गृहिणी के प्रयासों से पति की संपत्ति बनती है, पर स्वामित्व अधिकार देने का कानून नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

Praveen Mishra

12 Sept 2025 3:52 PM IST

  • गृहिणी के प्रयासों से पति की संपत्ति बनती है, पर स्वामित्व अधिकार देने का कानून नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि इस समय गृहिणियों द्वारा घर, परिवार और बच्चों की देखभाल में किए गए योगदान को मान्यता देने के लिए कोई वैधानिक आधार मौजूद नहीं है। ऐसे योगदान अक्सर “छिपे हुए और कम आंके गए” रहते हैं, इसलिए इन आधारों पर न तो स्वामित्व अधिकार तय किए जा सकते हैं और न ही इनके मूल्य का आकलन किया जा सकता है।

    जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने कहा,

    “शायद भविष्य में विधायिका ऐसे कदम उठाए जिससे गृहिणियों के योगदान को अर्थपूर्ण ढंग से दर्शाया जा सके और उनके अधिकारों के निर्धारण में इसे आधार बनाया जा सके।”

    कोर्ट ने कहा कि भारत के बहुत से घरों में, खासकर जहां घरेलू मदद नहीं है, पूर्णकालिक गृहिणी की मौजूदगी परिवार को कई खर्चों से बचाती है। इससे घर की नियमित बचत बढ़ती है और परिवार अतिरिक्त आय का उपयोग संपत्ति खरीदने जैसी चीजों में कर पाता है।

    यह टिप्पणी एक मामले की सुनवाई में आई, जिसमें पत्नी ने पारिवारिक अदालत के आदेश को चुनौती दी थी। पत्नी ने दावा किया था कि पति के नाम पर खरीदी गई संपत्ति में उसका 50% हिस्सा होना चाहिए क्योंकि उसने गृहिणी के रूप में योगदान दिया। उसका कहना था कि पति को नौकरी करने और परिवार की संपत्ति बनाने में उसका योगदान है, इसलिए विवाह के दौरान खरीदी गई संपत्ति को संयुक्त प्रयास का परिणाम माना जाना चाहिए।

    कोर्ट ने कहा कि विवाह केवल सामाजिक व्यवस्था नहीं है बल्कि एक कानूनी साझेदारी है, जिसमें दोनों पक्षों के आर्थिक, भावनात्मक और घरेलू योगदान परिवार की स्थिरता और कल्याण के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।

    हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि केवल वैवाहिक घर में पत्नी का रहना अपने आप में उसे पति की संपत्ति पर मालिकाना हक नहीं देता। ऐसे दावे के लिए ठोस और वास्तविक योगदान का सबूत होना जरूरी है।

    कोर्ट ने नोट किया कि पत्नी ने स्वीकार किया कि उसने संपत्ति खरीदने में कोई आर्थिक योगदान नहीं दिया और न ही उसने घरेलू प्रयासों या बचत के जरिए योगदान साबित किया। याचिका में केवल “खाली दावे” थे जिनका कोई सबूत नहीं दिया गया।

    अदालत ने कहा कि जब तक विधायिका गृहिणी के योगदान को स्वामित्व अधिकार तय करने का आधार नहीं बनाती, तब तक केवल गृहिणी होने के आधार पर संपत्ति में हक का दावा नहीं किया जा सकता।

    इसलिए हाईकोर्ट ने पारिवारिक अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए अपील खारिज कर दी।

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