इस बात पर चिंता जताते हुए कि लॉ स्टूडेंट इस तरह से लड़ रहे हैं, हाईकोर्ट ने साथियों पर हमला करने के आरोपी दिल्ली यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट को अग्रिम जमानत देने से इनकार किया
Amir Ahmad
23 July 2024 4:24 PM IST
अन्य स्टूडेंट के साथ झगड़े में शामिल लॉ स्टूडेंट को अग्रिम जमानत देने से इनकार करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने इस घटना पर अपनी निराशा व्यक्त की और टिप्पणी की,
"यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि शिकायतकर्ता और साथ ही याचिकाकर्ता पक्ष जो लॉ स्टूडेंट हैं, झगड़े में शामिल हैं। यह बहुत चिंता की बात है कि लॉ स्टूडेंट इस तरह से लड़ रहे हैं।"
याचिकाकर्ता ने अग्रिम जमानत की मांग करते हुए धारा 438 के साथ धारा 482 Cr.PC के तहत याचिका दायर की।
दिल्ली यूनिवर्सिटी में स्टुडेंट के दो समूहों के बीच झगड़ा हुआ। याचिकाकर्ता ने अपने समूह के साथ मिलकर शिकायतकर्ता और अन्य स्टुडेंट को पीटा और घायल कर दिया।
स्टूडेंट ने दलील दी कि उसने शिकायतकर्ता को केवल मुक्कों और हाथों से पीटा था और उसे लगी चोटें मामूली थीं। स्टूडेंट ने यह भी दलील दी कि उसके खिलाफ जांच एक सीनियर न्यायिक अधिकारी द्वारा प्रभावित थी, जिसे उसने शिकायतकर्ता का चाचा बताया।
जस्टिस दिनेश कुमार शर्मा ने घटना पर निराशा व्यक्त की और लॉ स्टूडेंट द्वारा इस तरह के झगड़ों में शामिल होने पर चिंता जताई।
न्यायालय ने कहा कि एफआईआर से संकेत मिलता है कि याचिकाकर्ता हॉकी, लाठी और लोहे की रॉड जैसे हथियार लेकर चलने वाले समूह का हिस्सा था, जिसने शिकायतकर्ता और अन्य लोगों पर हमला किया।
इसमें कहा गया कि याचिकाकर्ता ने यह कहकर मामले को तुच्छ बनाने की कोशिश की कि यूनिवर्सिटी में स्टुडेंट के समूहों के बीच झड़प होना आम बात है।
इस तरह की घटनाओं की गहन जांच और जांच की आवश्यकता पर ध्यान देते हुए न्यायालय ने कहा,
"यह न्यायालय ऐसी घटनाओं को बहुत गंभीरता से लेता है और यह देखकर स्तब्ध है कि आने वाले वर्षों में वकील या कानून अधिकारी के जिम्मेदार पद पर आसीन होने वाले लॉ स्टूडेंट इस तरह के झगड़ों में लिप्त हैं।"
न्यायालय ने सीनियर न्यायिक अधिकारी के खिलाफ आरोप लगाने में याचिकाकर्ता के आचरण पर भी निराशा व्यक्त की। न्यायालय ने कहा कि इस तरह के आरोप बिना किसी आधार के आपराधिक न्याय प्रशासन की पूरी प्रणाली को बदनाम करते हैं।
न्यायालय ने कहा कि ऐसी घटनाओं में अग्रिम जमानत देने से गलत संदेश जाएगा। न्यायालय ने कहा कि अग्रिम जमानत तभी दी जाती है, जब उत्पीड़न या झूठे मामले में गिरफ्तार किए जाने की उचित आशंका हो।
न्यायालय ने कहा कि वर्तमान मामले में ऐसी शर्तें पूरी नहीं होती हैं। इस प्रकार न्यायालय ने अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी।
केस टाइटल- प्रियम शर्मा बनाम दिल्ली राज्य एनसीटी