लक्ष्मी पुरी मानहानि मामला: दिल्ली हाईकोर्ट ने साकेत गोखले के माफ़ीनामे पर आपत्ति जताई, नए सिरे से दाखिल करने को कहा
Shahadat
8 July 2025 10:36 AM

दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (TMC) के सांसद साकेत गोखले द्वारा संयुक्त राष्ट्र में भारत की पूर्व सहायक महासचिव लक्ष्मी पुरी को बदनाम करने के लिए दायर माफ़ीनामे को रिकॉर्ड पर लेने से इनकार किया।
जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस रेणु भटनागर की खंडपीठ ने कहा कि हलफ़नामे की कुछ सामग्री रिकॉर्ड पर नहीं ली जा सकती।
जजों ने गोखले के वकील सीनियर एडवोकेट अमित सिब्बल से कहा,
"ऐसा नहीं किया जा सकता... आप पहले इस हलफ़नामे को वापस लें, फिर हम आपकी बात सुनेंगे।"
पुरी ने गोखले के ट्वीट पर आपत्ति जताई थी, जिसमें उनके और उनके पति केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी की संपत्ति के बारे में सवाल उठाए गए थे, जो उन्होंने स्विट्जरलैंड में खरीदी गई एक संपत्ति को लेकर किया था। उन्होंने तर्क दिया कि ट्वीट झूठे और मानहानिकारक थे।
जुलाई, 2021 में एकल जज ने अंतरिम आदेश के माध्यम से गोखले को ट्वीट हटाने का निर्देश दिया था। उन्हें पुरी के खिलाफ कोई और अपमानजनक सामग्री पोस्ट करने से भी रोक दिया गया।
पिछले साल जस्टिस अनूप जयराम भंभानी ने उनके पक्ष में मानहानि के मुकदमे का फैसला सुनाते हुए अंतरिम आदेश की पुष्टि की थी। एकल जज ने गोखले को टाइम्स ऑफ इंडिया और अपने ट्विटर हैंडल पर निर्धारित माफीनामा प्रकाशित करने को कहा था। उन्हें पुरी को 50 लाख रुपये का हर्जाना देने का भी निर्देश दिया गया था।
खंडपीठ ने कहा कि "दोनों माफीनामों में अंतर है" - एक जिसे एकल जज द्वारा प्रकाशित करने का निर्देश दिया गया था और दूसरा जिसे गोखले ने दायर किया था।
सिब्बल ने अदालत को बताया कि पुरी के खिलाफ TMC सांसद के बयानों की प्रकृति आरोपात्मक नहीं थी और वे चुनावी हलफनामों पर आधारित थे। हालांकि, अदालत ने उनसे हलफनामा वापस लेने और नया जवाब दाखिल करने को कहा, जबकि मामले की सुनवाई 22 जुलाई को तय की गई।
सीनियर एडवोकेट मनिंदर सिंह पुरी की ओर से पेश हुए।
अपनी अपील में गोखले ने एकल जज के फैसले को वापस लेने की उनकी याचिका खारिज करने के फैसले को भी चुनौती दी।
इस बीच, पुरी ने अपने पक्ष में आदेश के क्रियान्वयन की मांग की। एकल जज ने इस मामले में गोखले को कारण बताओ नोटिस जारी किया, जिसमें उनसे पूछा गया कि माफ़ीनामा प्रकाशित न करने के लिए उन्हें सिविल हिरासत में क्यों न भेजा जाए। यह मामला सितंबर में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है।
Title: Saket Gokhale v. Lakshmi Puri