डाउनग्रेडेड मूल्यांकन को हटाने के बावजूद अधिकारी की पदोन्नति पर पुनर्विचार करने से इनकार करना अवैध: दिल्ली हाईकोर्ट
Shahadat
17 Aug 2024 8:13 PM IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने पाया कि केंद्र सरकार द्वारा भारतीय सेना के अधिकारी की पदोन्नति पर पुनर्विचार करने से इनकार करना, यह पता लगाने के बावजूद कि अधिकारी की गोपनीय रिपोर्ट (सीआर) को आरंभिक अधिकारी (आईओ) द्वारा गलत तरीके से डाउनग्रेड किया गया, मनमाना और अवैध है।
न्यायालय ने आगे कहा कि केंद्र सरकार की राहत के बावजूद, नई रिक्ति उपलब्ध होने तक अधिकारी को पदोन्नति से इनकार करने का सशस्त्र बल न्यायाधिकरण का आदेश अस्थिर था।
मामले की पृष्ठभूमि:
जस्टिस रेखा पल्ली और जस्टिस शालिंदर कौर की खंडपीठ याचिकाकर्ता द्वारा सशस्त्र बल न्यायाधिकरण के दिनांक 19.04.2024 के आदेश को चुनौती देने पर विचार कर रही थी, जिसने भारतीय सेना के कोर ऑफ इंजीनियर्स में लेफ्टिनेंट जनरल के रूप में पदोन्नति के लिए याचिकाकर्ता की याचिका अस्वीकार की थी।
याचिकाकर्ता ने भारतीय सेना के कोर ऑफ इंजीनियर्स में मेजर जनरल के रूप में कार्य किया। आरंभिक अधिकारी (आईओ) द्वारा उनकी गोपनीय रिपोर्ट (सीआर) में उन्हें 'उत्कृष्ट' के रूप में वर्गीकृत किया गया। लेकिन बाद में उसी आईओ द्वारा उनकी सीआर में उन्हें डाउनग्रेड किया गया।
सेना मुख्यालय ने रिक्तियों को भरने के लिए विशेष चयन बोर्ड (SSB) की अनुसूची के संबंध में 23.09.2022 को अधिसूचना जारी की। इस बीच याचिकाकर्ता ने 27.02.2023 को प्रतिवादियों के समक्ष अपनी सीआर को डाउनग्रेड करने और SSB में शामिल किए जाने के मामले का निपटारा करने के लिए वैधानिक शिकायत दायर की।
चूंकि उनकी शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं की गई, इसलिए याचिकाकर्ता ने सशस्त्र बल न्यायाधिकरण के समक्ष आवेदन दायर किया। 31.05.2023 को न्यायाधिकरण ने आदेश दिया कि याचिकाकर्ता की पदोन्नति उसके निर्णय के परिणाम के अधीन होगी।
इस अंतरिम आदेश के बाद प्रतिवादियों ने 19.02.2023 को SSB के परिणाम घोषित किए और रिक्तियों के लिए दो अधिकारियों की सिफारिश की, एक याचिकाकर्ता से जूनियर और एक सीनियर। रिक्तियों को भरे जाने के बाद केंद्र सरकार (प्रतिवादी नंबर 1) ने याचिकाकर्ता की पदावनति में कमी करने के आईओ का फैसला खारिज कर दिया। इसके बावजूद, प्रतिवादी पदोन्नति के लिए याचिकाकर्ता पर फिर से विचार करने में विफल रहे।
न्यायाधिकरण ने 19.04.2024 को जब मामले की सुनवाई की तो प्रतिवादियों ने कहा कि वे याचिकाकर्ता की पदोन्नति पर विचार नहीं कर सकते, क्योंकि कोई विशिष्ट रिक्ति उपलब्ध नहीं थी। उन्होंने तर्क दिया कि उनकी नीति में किसी व्यक्तिगत अधिकारी के लिए SSB आयोजित करने की परिकल्पना नहीं की गई। इस प्रकार याचिकाकर्ता को केवल अगली रिक्ति के लिए ही विचार किया जा सकता है, जो 2025 में होगी।
न्यायाधिकरण ने प्रतिवादी की दलीलों को स्वीकार कर लिया। इसने माना कि चूंकि प्रतिवादी की नीति के मद्देनजर कोई रिक्ति उपलब्ध नहीं थी, इसलिए याचिकाकर्ता को उसके सीआर प्रोफाइल में बदलाव के बावजूद कोई राहत नहीं दी जा सकती।
केस टाइटल: मेजर जनरल विनायक सैनी एसएम वीएसएम बनाम यूनियन ऑफ इंडिया थ्रू एंड ऑर्स। (डब्ल्यू.पी.(सी) 7181/2024)