Order 7 Rule 11 CPC | वादपत्र के साथ दायर दस्तावेजों पर विचार करके यह निर्धारित किया जा सकता है कि क्या यह 'कार्रवाई का कारण' प्रकट करता है: दिल्ली हाईकोर्ट
Shahadat
9 May 2025 7:11 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि मुकदमा शुरू करने के लिए दायर वादपत्र को अलग से नहीं पढ़ा जा सकता। इसके साथ संलग्न दस्तावेजों पर विचार करके यह निर्धारित किया जा सकता है कि क्या वादपत्र मामले में कार्यवाही के लिए 'कार्रवाई का कारण' प्रकट करता है।
Order 7 Rule 11 CPC न्यायालय को वादपत्र को कार्रवाई के कारण की कमी आदि सहित विशिष्ट आधारों पर खारिज करने का अधिकार देता है।
हालांकि जस्टिस रविंदर डुडेजा ने कहा,
"यह सच हो सकता है कि आदेश 7 नियम 11 भले ही न्यायालय को वादी की ओर से कार्रवाई का कारण प्रकट करने में विफलता पर वादपत्र को खारिज करने का अधिकार देता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं होगा कि इसमें किए गए कथन या जिस दस्तावेज पर भरोसा किया गया, वह कार्रवाई का कारण प्रकट करता है, फिर भी वादपत्र को इस आधार पर खारिज कर दिया जाएगा कि ऐसे कथन मुकदमे में दावा की गई राहत प्राप्त करने के उद्देश्य से उसमें बताए गए तथ्यों को साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।"
न्यायालय, जिला न्यायालय के उस आदेश के विरुद्ध दायर याचिका पर विचार कर रहा था, जिसमें याचिकाकर्ता (प्रतिवादी) द्वारा दायर Order 7 Rule 11 CPC आवेदन को खारिज कर दिया गया, जिसमें आरोप लगाया गया कि वैध कारण का खुलासा न करने के आधार पर वाद खारिज कर दिया गया। प्रतिवादी (वादी) ने धन की वसूली के लिए वाद दायर किया था, जिसमें दावा किया गया कि उसने याचिकाकर्ता को रसद सेवाएं प्रदान की थीं, लेकिन याचिकाकर्ता ने इसके लिए भुगतान नहीं किया।
वाद खारिज करने के अपने आवेदन में याचिकाकर्ता ने दावा किया कि प्रतिवादी के वाद में लेन-देन के भौतिक विवरण का अभाव है। इसलिए इसमें वैध कारण का खुलासा नहीं किया गया। हाईकोर्ट के समक्ष प्रतिवादी ने प्रस्तुत किया कि उसने अपने वाद में तथ्यों का संक्षेप में सारांश दिया और वाद के साथ सभी दस्तावेज जैसे खाता बही, उप-एजेंसी संग्रह रिपोर्ट, बिल आदि दाखिल किए और ऐसे दस्तावेजों में पूरा विवरण शामिल है।
हालांकि याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि यह तय करने के लिए कि क्या कोई वादपत्र कार्रवाई के कारण का खुलासा करता है या नहीं, केवल वादपत्र में दिए गए कथनों पर ही विचार किया जाना चाहिए और उक्त उद्देश्य के लिए किसी अन्य साक्ष्य, दस्तावेज या लिखित बयान पर विचार नहीं किया जाना चाहिए।
इस प्रकार, हाईकोर्ट के समक्ष प्रश्न यह था कि क्या वादपत्र के साथ दायर दस्तावेजों पर यह निर्धारित करने के लिए विचार किया जा सकता है कि वादपत्र कार्रवाई के कारण का खुलासा करता है या नहीं।
हाईकोर्ट ने लिवरपूल और लंदन एस.पी. और आई एसोसिएशन लिमिटेड बनाम एम.वी. सी सक्सेस और अन्य (2004) पर भरोसा किया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने माना कि यदि वादपत्र में दिए गए कथन या जिन दस्तावेजों पर भरोसा किया गया, वे कार्रवाई के कारण का खुलासा करते हैं तो वादपत्र को केवल इस आधार पर खारिज नहीं किया जाना चाहिए कि कथन उसमें बताए गए तथ्यों को साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
इसी तरह इंस्पिरेशन क्लॉथ्स और यू बनाम कोल्बी इंटरनेशनल लिमिटेड (2000) में हाईकोर्ट की समन्वय पीठ ने माना कि जहां वादपत्र दस्तावेजों पर आधारित है, वहां न्यायालय को उक्त दस्तावेजों पर विचार करने तथा यह पता लगाने का अधिकार है कि वादपत्र में कार्रवाई का कारण बताया गया या नहीं।
उपर्युक्त कथन के मद्देनजर, हाईकोर्ट ने कहा,
"वादपत्र को वादपत्र के साथ दिए गए दस्तावेजों से अलग करके नहीं देखा जाना चाहिए। चूंकि प्रतिवादी ने सभी प्रासंगिक दस्तावेज रिकॉर्ड में रखे हैं, जो याचिकाकर्ता द्वारा बुक किए गए तथा प्रतिवादी द्वारा विदेशी गंतव्यों पर भेजे गए माल, करों तथा चालान की तिथियों के संबंध में अपेक्षित विवरण प्रस्तुत करेंगे। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि वादपत्र में कार्रवाई का कारण नहीं बताया गया।"
इसमें आगे कहा गया,
"वाक्यांश "कार्रवाई का कारण नहीं बताता" का बहुत संकीर्ण अर्थ लगाया जाना चाहिए। वादपत्र को शुरुआत में ही खारिज करने से बहुत गंभीर परिणाम सामने आते हैं। इसलिए इस शक्ति का प्रयोग केवल असाधारण परिस्थितियों में ही किया जाना चाहिए तथा इसका प्रयोग केवल तभी किया जाना चाहिए, जब न्यायालय को पूरी तरह से यकीन हो कि वादी के पास कोई तर्कपूर्ण मामला नहीं है।"
इस प्रकार, न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी।
केस टाइटल: गुरमीत सिंह सचदेवा बनाम स्काईवेज एयर सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड