सहमति से रिश्ता, भले एक विवाहित हो, मान्य: दिल्ली हाईकोर्ट

Praveen Mishra

13 Sept 2025 10:56 AM IST

  • सहमति से रिश्ता, भले एक विवाहित हो, मान्य: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि दो वयस्कों के बीच का संबंध यदि उनमें से एक विवाहित हो—को अदालतें पुराने नजरिए से नहीं देख सकतीं। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि न्यायाधीश अपनी व्यक्तिगत नैतिकता ऐसे व्यक्तियों पर थोप नहीं सकते।

    जस्टिस स्वरना कांत शर्मा ने कहा,“यदि दो वयस्क, भले ही उनमें से एक विवाहित हो, साथ रहने या शारीरिक संबंध बनाने का निर्णय लेते हैं, तो उन्हें अपने निर्णय के परिणामों की जिम्मेदारी भी उठानी होगी। न्यायाधीश अपनी व्यक्तिगत नैतिकता उन पर नहीं थोप सकते। साथ ही, अदालतें यह भी अनदेखा नहीं कर सकतीं कि आज शिक्षित वयस्क रिश्तों को ऐसे नजरिए से देखते हैं, जो पहले स्वीकार्य नहीं था।”

    कोर्ट ने कहा कि न्याय व्यवस्था को ऐसे मामलों को उसी दृष्टिकोण से देखना चाहिए—निर्णय सुनाते समय उपदेशात्मक या नकारात्मक न होकर, बल्कि इस जिम्मेदारी को स्वीकारते हुए कि वयस्क अपने फैसलों के लिए खुद उत्तरदायी हैं।

    कोर्ट ने माना कि जब कोई शिक्षित महिला यह जानते हुए भी किसी विवाहित पुरुष के साथ संबंध बनाए रखती है, तो वह उस निर्णय की जिम्मेदारी भी खुद लेती है। उसने यह भी कहा कि ऐसी महिला को यह समझना होगा कि वह रिश्ता शादी तक नहीं पहुंचेगा या आगे चलकर बिगड़ सकता है। कानून को हमेशा इस तरह के असफल लेकिन आपसी सहमति से बने रिश्तों को सुधारने का साधन नहीं बनाया जा सकता।

    “जब कोई महिला स्वेच्छा से ऐसा रिश्ता बनाती है, तो उसे इसके परिणाम भी स्वीकार करने होंगे।” – कोर्ट ने कहा।

    जस्टिस शर्मा ने यह भी कहा कि कानून स्थिर नहीं रह सकता, उसे समाज के बदलते मानकों के साथ आगे बढ़ना होगा।

    “कानून पीछे नहीं रह सकता और न ही पुराने दृष्टिकोण से उन परिस्थितियों को देख सकता है, जिनसे समाज आगे बढ़ चुका है। व्यावसायिक या संविदात्मक विवादों में जहां स्थापित कानूनी सिद्धांत ही लागू होते हैं, वहीं मानव संबंधों से जुड़े मामलों को कुछ अलग दृष्टिकोण से देखना पड़ता है। इन्हें इस बात को ध्यान में रखकर देखना होगा कि मानव संबंध खुद कैसे बदल रहे हैं। न्यायाधीश भी इसी बदलते समाज का हिस्सा हैं और न्याय प्रणाली इससे अलग नहीं रह सकती।”

    ये टिप्पणियां जस्टिस शर्मा ने एक याचिका स्वीकार करते हुए कीं, जिसमें 2020 में दर्ज एक रेप केस को रद्द करने की मांग की गई थी। आरोपी, जो पेशे से पायलट है, पर एयरलाइन में कार्यरत महिला (कैबिन क्रू) ने आरोप लगाया था कि वह फ्लाइट में उससे मिला और बाद में कंपनी डायरेक्ट्री से नंबर लेकर संपर्क किया।

    महिला का आरोप था कि एक होटल में मुलाकात के दौरान आरोपी ने उसे नशीला पदार्थ खिलाकर दुष्कर्म किया। बाद में उसने शादी का झांसा देकर और उसकी निजी तस्वीरें/वीडियो का दुरुपयोग कर संबंध बनाए रखे। उसने यह भी दावा किया कि उसे कई बार गर्भपात के लिए मजबूर किया गया।

    FIR रद्द करते हुए कोर्ट ने कहा कि पहली बार शारीरिक संबंध बनने के तुरंत बाद महिला को पता चल गया था कि आरोपी विवाहित है और उससे शादी नहीं कर सकता। इसके बावजूद उसने आरोपी के साथ दो साल से अधिक समय तक संबंध जारी रखे और दोनों के बीच नियमित शारीरिक व अंतरंग संबंध बने रहे।

    “इस जानकारी के बावजूद उसने अगस्त 2020 तक स्वेच्छा से संबंध बनाए रखे, जब रिश्ता टूट गया और सितंबर 2020 में यह एफआईआर दर्ज कराई गई।” – कोर्ट ने कहा।

    कोर्ट ने कहा कि दोनों के बीच हुई बातचीत आपसी नजदीकी दिखाती है और यह साबित करती है कि रिश्ता शुरू से ही आपसी सहमति पर आधारित था।

    “जब शिक्षित वयस्क इस तरह के निर्णय लेते हैं, तो उनकी जिम्मेदारी भी वे खुद उठाते हैं। रिश्ता बिगड़ने के बाद इसे यौन उत्पीड़न का अपराध बताकर पेश करना उचित नहीं है।” – कोर्ट ने कहा।

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