कर्मचारी अंशदान का भुगतान आयकर अधिनियम के बजाय ESE/EPF Act के तहत नियत तिथि तक किया जाना चाहिए: दिल्ली हाईकोर्ट

Shahadat

11 Sept 2025 10:55 AM IST

  • कर्मचारी अंशदान का भुगतान आयकर अधिनियम के बजाय ESE/EPF Act के तहत नियत तिथि तक किया जाना चाहिए: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि कोई नियोक्ता अपने ट्रस्ट में रखे गए भविष्य निधि या नियोक्ता राज्य बीमा निधि में कर्मचारियों के अंशदान पर कटौती का दावा तभी कर सकता है, जब वह संबंधित श्रम कानून के तहत निर्धारित वैधानिक नियत तिथि पर या उससे पहले यह राशि जमा कर दे।

    आयकर अधिनियम, 196 की धारा 36(1)(va) कर्मचारियों के अंशदान से संबंधित है। यह प्रावधान करता है कि करदाता द्वारा अपने किसी भी कर्मचारी से प्राप्त किसी भी राशि पर कटौती की अनुमति तभी दी जाएगी, जब वह राशि करदाता द्वारा संबंधित निधि या निधियों में कर्मचारी के खाते में नियत तिथि पर या उससे पहले जमा कर दी जाए।

    इसके अलावा, धारा 36(1)(va) का स्पष्टीकरण संबंधित श्रम कानून (ESE/EPF Act) के अनुसार "देय तिथि" को परिभाषित करता है।

    इस प्रकार, जस्टिस वी. कामेश्वर राव और जस्टिस विनोद कुमार की खंडपीठ ने कहा,

    “धारा 36(1)(iv) के अंतर्गत नियोक्ता का अंशदान और धारा 36(1)(va) के साथ धारा 2(24)(x) के अंतर्गत कर्मचारियों का अंशदान मूलतः भिन्न प्रकृति का है। इसे अलग-अलग माना जाना चाहिए। कर्मचारियों के वेतन से काटा गया अंशदान धारा 2(24)(x) के अंतर्गत आय माना जाता है। नियोक्ता द्वारा ट्रस्ट में रखा जाता है। नियोक्ता केवल तभी कटौती का दावा कर सकते हैं, जब वे यह राशि धारा 36(1)(va) के अंतर्गत वैधानिक नियत तिथि पर या उससे पहले जमा कर दें।”

    अपीलकर्ता-करदाता अपनी आय से कर्मचारियों के अंशदान की कटौती की अनुमति न दिए जाने से व्यथित है, क्योंकि उसने इसे संबंधित निधि की नियत तिथि के बाद जमा किया।

    उसने दावा किया कि यह राशि आयकर अधिनियम की धारा 139(1) के अंतर्गत आयकर विवरणी प्रस्तुत करने की नियत तिथि से पहले जमा की गई।

    अपीलकर्ता ने ऐसे उदाहरणों का हवाला दिया, जिनमें यह निर्धारित किया गया कि यदि करदाता ने ESE/EPF कानून में निर्धारित नियत तिथि के बाद लेकिन ITR दाखिल करने की अंतिम तिथि से पहले ESE/EPF भुगतान किया तो ऐसे ESE/EPF भुगतानों को करदाता के कर निर्धारण में अस्वीकार नहीं किया जा सकता।

    इसके अतिरिक्त, अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि आयकर अधिनियम की धारा 43बी का स्पष्टीकरण 5, जो 01.04.20214 से प्रभावी हुआ, भावी प्रभाव से प्रभावी होगा।

    यह प्रावधान उन व्ययों की सूची प्रदान करता है, जिन्हें कटौती के रूप में अनुमति दी जाती है, जब उनका वास्तव में भुगतान किया जाता है। इसके स्पष्टीकरण में यह प्रावधान निर्धारित किया गया कि यह प्रावधान करदाता द्वारा अपने किसी भी कर्मचारी से प्राप्त राशि पर लागू नहीं होगा।

    हालांकि, हाईकोर्ट ने चेकमेट सर्विसेज (प्रा.) लिमिटेड बनाम आयकर आयुक्त (2023) मामले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि धारा 36(1)(va) के तहत कर्मचारियों द्वारा किए गए अंशदान को धारा 36(1)(iv) के तहत नियोक्ता द्वारा किए गए अंशदान से अलग माना जाता है।

    इसने बताया कि चूंकि कर्मचारियों का अंशदान कर्मचारियों की आय से कटौती है और नियोक्ता द्वारा ट्रस्ट में रखा जाता है। इसलिए कल्याणकारी अधिनियमों के अनुसार इसे जमा करना आवश्यक है।

    आगे कहा गया,

    “उन अधिनियमों के अनुसार और संबंधित कानून द्वारा निर्धारित नियत तिथियों पर या उससे पहले जमा करने पर वह राशि जो अन्यथा रखी जाती है। आय मानी जाती है, उसे कटौती के रूप में माना जाता है। इस प्रकार, कटौती के लिए यह एक आवश्यक शर्त है कि ऐसी राशियां नियत तिथि पर या उससे पहले जमा की जाएं... धारा 43-बी के तहत गैर-बाधित खंड या उस प्रावधान में निहित कोई भी बात करदाता को कटौती की शर्त के रूप में नियत तिथि पर या उससे पहले कर्मचारी का अंशदान जमा करने के दायित्व से मुक्त नहीं करेगी।”

    इस प्रकार, हाईकोर्ट ने कटौतियों की अनुमति बरकरार रखी।

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