'वसीयत में बेटे का नाम गलत लिखा, पता भी गलत': दिवंगत संजय कपूर के बच्चों ने जालसाजी के आरोपों पर दिल्ली हाईकोर्ट में बताया
Shahadat
13 Oct 2025 8:24 PM IST

एक्ट्रेस करिश्मा कपूर और दिवंगत उद्योगपति संजय कपूर के बच्चों ने सोमवार (13 अक्टूबर) को दिल्ली हाईकोर्ट को बताया कि उनके दिवंगत पिता की कथित वसीयत जाली है, क्योंकि इसमें उनके बेटे का नाम गलत लिखा है और कई जगहों पर उनकी बेटी का पता भी गलत दिया गया।
सीनियर एडवोकेट महेश जेठमलानी ने वसीयत में त्रुटियों की ओर इशारा करते हुए कहा कि ये उनके पिता के स्वभाव के विपरीत हैं। उन्होंने यह भी कहा कि वसीयत इतनी लापरवाही से लिखी गई कि यह उनकी गरिमा को ठेस पहुंचाती है।
पिछली सुनवाई में बच्चों ने हाईकोर्ट को बताया कि यह बेहद संदिग्ध है कि उनके पिता दिवंगत संजय कपूर जैसे सुशिक्षित व्यक्ति, कथित वसीयत के निष्पादक को यह नहीं बताएंगे कि उन्हें निष्पादक नियुक्त किया गया। यह दलील वादी समायरा कपूर और उनके भाई ने अपने दिवंगत पिता की निजी संपत्ति में हिस्सेदारी की मांग करते हुए दी थी।
एक्ट्रेस के बच्चों ने संजय कपूर की पत्नी प्रिया कपूर, उनके बेटे, साथ ही मृतक की माँ रानी कपूर और श्रद्धा सूरी मारवाह के खिलाफ मुकदमा दायर किया, जो 21 मार्च, 2025 की वसीयत की कथित निष्पादक हैं।
सुनवाई के दौरान, वादी की ओर से सीनियर एडवोकेट महेश जेठमलानी ने जस्टिस ज्योति सिंह के समक्ष दलील दी कि वसीयत की निष्पादक (प्रतिवादी 4) को कभी यह सूचित नहीं किया गया कि उन्हें इस 30,000 करोड़ रुपये के साम्राज्य की निष्पादक नियुक्त किया गया।
जेठमलानी ने कहा,
"यहां निष्पादक एक निष्क्रिय पक्ष रहा है। उसने प्रतिवादी नंबर 1 द्वारा निष्पादन का रूप स्वीकार कर लिया है। यहां उनकी बेटी का पता गलत लिखा गया। संजय कपूर उसका पता जानते हैं। यह करिश्मा कपूर का कार्यालय का पता है। इस तरह की गलतियां मिस्टर कपूर के स्वभाव से बिल्कुल अलग हैं। उनके अपने बच्चों के साथ बहुत अच्छे संबंध थे। उन्होंने वसीयत में अपनी बेटी का पता गलत कैसे लिखा और अपने बेटे का नाम कई जगहों पर गलत कैसे लिखा।"
उन्होंने कहा कि अगर वसीयत में संशोधन किया जा रहा है तो और भी कई बुनियादी बातें हैं, जिन्हें संशोधित करने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा,
"यह वसीयत दिवंगत संजय कपूर का अपमान करती है। यह बहुत ही लापरवाही से लिखी गई।"
उन्होंने आगे कहा कि वसीयत में आभूषण, क्रिप्टो संपत्ति आदि सहित विभिन्न संपत्तियों का विवरण नहीं दिया गया। जेठमलानी ने आगे कहा कि यह कोई वसीयत नहीं है, जिसे संजय कपूर ने तैयार किया हो, पढ़ा हो या बनाया हो।
उन्होंने आगे कहा,
"किसी भी चुनौती से बचने के लिए यह केवल वसीयत के लाभार्थी द्वारा ही किया जा सकता है... केवल एक ही व्यक्ति को इसका लाभ दिया गया। अगर यह वसीयत जाली है तो केवल एक ही व्यक्ति ने इसे जाली बनाया होगा।"
जेठमलानी ने दलील दी कि वसीयत की पहली वर्ड फ़ाइल 25 फरवरी, 2010 को नितिन शर्मा के डिवाइस पर तैयार की गई थी।
उन्होंने कहा,
"यह तर्क से परे है कि मिस्टर कपूर अपने बेटे के साथ छुट्टियों पर रहते हुए शर्मा के डिवाइस पर संग्रहीत वसीयत में संशोधन कर रहे थे। हमें दस्तावेज़ की विषय-वस्तु के बारे में जानकारी नहीं है। इससे केवल बिना विषय-वस्तु वाली फ़ाइल का पता चलता है। प्रमाणिक मूल्य शून्य है। उनके मामले में एक स्पष्ट विरोधाभास है। फ़ाइल के नीचे लिखा है कि 'यह फ़ाइल किसी अन्य कंप्यूटर से आई है और इसे ब्लॉक किया जा सकता है'। इसलिए स्रोत स्पष्ट नहीं है। इस वसीयत में कुछ बहुत ही गोपनीय है।"
उन्होंने कहा कि 'उक्त वसीयत' में मृतक की कोई संलिप्तता नहीं है और वादी को कोई दस्तावेज़ भी नहीं दिए गए।
उन्होंने आगे कहा,
"उनका स्वास्थ्य बहुत अच्छा था, उनकी भारतीय संपत्ति इस वसीयत के विपरीत एक बहुत ही मज़बूत ट्रस्ट द्वारा सुरक्षित थी। परिस्थितिजन्य साक्ष्य इतने विपरीत हैं कि इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वसीयत की विषय-वस्तु गलत है। मैं यह बात मृतक और उसके वंचित बच्चों के बीच फ़ोन पर हुई बातचीत के आधार पर कह रहा हूं।"
उन्होंने दलील दी कि विचाराधीन वसीयत में 17 मार्च को संशोधन किया गया और यह स्पष्ट नहीं है कि इसे किसने संशोधित किया। उन्होंने कहा कि वसीयत 21 मार्च को निष्पादित की गई, इसे 24 मार्च को फिर से संशोधित किया गया।
हालांकि, जेठमलानी ने दलील दी कि 24 मार्च को एक संशोधन किया गया और प्रतिवादियों ने इसका स्पष्टीकरण नहीं दिया।
उन्होंने कहा,
"संजय, प्रिया कपूर और दिनेश अग्रवाल के साथ व्हाट्सएप ग्रुप था, जहां वसीयत को पीडीएफ फाइल के रूप में भेजा गया और उसका नाम फिर से दो बार बदला गया। पति-पत्नी की एक साथ दो वसीयतें तैयार की जा रही थीं। ये आपसी वसीयतें नहीं थीं, इसलिए इनका स्पष्टीकरण देना होगा... उन्होंने हस्ताक्षरित वसीयतों के बारे में भी बात की थी और मैसेज की पुष्टि प्रिया ने की थी, संजय ने नहीं।"
जेठमलानी ने कहा,
"अगर हम दिनेश का फ़ोन देखें तो पता चलता है कि उसमें ग्रुप चैट का नाम या फ़ोन नंबर नहीं है। फिर अलग से जांच की जा सकती है कि "एसके वसीयत" सिर्फ़ देखी गई, पढ़ी नहीं गई। यह एक बेहद अप्रमाणित दस्तावेज़ है। यह आश्चर्यजनक है कि वे ईमेल से व्हाट्सएप चैट पर चले गए। वह सिर्फ़ ईमेल प्रमाणित करते हैं, व्हाट्सएप चैट नहीं।"
उन्होंने दलील दी कि इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य प्रमाणपत्र दाखिल करने के संबंध में एक बड़ी चूक हुई।
जेठमलानी ने आगे कहा कि व्हाट्सएप दस्तावेज़ मनगढ़ंत हैं।
उन्होंने कहा,
"यह एक ऐसा मामला है, जहां लगभग हर संदिग्ध परिस्थिति मौजूद है। किसी वकील ने वसीयत नहीं बनवाई। एक आम गवाह को लिया गया। वसीयत की विषय-वस्तु बेहद हास्यास्पद है।"
जेठमलानी ने कहा कि संजय के दाह संस्कार के प्रतिवादी नंबर 4 (वसीयत के निष्पादक) उनके घर आए और उनके निधन पर शोक व्यक्त किया।
उन्होंने तर्क दिया,
"उक्त वसीयत की मूल प्रति डी1 (प्रिया कपूर) द्वारा डी4 को सौंपी गई। वसीयत का कब्ज़ा ही विरोधाभास का विषय है। ऐसे पवित्र अवसर पर इसे निष्पादक को देने की होड़ मची हुई थी।"
उन्होंने आगे कहा कि वादी पक्ष को वसीयत की कॉपी मिल गई। हालांकि, उन्होंने अभी तक मूल प्रति का निरीक्षण नहीं किया। अदालत ने पूछा कि क्या पहले भी कोई वसीयत बनाई गई थी तो इस पर वकील ने कहा कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है।
इस मामले की सुनवाई मंगलवार को भी जारी रहेगी।
Case Title: MS. SAMAIRA KAPUR & ANR v. MRS. PRIYA KAPUR & ORS

