मीडिया फर्मों से एडवरटाइजिंग एजेंसी को मिलने वाले परफॉर्मेंस इंसेंटिव पर टैक्स नहीं लगेगा: दिल्ली हाईकोर्ट

Shahadat

23 Dec 2025 9:06 AM IST

  • मीडिया फर्मों से एडवरटाइजिंग एजेंसी को मिलने वाले परफॉर्मेंस इंसेंटिव पर टैक्स नहीं लगेगा: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने यह साफ किया कि बेंचमार्क टारगेट हासिल करने के लिए मीडिया फर्मों से एडवरटाइजिंग एजेंसी को मिलने वाले इंसेंटिव पर सर्विस टैक्स नहीं लगेगा।

    जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह और जस्टिस शैल जैन की डिवीजन बेंच ने कहा,

    “एक एडवरटाइजिंग एजेंसी मुख्य रूप से अपने क्लाइंट्स की ओर से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर स्लॉट बुक करती है और प्रिंट मीडिया में जगह बुक करती है। एडवरटाइजिंग प्लान पर मीडिया हाउस के साथ एडवरटाइजिंग एजेंसी की मदद से बातचीत की जाती है। आखिर में क्लाइंट्स द्वारा अप्रूव किया जाता है। एडवरटाइजिंग एजेंसी सिर्फ अपने क्लाइंट्स द्वारा अप्रूव किए गए एडवरटाइजिंग प्लान के अनुसार सर्विस देती है और मीडिया हाउस को कोई अतिरिक्त सर्विस नहीं देती है।”

    इसमें आगे कहा गया,

    “टारगेट या रेवेन्यू बेंचमार्क हासिल करना पहले से दी जा रही सर्विस का हिस्सा है। चूंकि मीडिया हाउस को कोई अतिरिक्त सर्विस नहीं दी जा रही है, इसलिए यह नहीं माना जा सकता कि मीडिया हाउस द्वारा दिए गए इंसेंटिव पर सर्विस टैक्स लगेगा क्योंकि यह 'बिजनेस सहायक सर्विस' है।”

    बता दें, प्रतिवादी कंपनी एडवरटाइजिंग एजेंसी सेवाएं देने का काम करती है। GST इंटेलिजेंस के डायरेक्टर जनरल ने जांच के बाद कुछ ऐसे एग्रीमेंट देखे, जो प्रतिवादी ने मीडिया हाउस के साथ एक खास टारगेट हासिल करने पर परफॉर्मेंस इंसेंटिव पाने के लिए किए।

    फाइनेंस एक्ट, 1994 की धारा 66D (g) के अनुसार, 'प्रिंट मीडिया में विज्ञापनों के लिए स्पेस स्लॉट बेचने' की गतिविधि गैर-टैक्सेबल है।

    हालांकि, DGGI ने तर्क दिया कि प्रतिवादी को मिला इंसेंटिव मीडिया मालिकों के बिजनेस प्रमोशन करने के बराबर है और यह एक्ट की धारा 66E(e) के तहत टैक्सेबल 'बिजनेस सहायक सर्विस' है।

    हालांकि, प्रतिवादी को एक कारण बताओ नोटिस जारी किया गया, लेकिन GST कमिश्नरेट ने इस आधार पर कार्यवाही बंद की कि प्रतिवादी द्वारा उक्त इंसेंटिव के संबंध में मीडिया हाउस को कोई सर्विस नहीं दी जा रही है।

    विभाग ने तर्क दिया कि एक बार विज्ञापन का एक खास रेवेन्यू टारगेट हासिल हो जाने के बाद ही इंसेंटिव दिए जाते हैं, इसलिए यह एक अतिरिक्त सर्विस होगी।

    असहमत होते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि धारा 66 E(e) के तहत सहायक सर्विस बनने के लिए तीन घटकों को स्थापित किया जाना चाहिए:

    i. किसी काम से परहेज करने पर सहमत होना।

    ii. किसी काम या स्थिति को बर्दाश्त करने पर सहमत होना।

    iii. कोई काम करने पर सहमत होना।

    हालांकि, इस मामले में कोर्ट ने पाया कि एडवरटाइजिंग एजेंसी न तो कोई खास काम कर रही है और न ही किसी खास काम से बच रही है। मुख्य रूप से एडवरटाइजिंग एजेंसी अपने क्लाइंट्स की ओर से मीडिया हाउस के साथ स्लॉट और जगह बुक करने के लिए सर्विस दे रही है।

    कोर्ट ने कहा,

    “इन तीनों कॉम्पोनेंट के लिए एक कॉन्ट्रैक्ट की ज़रूरत होती है। इस मामले में हालांकि कॉन्ट्रैक्ट रेस्पोंडेंट ने मीडिया हाउस के साथ किया, लेकिन यह क्लाइंट के लिए और उसकी ओर से है। रेस्पोंडेंट अपने क्लाइंट को सर्विस दे रहा है, न कि मीडिया हाउस को।”

    इस तरह डिपार्टमेंट की अपील खारिज कर दी गई।

    Case title: Principal Commissioner Of Cgst And Central Excise Delhi Iv Cgst Delhi South Commissionerate v. M/S Nexus Alliance Advertising And Marketing Pvt Ltd

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