रेप मामलों में पीड़िता का चरित्र हथियार नहीं बन सकता, सहमति का मतलब नहीं : दिल्ली हाईकोर्ट

Amir Ahmad

7 Nov 2025 2:51 PM IST

  • रेप मामलों में पीड़िता का चरित्र हथियार नहीं बन सकता, सहमति का मतलब नहीं : दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि बलात्कार के मामलों में पीड़िता का चरित्र, चाहे वह कितना भी दागदार क्यों न हो उसे सहमति का अर्थ देने के लिए उसके खिलाफ हथियार नहीं बनाया जा सकता।"

    जस्टिस अमित महाजन ने इस बात पर जोर दिया कि यहां तक कि एक इच्छुक साथी जो कुछ पैसे के बदले किसी क्लाइंट के साथ जाती है वह भी बलात्कार की शिकार हो सकती है।

    कोर्ट ने यह टिप्पणी एक बलात्कार के आरोपी की याचिका पर सुनवाई करते हुए की, जिसने अपने खिलाफ दर्ज FIR रद्द करने की मांग की। आरोपी, एक विवाहित व्यक्ति है, जिस पर शादी का झूठा वादा करके बलात्कार और अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने का आरोप लगा था।

    शिकायत और आरोपी की दलील

    शिकायतकर्ता महिला ने आरोप लगाया कि आरोपी ने उसकी ड्रिंक में कुछ मिलाकर उसे यौन उत्पीड़न का शिकार बनाया और बाद में शादी के झूठे वादे पर शारीरिक संबंध जारी रखे। महिला ने यह भी आरोप लगाया कि आरोपी ने उससे लगभग 8 लाख ले लिए और 10 लाख और मांगे, धमकी दी कि यदि वह राशि नहीं देती है तो वह उसकी तस्वीरें और वीडियो वायरल कर देगा।

    आरोपी ने महिला के चरित्र पर सवाल उठाते हुए दलील दी कि वह खुद पहले भी इसी तरह के आरोपों पर केस दर्ज करा चुकी है, जिसमें उसे बरी कर दिया गया और वह अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम, 1956 के तहत भी एक मामले में फंसी थी। आरोपी का दावा था कि महिला ने खुद कहा था कि वह उसकी संगत देने के लिए पैसे की मांग करती थी।

    मामला रद्द करते हुए कोर्ट का अवलोकन

    जज ने अंततः साक्ष्यों में कमी के कारण मामला रद्द कर दिया, लेकिन यह टिप्पणी की कि केवल इसलिए कि शिकायतकर्ता कुछ पैसे के लिए आरोपी के साथ जाने को तैयार थी, इसका मतलब यह नहीं है कि वह उसके साथ यौन संबंध बनाने के लिए भी सहमत थी।

    कोर्ट ने कहा कि वह महिला की पिछली शिकायतों या अन्य आरोपों के संबंध में कोई टिप्पणी करने से परहेज करता है लेकिन न्यायालय आरोपों की अविश्वसनीयता और शिकायतकर्ता के बयानों में स्पष्ट विसंगतियों से आँखें नहीं मूंद सकता।

    न्यायालय ने पाया कि यह मामला विसंगतियों से भरा था और इसमें सहयोगी साक्ष्य का अभाव था।

    कोर्ट ने कहा,

    "यह न्यायालय इस तथ्य से अंधा नहीं हो सकता कि समय बीतने के साथ संबंधों में खटास आने के बाद बदला लेने के लिए कानून को हथियार बनाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, जिसका वास्तविक पीड़ितों पर भयावह प्रभाव पड़ता है। झूठे मामलों का व्यक्ति की प्रतिष्ठा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। न्यायालय का यह कर्तव्य है कि वह जांच के दौरान एकत्र की गई सामग्री के साथ-साथ परिस्थितियों को भी ध्यान में रखे।"

    कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि जिस मामले का आधार यह है कि पार्टियां मिलने के कुछ ही दिनों बाद संबंध में आईं और शादी के झूठे वादे पर यौन संबंध बनाए वह संदेहास्पद प्रतीत होता है, क्योंकि इसका समर्थन करने के लिए कोई पुख्ता सामग्री नहीं है। सभी कारक इस ओर इशारा करते हैं कि आरोप याचिकाकर्ता को फँसाने के मकसद से लगाए गए थे।

    इन अवलोकनों के आधार पर न्यायालय ने आरोपी की याचिका स्वीकार कर ली और FIR रद्द कर दी।

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