करिश्मा कपूर के बच्चों ने वसीयत में अपने सर्वमानों के 'लिंग' पर उठाए सवाल, बुधवार को भी जारी रहेगी सुनवाई
Shahadat
14 Oct 2025 7:40 PM IST

एक्ट्रेस करिश्मा कपूर के बच्चों ने मंगलवार (14 अक्टूबर) को दिल्ली हाईकोर्ट को बताया कि उनके दिवंगत पिता उद्योगपति संजय कपूर की कथित वसीयत में कुछ महत्वपूर्ण स्थानों पर 'वसीयतकर्ता' शब्द के स्त्रीलिंग रूप का प्रयोग किया गया। सात ही मृतक की "बुद्धि" को देखते हुए यह संभव नहीं है कि वसीयत पर उनके पिता के हस्ताक्षर हों।
जस्टिस ज्योति सिंह वादी समायरा कपूर और उनके भाई के उस मुकदमे की सुनवाई कर रही हैं, जिसमें उन्होंने अपने दिवंगत पिता की निजी संपत्ति में हिस्सेदारी की मांग की। एक्ट्रेस के बच्चों ने संजय कपूर की पत्नी प्रिया कपूर, उनके बेटे साथ ही मृतक की माँ रानी कपूर और श्रद्धा सूरी मारवाह के खिलाफ मुकदमा दायर किया- जो 21 मार्च, 2025 की वसीयत की कथित निष्पादक हैं।
वादी की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट महेश जेठमलानी ने वसीयत के पाठ की ओर इशारा किया, जिसमें लिखा,
"'उपर्युक्त वसीयतकर्ता संजय कपूर द्वारा हस्ताक्षरित और घोषित, उनकी अंतिम वसीयत के लिए'"।
फिर उन्होंने तर्क दिया:
"वसीयतकर्ता का स्त्रीलिंग रूप इस्तेमाल किया गया...वसीयतकर्ता अब एक स्त्री है! यह बेतुकापन है...यह लोगों की उस दुस्साहस को दर्शाता है, जो अदालत में इस तरह की बात पेश करते हैं... इस खंड का कोई स्पष्टीकरण नहीं है, हो भी नहीं सकता। अगर संजय मानसिक रूप से विक्षिप्त न होते और अंग्रेज़ी पढ़ने में असमर्थ होते तो वह इस पर हस्ताक्षर कभी नहीं कर सकते... संक्षेप में संजय कपूर ने एक महिला के रूप में इस वसीयत पर हस्ताक्षर किए हैं। यह स्त्रीलिंग सर्वनाम से परिपूर्ण है...इसमें 'उसकी अंतिम वसीयत', 'उसकी उपस्थिति' लिखा है...
उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि इन शब्दों का इस्तेमाल एक ही जगह किया गया हो।
उन्होंने आगे कहा,
"वसीयत के सबसे महत्वपूर्ण भाग, यानी घोषणापत्र में स्वयं का वर्णन करने के लिए स्त्रीलिंग सर्वनाम का प्रयोग पांच बार किया गया। वसीयतकर्ता शब्द एक गलती हो सकती है, क्योंकि यह क़ानून का एक शब्द है। हालांकि, जब आपको चार अलग-अलग जगहों पर 'वह' और 'उसका' मिलता है तो यह अविश्वसनीय है कि संजय कपूर अपनी सारी बुद्धिमत्ता, अपनी सारी शिक्षा और दस्तावेज़ तैयार करने में इतनी सावधानी के बावजूद...और जो कोई भी उन्हें इस तरह की वसीयत का श्रेय देता है, वह उनके साथ सबसे बड़ा अन्याय कर रहा है।"
उन्होंने यह भी दलील दी कि प्रतिवादियों की दलीलों में इस बात का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं है कि वसीयत किसने तैयार की है।
जेठमलानी ने कहा कि इस बात का कोई भौतिक प्रमाण नहीं है कि मृतक ने वसीयत तैयार की है। हालांकि, वसीयत की प्रामाणिकता के आधार के रूप में डिजिटल फ़ुटप्रिंट दिखाने की कोशिश की गई, जबकि आवश्यक प्रमाणपत्र उपलब्ध नहीं कराए गए।
उन्होंने इस संबंध में कहा,
"हमारे पास जो है, वह यह है कि संजय कपूर एक बहुत ही सावधान व्यक्ति हैं, उनके पास केवल एक कथित डिजिटल फ़ुटप्रिंट है। वह भी पूरे विवरण में, वह एक डिजिटल घोस्ट हैं। वह शारीरिक रूप से प्रकट नहीं होते हैं। कोई हस्तलिपि नहीं है, कोई तस्वीर का सबूत नहीं। केवल कुछ मौखिक साक्ष्य हैं, जो संदिग्ध हैं। गवाहों ने अभी तक विस्तृत हलफनामा दायर नहीं किया। किसी को नहीं पता कि वसीयत का समय और सही जगह क्या है।"
वसीयत की तैयारी के बारे में जेठमलानी ने कहा कि प्रतिवादी 1 (डी1) प्रिया कपूर और वसीयत के दो गवाहों ने इस बारे में एक शब्द भी नहीं कहा कि वसीयत किसने तैयार की।
जेठमलानी ने कहा कि वसीयत के प्रचलन को लेकर कई संदिग्ध परिस्थितियां हैं।
उन्होंने कहा,
"वसीयत के हर चरण में विरोधाभास और खामियां हैं। अगर संजय सचमुच वसीयत के तहत अपनी सारी निजी संपत्ति पूरी तरह अपनी पत्नी को देना चाहते थे। ऐसा आदमी क्या करता? वह पहले वसीयत का रजिस्ट्रेशन करवाता। मगर यहां तो रजिस्ट्रेशन ही नहीं होता। उसने ऐसा क्यों नहीं करवाया? रजिस्ट्रेशन से विवाद की गुंजाइश बहुत कम हो जाती। उसने ऐसा क्यों नहीं किया?"
लाभार्थियों के दृष्टिकोण से उन्होंने कहा,
"डी1 को अच्छी-खासी रकम मिल रही है। क्या वसीयत का रजिस्ट्रेशन करवाना उसके हित में नहीं होगा? वसीयत का रजिस्ट्रेशन न करवाने में इतनी आनाकानी क्यों?... अगर आप यह जाने बिना कि दूसरे पक्ष के पास क्या है, वसीयत में जालसाजी करते हैं तो आप एक बेहद खतरनाक काम शुरू कर रहे हैं। उन्होंने जो तारीखें चुनी हैं, उनमें से कुछ बेतुकी हैं और पिता, बच्चों और माँ के बीच हुए पत्राचार से उनकी असलियत का पता लगाया जा सकता है। यह एक ऐसा मामला है, जिसमें वसीयत में जालसाजी क्यों नहीं की जाती, जब आपको सभी परिस्थितियों की जानकारी ही नहीं होती। यह एक गंभीर अपराध है। अगर जालसाजी साबित हो जाती है, तो वह (D1) अपनी सारी संपत्ति गंवा देगी।
सोमवार को वादी ने तर्क दिया था कि उनके दिवंगत पिता की कथित वसीयत जाली है, क्योंकि उसमें उनके बेटे का नाम गलत लिखा गया और उनकी बेटी का पता कई जगहों पर गलत दिया गया। वसीयत में गलतियों की ओर इशारा करते हुए यह कहा गया कि ये गलतियां उनके पिता के स्वभाव के विपरीत हैं। यह भी कहा गया कि वसीयत इतनी अनौपचारिक है कि यह उन्हें नीचा दिखाती है।
मामले की सुनवाई कल यानी बुधवार को भी जारी रहेगी।
Case Title: MS. SAMAIRA KAPUR & ANR v. MRS. PRIYA KAPUR & ORS

