गुवाहाटी हाईकोर्ट ने ART Act के तहत आयु-सीमा को ठहराया वैध, कहा- मां और बच्चे के हित में है प्रावधान
Amir Ahmad
30 Dec 2025 1:40 PM IST

गुवाहाटी हाईकोर्ट ने सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (रेगुलेशन) अधिनियम, 2021 (ART Act) की धारा 21(g) की संवैधानिक वैधता बरकरार रखते हुए कहा कि ART सेवाओं के लिए तय की गई आयु-सीमा मां और होने वाले बच्चे के कल्याण को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से निर्धारित की गई।
अधिनियम की धारा 21(g) के अनुसार ART सेवाएं 21 वर्ष से अधिक और 50 वर्ष से कम आयु की महिलाओं तथा 21 वर्ष से अधिक और 55 वर्ष से कम आयु के पुरुषों को ही प्रदान की जा सकती हैं।
चीफ जस्टिस अशुतोष कुमार और जस्टिस अरुण देव चौधरी की खंडपीठ ने यह फैसला एक विवाहित दंपती की याचिका पर सुनाया, जिसमें उन्होंने अपनी आयु-अपात्रता के बावजूद ART सेवाएं लेने की अनुमति देने और उक्त प्रावधान को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की थी।
अनुच्छेद 21 के तहत प्रजनन अधिकार, लेकिन पूर्ण स्वायत्तता नहीं
अदालत ने माना कि प्रजनन संबंधी विकल्प चुनने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हिस्सा है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने सुचिता श्रीवास्तव बनाम चंडीगढ़ प्रशासन (2009) के फैसले में भी मान्यता दी है।
हालांकि, हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 21 के तहत प्राप्त संरक्षण का अर्थ यह नहीं है कि हर व्यक्तिगत विकल्प विनियमन से परे हो।
पीठ ने कहा कि सामाजिक कल्याण और सार्वजनिक स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में संवैधानिक अधिकार 'उचित विनियमन' के दायरे में ही कार्य करते हैं।
अदालत ने टिप्पणी की कि आयु-सीमा मेडिकल साइंस, नैतिक मानकों और मां एवं बच्चे के हितों को ध्यान में रखकर तय की गई और यह पूरी तरह से विधायिका के अधिकार क्षेत्र में आता है।
न्यायालय ने कहा कि आयु-सीमा का निर्धारण नीति का विषय है और इसे मनमाना तभी कहा जा सकता है जब वह बिना किसी तर्कसंगत आधार के तय की गई हो। मौजूदा मामले में यह स्पष्ट है कि यह प्रावधान मां और बच्चे के स्वास्थ्य एवं सुरक्षा से जुड़ा है।
अदालत ने यह भी दोहराया कि संसद द्वारा बनाए गए कानूनों को संवैधानिकता की पूर्वधारणा प्राप्त होती है। इसे असंवैधानिक सिद्ध करने का भार याचिकाकर्ताओं पर होता है।
याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि आयु-आधारित वर्गीकरण उनके व्यक्तिगत चिकित्सीय फिटनेस को नजरअंदाज करता है और इससे अनुच्छेद 14 व 21 का उल्लंघन होता है।
इस पर अदालत ने कहा कि धारा 21(g) के तहत किया गया वर्गीकरण सभी इच्छुक दंपतियों पर समान रूप से लागू होता है, इसमें एक स्पष्ट और समझने योग्य अंतर है। इसका सीधा संबंध सुरक्षित, नैतिक और सामाजिक रूप से जिम्मेदार ART सेवाओं के नियमन से है। इसलिए यह प्रावधान अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं करता।
अदालत ने याचिकाकर्ताओं की उस दलील को भी खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया कि उन्होंने 2021 अधिनियम के लागू होने से पहले ART उपचार शुरू किया, इसलिए उन पर नई आयु-सीमा लागू नहीं होनी चाहिए।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इससे कोई 'वेस्टेड राइट' (स्थायी अधिकार) उत्पन्न नहीं होता और पात्रता का निर्धारण उसी तारीख के कानून के अनुसार होगा, जब ART सेवाएं ली जानी हैं।
खंडपीठ ने कहा कि व्यक्तिगत कठिनाई या मेडिकल फिटनेस के आधार पर छूट देना न्यायपालिका द्वारा विधायी नीति में हस्तक्षेप के समान होगा, जो संवैधानिक समीक्षा की सीमाओं से बाहर है।
अंततः अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि ART Act, 2021 की धारा 21(g) संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन नहीं करती और यह संवैधानिक जांच में खरी उतरती है। इसके साथ ही याचिका खारिज कर दी गई।

