झूठे मामलों से प्रतिष्ठा खराब होती है: दिल्ली हाईकोर्ट ने सेना अधिकारी के खिलाफ बलात्कार का मामला खारिज किया

Praveen Mishra

29 Sept 2025 4:00 PM IST

  • झूठे मामलों से प्रतिष्ठा खराब होती है: दिल्ली हाईकोर्ट ने सेना अधिकारी के खिलाफ बलात्कार का मामला खारिज किया

    दिल्ली हाईकोर्ट ने 70 वर्षीय सेवानिवृत्त भारतीय सेना अधिकारी के खिलाफ दर्ज बलात्कार और यौन उत्पीड़न का मामला खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि उनके खिलाफ लगाए गए आरोप “स्वभाव से ही बेतुके” हैं।

    जस्टिस अमित महाजन ने कहा—

    “आरोप इतने बेतुके हैं और उनके समर्थन में कोई विश्वसनीय सबूत भी नहीं है। ऐसे में कार्यवाही को जारी रखना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।”

    कोर्ट ने माना कि इस उम्रदराज व्यक्ति को मुकदमे की कठिनाइयों से गुजरने के लिए मजबूर करना न्याय का मखौल होगा और न्यायिक हस्तक्षेप जरूरी है।

    साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि झूठे मामलों का असर व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा पर पड़ता है, और अदालत का कर्तव्य है कि वह शिकायत की गहनता से समीक्षा करे, खासकर तब जब मामला स्पष्ट रूप से निराधार या प्रताड़ना के उद्देश्य से दायर किया गया हो।

    यह आदेश लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) इंदरजीत सिंह AVSM VSM द्वारा दायर याचिका पर आया, जिन्होंने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें दिल्ली पुलिस को उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया गया था।

    शिकायतकर्ता ने उन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 376 सहपठित 511 और अन्य धाराओं (307, 320, 323, 339, 354, 354A, 354B, 355, 503, 506 और 509) के तहत मामला दर्ज करने की मांग की थी।

    दोनों पड़ोसी थे। महिला ने आरोप लगाया था कि 2020 में वह अपने घर लौट रही थी, तभी सिंह ने पार्क में उसे घेर लिया, छेड़छाड़ की, उसके कपड़े फाड़े और बलात्कार का प्रयास किया।

    ट्रायल कोर्ट ने गंभीर आरोप मानते हुए एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया था। लेकिन हाईकोर्ट ने कहा कि मजिस्ट्रेट को संबंधित डीसीपी की रिपोर्ट पर विचार करना चाहिए था, जिसमें शिकायत पर गंभीर संदेह जताया गया था।

    कोर्ट ने पाया कि—

    • महिला के मेडिकल परीक्षण (MLC) में कोई चोट दर्ज नहीं थी।

    • दिए गए वीडियो में भी चोट या फटे कपड़े नजर नहीं आए।

    • 70 साल के बुजुर्ग व्यक्ति द्वारा इस तरह हमला करना और इतने लोगों की मौजूदगी में ऐसी घटना होना “न केवल असंभव बल्कि हास्यास्पद” है।

    इस आधार पर कोर्ट ने कहा कि मजिस्ट्रेट का आदेश और उसके आधार पर दर्ज FIR, यदि कोई दर्ज हुई है, दोनों को खारिज किया जाता है।

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