मामले में बाद के वकील की अलग राय गवाह को वापस बुलाने का आधार नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट
Amir Ahmad
6 Oct 2025 3:19 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि मामले में आगे अभियोजन कैसे किया जाए इस बारे में बाद के वकील की अलग राय CrPC की धारा 311 के तहत गवाह को वापस बुलाने का आधार नहीं है।
जस्टिस अमित महाजन ने कहा,
"CrPC की धारा 311 के तहत शक्ति का प्रयोग इतनी देरी से केवल वकील बदलने के कारण नहीं किया जा सकता। मामले में अभियोजन कैसे किया जाए, इस बारे में बाद के वकील की अलग राय गवाह को वापस बुलाने का कानूनी आधार नहीं हो सकती।"
अदालत ने आगे कहा,
"अगर इस तरह की दलीलों को स्वीकार कर लिया जाता है तो मुकदमा एक अंतहीन प्रयास होगा, क्योंकि हर कुछ महीनों के बाद अलग रणनीति वाला नया वकील नियुक्त किया जाएगा, जो गवाहों से फिर से क्रॉस एक्जामिनेशन करना चाहेगा।"
संहिता की धारा 311 किसी भी अदालत को किसी भी व्यक्ति को गवाह के रूप में बुलाने, उपस्थित किसी भी व्यक्ति से पूछताछ करने, या किसी जांच मुकदमे या अन्य कार्यवाही के किसी भी चरण में पहले से ही पूछताछ किए जा चुके किसी भी व्यक्ति को वापस बुलाने और पुनः पूछताछ करने की शक्ति प्रदान करती है।
अदालत ने यह टिप्पणी एक पॉक्सो मामले में अभियुक्त द्वारा दायर याचिका खारिज करते हुए की, जिसमें अभियोजन पक्ष के गवाहों पीड़िता, उसकी मां और जूनियर फोरेंसिक केमिकल परीक्षक - को आगे की पूछताछ के लिए वापस बुलाने के उसके आवेदन को खारिज करने वाले ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई।
यह अनुरोध इस आधार पर किया गया कि पिछले वकील ने उक्त गवाहों से महत्वपूर्ण प्रश्न नहीं पूछे थे।
FIR 2018 में दर्ज की गई, जब पीड़िता लगभग 14 वर्ष की थी। आरोप लगाया गया कि आरोपी सौतेला पिता 2016 से उसका यौन उत्पीड़न कर रहा था। आरोप लगाया गया कि अभियुक्त ने पीड़िता पर यौन उत्पीड़न किया।
याचिकाकर्ता को इससे पहले 2016 में पीड़िता पर यौन उत्पीड़न करने के आरोप में जेल भेजा गया, जिसके बाद उसे जमानत पर रिहा कर दिया गया।
याचिकाकर्ता का तर्क था कि पीड़िता और उसकी मां की पूरी तरह से जांच नहीं की गई और जब वकील जिसकी बाद में नियुक्ति हुई, ने जेल में उससे बातचीत की तो कुछ नए तथ्य सामने आए।
यह तर्क दिया गया कि पीड़िता की उम्र, उसके कपड़ों या अंतर्वस्त्रों और घटनाओं के घटनाक्रम से संबंधित प्रश्न उक्त गवाहों से ठीक से नहीं पूछे गए।
इस दलील को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने सही कहा कि गवाहों को वापस बुलाने से पीड़िता को और अधिक आघात पहुंचेगा। DNA का निर्णायक मिलान हुआ था और गवाहों को दोबारा जांच के लिए वापस बुलाने के लिए कोई विशेष नए तथ्य नहीं दिए गए।
अदालत ने कहा,
"घटना के लगभग सात साल बाद इस स्तर पर गवाहों को वापस बुलाना बच्ची के साथ और अधिक अत्याचार होगा। ट्रायल कोर्ट ने यह भी सही कहा कि अभियुक्त की यह दलील कि पीड़िता से उसके कपड़ों, सटीक घटनाओं और उम्र के संबंध में कोई प्रश्न नहीं पूछे गए निराधार है।"

