अधिसूचित सेना कोर में महिलाओं की भर्ती संख्यात्मक रूप से सीमित नहीं की जा सकती: दिल्ली हाईकोर्ट
Shahadat
18 Sept 2025 11:15 AM IST

जस्टिस सी. हरि शंकर और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की दिल्ली हाईकोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि सेना अधिनियम की धारा 12 के तहत अधिसूचित सेना कोर में महिलाओं की भर्ती संख्यात्मक रूप से सीमित नहीं की जा सकती, क्योंकि यह अनुच्छेद 14, 15 और 16 के तहत लैंगिक तटस्थता और समानता का उल्लंघन करता है।
पृष्ठभूमि तथ्य
संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) द्वारा 04.08.2021 को संयुक्त रक्षा सेवा परीक्षा (II) 2021 के लिए परीक्षा सूचना जारी की गई। इसमें भारतीय सेना में विभिन्न पदों पर भर्ती के लिए आवेदन आमंत्रित किए गए। इसमें शॉर्ट सर्विस कमीशन (गैर-तकनीकी) महिलाओं के लिए पद थे। अधिसूचना के अनुसार, पुरुषों के लिए 169 और महिलाओं के लिए 16 रिक्तियां निर्धारित की गईx। याचिकाकर्ता सभी महिला उम्मीदवार थीं। उन्होंने SSC (NT) महिला वर्ग के लिए आवेदन किया और परीक्षा उत्तीर्ण की। पुरुषों के लिए 169 रिक्तियों में से केवल 107 ही भरी गईं। इसलिए 62 रिक्तियां खाली रह गईं, जबकि महिलाओं के लिए सभी 16 रिक्तियां समाप्त हो गईं।
याचिकाकर्ताओं ने पुरुषों के लिए रिक्त 62 रिक्तियों पर नियुक्ति का दावा किया। उनका तर्क था कि महिला उम्मीदवारों की संख्या सीमित करना असंवैधानिक है। जेंडर न्यूट्रल के सिद्धांत का उल्लंघन है। उन्होंने इस देरी के कारण नियुक्ति पत्र जारी करने, भविष्य के SSC (NT) कोर्स में विचार करने और अधिकतम आयु सीमा 25 वर्ष में छूट देने के निर्देश देने की भी मांग की। हालांकि, प्रतिवादियों ने उनके दावों को अस्वीकार कर दिया।
इससे व्यथित होकर याचिकाकर्ताओं ने रिट याचिका दायर की।
याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि अर्शनूर कौर बनाम भारत संघ के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि एक बार जब महिलाओं को सेना अधिनियम, 1950 की धारा 12 के तहत किसी कोर में प्रवेश की अनुमति मिल जाती है तो प्रतिवादी नीति या कार्यकारी निर्देशों के माध्यम से उनकी नियुक्ति की सीमा पर कोई सीमा नहीं लगा सकते। यह तर्क दिया गया कि रिक्त पदों की उपस्थिति में नियुक्ति से इनकार करना जेंडर न्यूट्रल के सिद्धांत के साथ-साथ भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 के तहत संवैधानिक गारंटियों का उल्लंघन है।
दूसरी ओर, प्रतिवादियों ने दलील दी कि याचिकाकर्ता इस तथ्य की पूरी जानकारी के साथ चयन में भाग लेने के बाद कि केवल 16 रिक्तियां महिलाओं के लिए आरक्षित थीं, पुरुषों के लिए रिक्तियों के विरुद्ध नियुक्ति की मांग नहीं कर सकते। आगे दलील दी गई कि डॉ. (मेजर) मीता सहाय बनाम बिहार राज्य के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि जो उम्मीदवार भाग लेते हैं और असफल होते हैं, वे बाद में अवसरवादी चुनौतियों और सफलता के "दूसरे प्रयास" को रोकने के लिए चयन पर सवाल नहीं उठा सकते। मनीष कुमार शाही बनाम बिहार राज्य के मामले में भी यही सिद्धांत स्थापित किया गया। हालांकि, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि भागीदारी प्रक्रिया में किसी भी अवैधता को चुनौती देने से नहीं रोकती।
यह भी तर्क दिया गया कि अर्शनूर कौर मामले में लिया गया निर्णय केवल जेएजी शाखा में महिलाओं की भर्ती तक सीमित था। इसे सशस्त्र बलों की अन्य शाखाओं पर लागू नहीं किया जा सकता। इस बात पर ज़ोर दिया गया कि यह निर्णय JAG के लिए योग्यता-आधारित जेंडर-न्यूट्रल भर्ती और महिलाओं को कम-से-कम 50% रिक्तियों के आवंटन पर केंद्रित था। यह भी तर्क दिया गया कि SCC के माध्यम से महिलाओं की भर्ती को सीमित करना एक वैध नीतिगत विचार था, जिसमें युद्ध की तैयारी और परिचालन जोखिमों को ध्यान में रखा गया। यह तर्क दिया गया कि इन मामलों को कोर्ट के बजाय नीति निर्माताओं पर छोड़ दिया जाना चाहिए।
अदालत का निष्कर्ष
अदालत ने यह टिप्पणी की कि प्रतिवादी द्वारा उठाई गई एस्टोपल की दलील टिकने योग्य नहीं है, क्योंकि मौलिक अधिकारों का हनन केवल इसलिए नहीं किया जा सकता, क्योंकि याचिकाकर्ताओं ने यह जानते हुए भी परीक्षा में भाग लिया कि महिलाओं के लिए केवल 16 पद विज्ञापित किए गए।
अर्शनूर कौर बनाम भारत संघ मामले का हवाला दिया गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया कि जेंडर न्यूट्रल संवैधानिक अनिवार्यता है, जो केवल लैंगिक समानता से अलग है। सेना अधिनियम, 1950 की धारा 12 के तहत महिलाओं को एक बार किसी कोर या शाखा में शामिल होने की अनुमति मिल जाने के बाद अधिकारी नीति या प्रशासनिक निर्देशों के ज़रिए उनकी संख्या को सीमित नहीं कर सकते। यह माना गया कि महिलाएं लड़ाकू सहायक शाखाओं और सेवाओं तक ही सीमित हैं और वे तोपखाने या बख्तरबंद डिवीजन जैसी लड़ाकू शाखाओं में प्रवेश नहीं कर सकतीं। इसलिए एक बार उन्हें किसी अधिसूचित शाखा में अनुमति मिल जाने के बाद सेना अतिरिक्त प्रतिबंध नहीं लगा सकती, क्योंकि धारा 12 ऐसी सीमाओं का प्रावधान नहीं करती। बबीता पुनिया मामले में स्थायी कमीशन क्रमिक रूप से प्रदान किए गए, जिससे अवसर की समानता को बल मिला।
अदालत ने यह टिप्पणी की कि नीति या निर्देशों के माध्यम से पुरुषों के लिए पदों की संख्या सीमित करना या आरक्षित करना अनुचित है, क्योंकि यह धारा 12 की अधिसूचना को रद्द कर देगा। यह माना गया कि महिलाएं लड़ाकू शाखाओं में प्रवेश नहीं कर सकतीं। हालांकि, 1992 की दस शाखाओं के लिए अधिसूचनाएं संख्या सीमित किए बिना प्रवेश की अनुमति देती हैं।
अदालत ने यह माना कि पद रिक्त रहने तक पात्र महिला उम्मीदवारों को विचार से वंचित नहीं किया जा सकता। अदालत ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ताओं को 62 रिक्त पुरुष पदों पर नियुक्ति के लिए विचार किया जाना चाहिए, बशर्ते कि वे एक या अधिक चिन्हित कोर और सेवाओं में उपयुक्त हों। यह स्पष्ट किया गया कि इस आदेश का लाभ केवल उन्हीं को मिलेगा, जो परिणाम घोषित होने की तिथि को निर्धारित आयु सीमा के भीतर हों।
उपरोक्त टिप्पणियों के साथ याचिकाकर्ताओं के पक्ष में रिट याचिका स्वीकार कर ली गई।
Case Name : Shruti Vyas & Ors. Union Of India Through & Anr.

