माता-पिता के अंतिम संस्कार के लिए पैरोल न देना अनुच्छेद 21 का उल्लंघन: दिल्ली हाईकोर्ट

Praveen Mishra

30 Sept 2025 4:44 PM IST

  • माता-पिता के अंतिम संस्कार के लिए पैरोल न देना अनुच्छेद 21 का उल्लंघन: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि माता-पिता के अंतिम संस्कार का अधिकार एक महत्वपूर्ण धार्मिक और नैतिक कर्तव्य है और ऐसे मामले में पैरोल (अल्पकालिक जेल छुट्टी) देने से इंकार करना दोषी के अनुच्छेद 21 के तहत गरिमा के अधिकार का उल्लंघन है।

    जस्टिस रवींदर डुडेजा ने अजमेर सिंह को चार सप्ताह की पैरोल दी। अजमेर सिंह 2018 में दर्ज बलात्कार मामले में दोषी पाए गए थे और उन्हें 14 साल की कठोर सजा और 1,70,000 रुपये का जुर्माना सुनाया गया था। वे फिलहाल तिहाड़ जेल में बंद हैं।

    अजमेर सिंह ने अदालत से पैरोल की मांग की ताकि वे अपने पिता के निधन पर अंतिम संस्कार और रीति-रिवाज पूरे कर सकें। उनका कहना था कि उन्होंने अब तक लगभग 1 साल 9 महीने और 15 दिन जेल की सजा पूरी कर ली है और इस दौरान उन्हें कभी पैरोल या फर्लो का लाभ नहीं मिला।

    उनके वकील ने बताया कि अजमेर सिंह परिवार के सबसे बड़े पुत्र हैं और उनके लिए यह धार्मिक और पारिवारिक जिम्मेदारी है। जेल के रिकॉर्ड के अनुसार उनका व्यवहार संतोषजनक रहा है।

    कोर्ट ने कहा कि पैरोल का उद्देश्य दोषी को परिवार और समाज से जुड़े रहने और जरूरी जिम्मेदारियां निभाने का मौका देना है। कोर्ट ने यह भी कहा:

    “माता-पिता के अंतिम संस्कार का अधिकार एक महत्वपूर्ण धार्मिक और नैतिक कर्तव्य है। ऐसे समय में पैरोल से इंकार करना याचिकाकर्ता के अधिकारों का उल्लंघन होगा।”

    जस्टिस डुडेजा ने यह भी स्पष्ट किया कि अपराध गंभीर होने के बावजूद मानवीय कारणों पर पैरोल देना जरूरी है और नियमों का केवल यांत्रिक पालन करना पैरोल के मूल उद्देश्य के खिलाफ होगा।

    अंत में अदालत ने आदेश दिया कि याचिकाकर्ता को जारी किए जाने की तारीख से चार सप्ताह की पैरोल पर रिहा किया जाए।

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