कानून से टकराव वाले नाबालिग की प्राइवेसी, बरी करने के आदेश की कॉपी मांगने वाले पीड़ित के अनुरोध से ज़्यादा ज़रूरी: दिल्ली हाईकोर्ट
Shahadat
25 Dec 2025 5:18 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि पीड़ित को जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड द्वारा आरोपी को बरी करने के आदेश की सर्टिफाइड कॉपी मांगने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि ऐसे आदेशों के खिलाफ कोई अपील नहीं की जा सकती।
जुवेनाइल जस्टिस (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम (JJ Act), जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (JJB) द्वारा पारित बरी करने के आदेश के खिलाफ अपील पर स्पष्ट रूप से रोक लगाता है।
जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा,
"जहां कानून में अपील का कोई अधिकार नहीं है, वहां चुनौती देने के उद्देश्य से आदेश की सर्टिफाइड कॉपी मांगने का कोई संबंधित लागू करने योग्य अधिकार दावा नहीं किया जा सकता है, खासकर जब इस तरह का खुलासा JJ एक्ट, 2000 की धारा 21 के तहत गोपनीयता के आदेश का उल्लंघन कर सकता है।"
धारा 21 किसी भी जांच रिपोर्ट के प्रकाशन या खुलासे पर रोक लगाती है, जो कानून से टकराव वाले नाबालिग का नाम, पता, या कोई अन्य विवरण बता सकती है।
इस प्रकार कोर्ट ने एक नाबालिग यौन उत्पीड़न पीड़िता के पिता द्वारा की गई प्रार्थना अस्वीकार की, जिसमें आरोपी, जो कानून से टकराव वाला एक नाबालिग था, उसको बरी करने के JJB के आदेश की कॉपी मांगी गई।
हाईकोर्ट ने कहा कि यह प्रावधान नाबालिग की प्राइवेसी, गरिमा और भविष्य की संभावनाओं की रक्षा के लिए है। इसे सख्ती से लागू किया जाना चाहिए। इसके अलावा, पीड़ित या उसके पिता के पास बरी करने के आदेश को चुनौती देने का अधिकार नहीं था।
कोर्ट ने यौन हिंसा से सुरक्षा के उद्देश्य से कानूनों में सामंजस्य स्थापित करने और अधिकारों का एक अलग बिल बनाने की पिता की प्रार्थना को भी अस्वीकार कर दिया।
कोर्ट ने कहा,
"ये प्रार्थनाएं स्पष्ट रूप से व्यापक सार्वजनिक हित और नीति निर्माण की प्रकृति की हैं, जो विधायी और कार्यकारी क्षेत्र में आती हैं। मांगी गई राहतें वर्तमान मामले के तथ्यों या किसी मौजूदा वैधानिक कर्तव्य के प्रवर्तन तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इसके बजाय सामाजिक सुधार और विधायी कार्रवाई के लिए व्यापक निर्देश मांगती हैं। ऐसी प्रार्थनाओं पर इस रिट याचिका में विचार नहीं किया जा सकता या उन्हें स्वीकार नहीं किया जा सकता, जिसे जनहित याचिका के रूप में तैयार नहीं किया गया या जो स्वीकार्य नहीं है।"
पिता ने यौन उत्पीड़न पीड़ितों को मुआवजा देने और वितरित करने के लिए एक प्रभावी तंत्र बनाने की भी मांग की थी। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि एक विस्तृत वैधानिक ढांचा पहले से ही मौजूद है।
कोर्ट ने कहा,
"दिल्ली विक्टिम्स कंपनसेशन स्कीम, 2018, जिसे यौन उत्पीड़न/अन्य अपराधों की महिला पीड़ितों/सरवाइवर्स के लिए कंपनसेशन स्कीम, 2018 के साथ पढ़ा जाए, अंतरिम और फाइनल मुआवज़े के लिए प्रक्रिया, पात्रता, समय-सीमा और राशि तय करती है।"
Case title: Social Action Forum For Manav Adhikar & Anr. v. State Of Nct Of Delhi & Anr.

