दिल्ली हाईकोर्ट ने कंपनी को कॉर्पोरेट संपत्ति की सुरक्षा पर हुए परिसमापक के खर्च की भरपाई करने का जिम्मेदार ठहराया

Praveen Mishra

31 Oct 2025 4:32 PM IST

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने कंपनी को कॉर्पोरेट संपत्ति की सुरक्षा पर हुए परिसमापक के खर्च की भरपाई करने का जिम्मेदार ठहराया

    दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने एक कंपनी की यह जिम्मेदारी बरकरार रखी है कि वह आधिकारिक परिसमापक (Official Liquidator) द्वारा कंपनी की संपत्तियों की सुरक्षा हेतु किए गए सुरक्षा व्यय की भरपाई (reimbursement) करे।

    मामले की पृष्ठभूमि:

    अपीलकर्ता कंपनी एम/एस कॉन्नोइस्सर बिल्डटेक प्रा. लि. (M/s Connoisseur Buildtech Pvt. Ltd.) के परिसमापन (winding-up) की प्रक्रिया वर्ष 2016 में चल रही थी। कंपनी की एक विवादित जमीन ग्रेटर नोएडा में थी, जिसकी सुरक्षा के लिए आधिकारिक परिसमापक ने एक पेशेवर सुरक्षा एजेंसी की सेवाएं लीं, जिस पर 18 लाख रुपये से अधिक का खर्च हुआ।

    वर्ष 2017 में हाईकोर्ट ने कंपनी का परिसमापन सशर्त रूप से वापस ले लिया, इस शर्त पर कि कंपनी परिसमापक द्वारा किए गए सभी खर्चों की भरपाई करेगी। लेकिन कंपनी द्वारा भुगतान न करने पर परिसमापक ने बकाया राशि की वसूली के लिए आवेदन दायर किया। एकल न्यायाधीश की पीठ ने कंपनी को इन खर्चों के लिए उत्तरदायी ठहराते हुए भुगतान का निर्देश दिया।

    पक्षकारों के तर्क:

    कंपनी का तर्क था कि संबंधित संपत्ति कंपनी की नहीं, बल्कि एम/एस कॉन्नोइस्सर इन्फ्राबिल्ड प्रा. लि. नामक दूसरी इकाई की है, और परिसमापक ने स्वामित्व की जांच किए बिना लापरवाही से कार्य किया।

    कंपनी ने यह भी कहा कि उसके पूर्व निदेशक अनिल शर्मा का जो बयान कंपनी (कोर्ट) नियम, 1959 के नियम 130 के तहत दर्ज किया गया, वह धमकी और गलत प्रस्तुतीकरण के तहत लिया गया था, इसलिए उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता।

    विपरीत पक्ष में, आधिकारिक परिसमापक ने “Estoppel” (प्रतिषेध) के सिद्धांत पर भरोसा करते हुए कहा कि कंपनी की चुप्पी और सहमति से परिसमापक ने सद्भावपूर्वक अपने वैधानिक कर्तव्यों के निर्वहन में भारी खर्च किया, और अब कंपनी इससे पीछे नहीं हट सकती।

    दिल्ली हाईकोर्ट के अवलोकन:

    हाईकोर्ट ने कहा कि कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 454 और कंपनी (कोर्ट) नियम, 1959 के नियम 130 के तहत निदेशकों का यह वैधानिक दायित्व है कि वे परिसमापक को पूरी और सटीक जानकारी दें। इसलिए परिसमापक द्वारा निदेशक के स्पष्ट बयानों पर भरोसा करना पूरी तरह उचित था, जो कंपनी की देयता की वैध स्वीकृति (acknowledgment) है।

    खंडपीठ ने यह भी नोट किया कि पूर्व निदेशक ने न केवल विस्तृत बयान दिए थे, बल्कि अपने हाथ से एक लिखित वचनपत्र (undertaking) भी दिया था, जिसमें उन्होंने व्यय वहन करने की बात स्वीकार की थी।

    इसके अलावा, अदालत ने यह भी कहा कि परिसमापन वापस लेने के आदेश में स्पष्ट रूप से यह दर्ज है कि संबंधित संपत्ति अपीलकर्ता कंपनी की संपत्ति है। यह आदेश कंपनी के वकील की उपस्थिति में पारित हुआ था, और उस पर कोई आपत्ति नहीं उठाई गई। साथ ही, कंपनी ने न तो उस आदेश के खिलाफ अपील की और न ही उस स्पष्टीकरण आदेश को चुनौती दी, जिसमें यह स्पष्ट कहा गया था कि सुरक्षा पर हुआ व्यय अपीलकर्ता कंपनी को ही वहन करना होगा।

    Next Story