधरी की गुवाहाटी हाईकोर्ट की खंडपीठ ने माना कि रिटायरमेंट की तिथि के आधार पर पेंशनभोगियों का वर्गीकरण, जबकि सभी रिटायरमेंट समरूप वर्ग बनाते हैं। वेतन संशोधन एक विशेष तिथि से प्रभावी होता है, मनमाना और अनुचित है। इसके अलावा, वित्तीय बाधाओं के कारण इस तरह के भेदभावपूर्ण व्यवहार को उचित नहीं ठहराया जा सकता।

    पृष्ठभूमि तथ्य

    असम वेतन आयोग, 2008 ने वेतन और पेंशन संशोधन के लिए अपनी सिफारिशें प्रस्तुत कीं। इन सिफारिशों को असम सरकार ने स्वीकार किया और 01.01.2006 से लागू कर दिया। हालांकि, राज्य सरकार ने वित्तीय बाधाओं का हवाला देते हुए 01.01.2006 और 31.03.2009 के बीच रिटायरमेंट हुए रिटायरमेंट अधिकारियों, शिक्षकों जैसे कर्मचारियों को पेंशन और मृत्यु-सह-रिटायरमेंट ग्रेच्युटी का बकाया नहीं देने का फैसला किया। असम वेतन आयोग, 2008 की स्वीकृति और कार्यान्वयन के बावजूद, इन कर्मचारियों को केवल नाममात्र के लाभ ही दिए गए।

    इस निर्णय से व्यथित होकर प्रतिवादियों ने असम वेतन आयोग, 2008 के तहत पूर्ण लाभ देने से इनकार करने को चुनौती देते हुए रिट याचिका दायर की। सिंगल जज ने कहा कि सभी पेंशनभोगी एक समरूप वर्ग बनाते हैं। पेंशन संबंधी लाभ देने के लिए रिटायरमेंट की तिथि के आधार पर वर्गीकरण अस्वीकार्य है, खासकर जब सिफारिशें 01.01.2006 से प्रभावी थीं। असम राज्य ने सिंगल जज के फैसले के खिलाफ अपील दायर की। हालांकि, बाद में पुनर्विचार याचिका दायर करने के लिए अपील वापस ली। इसे इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि रिकॉर्ड में कोई त्रुटि स्पष्ट नहीं थी।

    पुनर्विचार याचिका और 28.04.2016 का मूल आदेश खारिज किए जाने से व्यथित होकर असम राज्य ने अंतर-न्यायालय अपील दायर की।

    अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि राज्य को पेंशन लाभ बढ़ाने के लिए अंतिम तिथि निर्धारित करने का अधिकार है। राज्य ने आगे तर्क दिया कि वेतन में वृद्धि या अन्य लाभों का लाभ प्रदान करने के लिए अंतिम तिथि निर्धारित करने हेतु वित्तीय बाधा एक वैध आधार हो सकती है। अपीलकर्ता ने आगे तर्क दिया कि वित्तीय बाधाएं अंतिम तिथि के आधार पर वर्गीकरण करने के लिए वैध और उचित आधार हैं, जैसा कि पंजाब राज्य एवं अन्य बनाम अमर नाथ गोयल एवं अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा मान्यता प्राप्त है।

    दूसरी ओर, प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि 01.01.2006 और 31.03.2009 के बीच रिटायर हुए लोगों को पेंशन का बकाया देने से इनकार करने का राज्य का निर्णय मनमाना और असंवैधानिक था, क्योंकि असम वेतन आयोग, 2008 की सिफारिशें 01.01.2006 से लागू की गईं।

    न्यायालय के निष्कर्ष

    न्यायालय ने पाया कि असम वेतन आयोग, 2008 की सिफारिशें 01.01.2006 से स्वीकार और लागू की गईं। न्यायालय ने यह भी पाया कि संशोधित पेंशन प्रदान करने के उद्देश्य से पेंशनभोगियों की दो श्रेणियां बनाने का कोई वैध औचित्य नहीं था, अर्थात् वे जो 01.01.2006 और 31.03.2009 के बीच रिटायर हुए और वे जो 31.03.2009 के बाद रिटायर हुए। यह भी कहा गया कि सभी पेंशनभोगी एक ही वर्ग के हैं और असम वेतन आयोग, 2008 की सिफारिशों के अनुसार अपनी पेंशन में संशोधन के हकदार हैं।

    अदालत ने ऑल मणिपुर पेंशनर्स एसोसिएशन बनाम मणिपुर राज्य मामले पर भरोसा किया, जिसमें यह माना गया कि राज्य द्वारा किया जाने वाला वर्गीकरण संशोधित पेंशन का लाभ प्रदान करने के उद्देश्य और प्रयोजन से संबंधित नहीं है।

    अदालत ने यह माना कि संशोधन का उद्देश्य और प्रयोजन जीवन-यापन की बढ़ती लागत के कारण है और जब सभी पेंशनभोगी एक ही वर्ग के हैं तो समरूप समूह के बीच कोई अलग वर्गीकरण नहीं हो सकता। इसलिए सिंगल जज ने अधिकारियों की कार्रवाई को अनुचित, मनमाना और भेदभावपूर्ण माना।

    इसके अलावा, अदालत ने डी.एस. नाकारा एवं अन्य बनाम भारत संघ मामले पर भी भरोसा किया, जिसमें यह माना गया कि कट-ऑफ तिथि से पूर्व और बाद के रिटायर लोगों के बीच वर्गीकरण मनमाना था, जबकि दोनों वर्ग एक समरूप वर्ग बनाते थे। इसलिए जब सभी रिटायर कर्मचारी एक समरूप वर्ग बनाते हैं तो लाभ समान रूप से वितरित किए जाने चाहिए।

    न्यायालय ने यह भी कहा कि पंजाब राज्य बनाम अमर नाथ गोयल मामले में निर्धारित अनुपात इस मामले में लागू नहीं होगा। राज्य की कार्रवाई मनमानी और भेदभावपूर्ण पाई गई। सिंगल जज द्वारा सभी रिटायर कर्मचारियों को संशोधित पेंशन लाभ प्रदान करने के निर्देश देने वाले निर्णय को न्यायालय ने बरकरार रखा।

    उपरोक्त टिप्पणियों के साथ राज्य द्वारा दायर रिट अपील खारिज कर दी गई।

    Case Name : State Of Assam vs All Assam Retired Officers, Teachers And Employees Committee & Ors

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